– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
देश की आंतरिक सुरक्षा कायम रखने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले देश के अर्द्धसैनिक बल के सैनिकों में बढ़ता मानसिक तनाव बेहद चिंतनीय है। पिछले एक दशक में इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार या यों कहें कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय समस्या की गंभीरता से नावाकिफ है अपितु सभी स्तर पर चिंतन मनन के बाद भी कोई ठोस परिणाम नहीं निकल पाया है। समस्या की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि केन्द्रीय सशस्त्र बलों में आत्महत्या के मामले तो बढ़े ही हैं साथ ही आपसी गोलीबारी के मामले भी लगातार सामने आ रहे हैं।
हमें सैनिक बलों और अर्द्धसैनिक बलों की कार्यप्रणाली को भी समझना होगा तो देय सुविधाओं को भी ध्यान में रखना होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि सैनिक बल जहां बार्डर पर कठिनतर परिस्थितियों में तैनात रहते हैं पर जब वहां उनका टेन्योर पूरा हो जाता है तो उसके बाद उनकी तैनाती शांत व कम जोखिम वाले स्थानों पर होती है। सैनिकों के लिए सैनिक अस्पताल भी बेहतरीन सुविधा व विशेषज्ञयुक्त होने के साथ सैनिकों के परिजनों को भी बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो जाती है। दूसरी और अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती पूरी तरह से देखा जाए तो कठिन परिस्थितियों से भरी होती है। चाहे वह नक्सल प्रभावित क्षेत्र की हो या फिर जम्मू-कश्मीर में शांति व्यवस्था की हो या नार्थ ईस्ट में शांति व्यवस्था बनाए रखने की हो। इसके अलावा देश के किसी भी कोने में किसी कारण से अशांति के हालात होते हैं या फिर आपदा के हालात होते हैं तो व्यवस्था के नाम पर अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती आम बात है। ऐसे में काम की अधिकता, सेवा परिस्थितियां और फिर व्यक्तिगत कारण संवेदनशील व्यक्ति को बहुत जल्द अवसाद में ला देते हैं।
अर्द्ध सैनिक बलों में मुख्यतः सीआरपीएफ, बार्डर सिक्योरिटी फोेर्स, असम राइफल्स, सीआईएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी आदि आते हैं। पिछले दिनों गृह मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 2020 में 4940 मानसिक रोगी चिन्हित किए गए इनमें से सर्वाधिक 1882 सीआरएफ, 1327 