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    प्राकृतिक आपदा में अर्ली वार्निंग सिस्टम की बढ़ती विश्वसनीयता

  • July 10, 2023

    – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

    इसमें कोई दोराय नहीं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते प्राकृतिक आपदाएं अब अधिक होने लगी है। आए दिन दुनिया के किसी न किसी कोने में कोई न कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा देखने को मिल जाती है। समुद्री तूफान, जंगलों में दावानल व भूकंपों की फ्रिक्वेंसी लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में आज अर्ली वार्निंग सिस्टम की विश्वसनीयता बढ़ी है। कुछ दिन पहले बिपरजॉय चक्रवात से हम रूबरू हो चुके हैं। सबसे अच्छी बात यह रही कि बिपरजॉय चक्रवात के आने का समय, उसकी चाल और गति से लेकर उसके फैलाव व प्रभाव क्षेत्र की पूर्व जानकारी मिलने से जनहानि लगभग शून्य रही है। प्राकृतिक आपदा के प्रबंधन का इससे बेहतर उदाहरण देखने में लगभग नहीं के बराबर है। आखिर यह सब इसलिए संभव हो पाया कि मौसम विज्ञान विभाग द्वारा समय पर सटीक जानकारी दी गई और इस जानकारी के आधार पर आपदा प्रबंधन के व्यवस्थित व योजनावद्ध प्रयास हो सके जिसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए और जनहानि से बचाने में बड़ी सफलता प्राप्त हो सकी। यह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि एक समय था जब आपदा प्रबंधन के हालात अच्छे नहीं होने के कारण जनहानि अधिक होती थी। फिर धनहानि की तो भरपाई की जा सकती है पर जलहानि की भरपाई किसी भी तरीके से संभव नहीं है।

    देश में 2013 के फैलिना तूफान से लेकर, हुदहुद, वरदा, फैनी, अम्फान, ताउते व बिफरजॉय तूफान तक 11 बड़े चक्रवती तूफान आ चुके हैं। दरअसल बिफरजॉय तूफान के सुपर साइक्लोन होने के कारण भारी जन-धन हानि होने की आशंका व्यक्त की जा रही थी। यही कारण है कि करीब एक लाख लोगों को गुजरात के तटीय इलाकों खासतौर से मांडवी व आसपास के क्षेत्र से सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया। लोगों को सचेत किया गया। पल-पल की जानकारी साझा की जाती रही। लगभग 100 ट्रेनों के फेरे रद्द किए गए या उनकी राह बदली गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केन्द्र सरकार के मंत्रीगण, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत न केवल स्थिति पर नजर रखे रहे अपितु उच्चस्तरीय बैठक कर तैयारियों की समीक्षा करते रहे।


    हांलाकि कुछ साल पहले मौसम विभाग के पूर्वानुमानों को मजाक के रूप में लिया जाता था। चाइनीज उत्पादों को लेकर यह मान्यता है कि चले तो चले, नहीं तो शाम तक भी चले तो कोई बड़ी बात होगी। लगभग यही छवि मौसम विभाग के पूर्वानुमानों को लेकर होती थी। पर आज हमारे मौसम विभाग ने पूर्वानुमानों के आकलन की सबसे बेहतरीन आकलन माना जा सकता है। पिछले दो-तीन साल से मौसम विभाग ने अपनी छवि को न केवल बेहतर बनाया है अपितु मौसम विभाग के पूर्वानुमान खरे उतर रहे हैं। देश में पिछले दो-तीन साल में आये चक्रवाती तूफानों की मिनट-मिनट की सटीक जानकारी ने जनहानि को इस साल शून्य स्तर तक पहुंचा दिया है। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि बिपरजॉय में दो लोगों की जान गई पर उसके कारण आपदा प्रबंधन न होकर कोई अन्य कारण रहे।

    दरअसल विश्व मौसम विज्ञान संगठन और भारत के संदर्भ में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमान सटीक होने से बड़ा लाभ मिला है। हालांकि जब तेज तूफान आते हैं तो बिजली व अन्य पोल, पुरानी बिल्डिंग, पेड़-पौधों और अन्य संरचनात्मक ढांचों का नुकसान होना स्वाभाविक है। तेज हवाओं से या तेज बरसात से नदी-नालों में उफान और बाढ़ जैसे हालात होना अपने आप में नई बात नहीं है। आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों का मानना है कि समयपूर्व सूचना से जिस तरह से जनहानि को न्यूनतम स्तर पर लाने में सफलता मिली है ठीक इसी तरह से अन्य नुकसान को रोका तो नहीं जा सकता पर उसे कम किया जा सकता है।

    ग्लोबल कमीशन ऑन एडेप्टेशन की माने तो मौसम खराबे की चेतावनी देने वाला सिस्टम लोगों की जान बचाने में सहायक होता है। आयोग तो यहां तक मानता है कि 24 घंटे पहले भी चेतावनी मिलती है तो अन्य नुकसान को भी 30 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। हांलाकि लाख प्रयासों के बावजूद एक मोटे अनुमान के अनुसार 2015 से 2021 के दौरान प्रति वर्ष औसतन 33 अरब डॉलर प्राकृतिक आपदाओं के कारण नुकसान के भेंट चढ़ जाते हैं। हालांकि यह बड़ी राशि है पर पूर्व चेतावनी के चलते इसमें लगातार कमी होती जा रही है। एक समय था जब प्राकृतिक आपदाओं खासतौर से समुद्री तूफानों और सुनामी आदि के कारण हजारों हजार लोग अपनी जान गंवा देते थे। पर आज जनहानि को लेकर तो हालात बदले हैं। अन्य नुकसान को भी कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

    देखा जाए तो बिपरजॉय चक्रवाती तूफान ने एक मिसाल भी कायम की है कि मौसम विभाग के सटीक पूर्वानुमान और उनके आधार पर आपदा प्रबंधन व्यवस्था हो तो हालात से बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है। जनहानि तो रुकेगी ही साथ ही तूफानी हवाओं व फिर इसके बाद तेज बरसात से होने वाले नुकसान को भी कम किया जा सकता है तो दूसरी और वैकल्पिक प्लान तैयार रखकर जनजीवन को अस्त-व्यस्त होने से रोका जा सकता है। बिपरजॉय को एक मिसाल के रूप में देखा जाना चाहिए। वहीं मौसम विज्ञान विभाग की इसलिए पीठ थपथपानी चाहिए कि आज उनका आकलन अधिक सटीक होता जा रहा है जिसका सीधा लाभ प्राप्त होने लगा है।

    (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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