• img-fluid

    बढ़ती आबादी-बढ़ता खतरा

  • July 11, 2024

    – योगेश कुमार गोयल

    जनसंख्या संबंधित समस्याओं पर वैश्विक चेतना जागृत करने के लिए प्रतिवर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। भारत के संदर्भ में देखें तो तेजी से बढ़ती आबादी के कारण ही हम सभी तक शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों को पहुंचाने में पिछड़ रहे हैं। बढ़ती आबादी की वजह से ही देश में बेरोजगारी की समस्या विकराल हो चुकी है। हालांकि विगत दशकों में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से नए रोजगार जुटाने के कार्यक्रम चलाए गए लेकिन बढ़ती आबादी के कारण ये सभी कार्यक्रम ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुए। बढ़ती जनसंख्या के कारण ही देश में आबादी और संसाधनों के बीच असंतुलन बढ़ता जा रहा है। हकीकत यही है कि विगत दशकों में देश की जनसंख्या जिस गति से बढ़ी, उस गति से कोई भी सरकार जनता के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने की व्यवस्था करने में सफल नहीं हो सकती थी।


    आज देश की बहुत बड़ी आबादी निम्नस्तर का जीवन जीने को विवश है। देश में करीब 40 फीसदी आबादी आजादी के बाद से ही गरीबी में जी रही है। गरीबी में जीवन गुजार रहे ऐसे बहुत से लोगों की यही सोच रही है कि उनके यहां जितने ज्यादा बच्चे होंगे, उतने ही ज्यादा कमाने वाले हाथ होंगे किन्तु यह सोच वास्तविकता के धरातल से परे है। लगातार बढ़ती महंगाई के जमाने में परिवार बड़ा होने से कमाने वाले हाथ ज्यादा होने पर जितनी आय बढ़ती है, उससे कहीं ज्यादा जरूरतें और विभिन्न उत्पादों की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिनकी पूर्ति कर पाना सामर्थ्य से परे हो जाता है। इसलिए जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों की सफलता के लिए सर्वाधिक जरूरी यही है कि घोर निर्धनता में जी रहे ऐसे लोगों को परिवार नियोजन कार्यक्रमों के महत्व के बारे में जागरूक करने की ओर खास ध्यान दिया जाए, क्योंकि जब तक इस कार्यक्रम में इन लोगों की भागीदारी नहीं होगी, तब तक लक्ष्य की प्राप्ति संभव नहीं है।

    देश में जनसंख्या वृद्धि का मुकाबला करने के लिए पिछले काफी समय से कुछ कड़े कानून बनाने की मांग हो रही है, लेकिन इस दिशा में कुछ राज्य सरकारें दो से ज्यादा बच्चों वाले परिवारों को सरकारी नौकरी तथा स्थानीय निकाय चुनावों में उम्मीदवारी से अयोग्य अघोषित करने जैसे जिस तरह के उपायों पर विचार कर रही हैं, उन्हें किसी भी दृष्टि से तर्कसंगत नहीं माना जा सकता। हालांकि जनसंख्या वृद्धि मौजूदा समय में गंभीर चुनौती है लेकिन ऐसे उपायों को संवैधानिक नजरिये से भी तर्कसम्मत नहीं माना जाता। चीन में 1980 से पहले केवल एक बच्चा पैदा करने की अनुमति थी, जिसका उल्लंघन करने पर दम्पति को न केवल सरकारी योजनाओं से वंचित कर दिया जाता था बल्कि सजा भी दी जाती थी लेकिन वहां यह नीति सफल नहीं हुई। इसीलिए चीन सरकार ने 2016 में इस नीति में बदलाव कर दो बच्चों की अनुमति दी और बाद में तीन बच्चों की अनुमति देनी पड़ी। चीन की तानाशाही सरकार द्वारा नीतियों में बड़ा बदलाव करते हुए दम्पत्तियों को तीन बच्चे करने की अनुमति क्यों दी गई, इसके कारण समझना भी जरूरी है। दरअसल वहां लोगों की सामान्य प्रजनन दर में निरन्तर गिरावट आ रही है और विशेषज्ञों के मुताबिक यही स्थिति भारत में भी होनी है।

    जनसंख्या में स्थायित्व और कामकाजी युवाओं की स्थिर संख्या के लिए महिलाओं की सामान्य प्रजनन दर 2.1 होनी चाहिए और चीन में यह दर निरन्तर गिर रही है। 1970 में चीन में यह दर 5.8 थी, जो 2015 में घटकर 1.6 और 2020 में केवल 1.3 ही रह गई जबकि बुजुर्गों की आबादी लगातार बढ़ती गई। नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स (एनबीएस) के अनुसार आने वाले समय में आबादी में अधिक उम्र वालों की संख्या बढ़ने से संतुलित विकास और जनसंख्या को लेकर दबाव बढ़ेगा। 1982 में हुई जनगणना में चीन की जनसंख्या में 2.1 फीसदी की सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई थी लेकिन उसके बाद जनसंख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई, जिसके लिए वहां की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा अपनाई गई दशकों पुरानी वन चाइल्ड पॉलिसी को जिम्मेदार माना जाता है। विगत एक दशक में चीन की जनसंख्या करीब सात करोड़ बढ़ी है लेकिन बुजुर्गों की संख्या बढ़ने से चीन के लिए अलग ही समस्या उत्पन्न होने लगी है। दरअसल चीन को आशंका है कि अगले दस वर्षों में उसकी जनसंख्या में गिरावट आएगी, जिससे कामगारों की संख्या में कमी आने से उसकी खपत भी घटेगी। एनबीएस के आंकड़ों के मुताबिक चीन को जिन जनसांख्यिकीय संकट का सामना करना पड़ा था, उसके और गहराने की उम्मीद थी, इसीलिए चीन को अपनी जनसंख्या नीति में बदलाव करने पर विवश होना पड़ा।

    जहां तक भारत की बात है तो यहां 1994 में महिलाओं की सामान्य प्रजनन दर 3.4 थी, जो घटकर 2015 में 2.2 रह गई थी यानी सामान्य के करीब। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत की जनसंख्या 2050 तक बढ़ने के बाद से गिरनी शुरू हो जाएगी और 2100 तक पहुंचते-पहुंचते सामान्य प्रजनन दर केवल 1.3 ही रह जाएगी। इसका अर्थ है कि तब अधिकांश परिवारों में केवल एक ही बच्चा होगा और भारत उसी स्थिति में खड़ा होगा, जिसमें वन चाइल्ड पॉलिसी के बाद चीन खड़ा हुआ और उसे विगत सात वर्षों में दो बार अपनी जनसंख्या नीति में बड़ा परिवर्तन करना पड़ा।

    इसलिए टू चाइल्ड पॉलिसी जैसे कानूनों के जरिये जनसंख्या नियंत्रण की कोशिशों को व्यावहारिक नहीं माना जा रहा बल्कि इसके लिए डराने-धमकाने वाले कानूनों के बजाय लोगों में जागरुकता पैदा किया जाना सबसे जरूरी है। बगैर कड़े कानूनों के देश के ऐसे राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है, जहां साक्षरता दर ज्यादा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत में गरीब महिलाओं की प्रजनन दर करीब 3.2 है जबकि सम्पन्न महिलाओं में यह दर केवल 1.5 पाई गई है। इसी प्रकार अनपढ़ महिलाओं के औसतन 3.1 बच्चे होते हैं जबकि शिक्षित महिलाओं में यह संख्या औसतन 1.7 है। इसका स्पष्ट अर्थ है कि जनसंख्या विस्फोट का सीधा संबंध सामाजिक और शैक्षिक स्थितियों से जुड़ा है। शिक्षा के अभाव में ही देश की बड़ी आबादी को छोटे परिवार के लाभ को लेकर जागरूक नहीं किया जा सका है।

    (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

    Share:

    रॉयल एनफील्ड के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बनी ये बाइक

    Thu Jul 11 , 2024
    नई दिल्‍ली (New Delhi)। भारत की सबसे लोकप्रिय मोटरसाइकिल निर्माता रॉयल एनफील्ड ने साल-दर-साल और मासिक दोनों आधार पर बिक्री में पॉजिटिव ग्रोथ दर्ज की है। अप्रैल 2024 के महीने में रॉयल एनफील्ड ने 75,000 से ज्यादा बिक्री हासिल की है। रॉयल एनफील्ड 300cc से 500cc सेगमेंट में अपनी पकड़ बनाए हुए है। 500cc+ मोटरसाइकिल […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    रविवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved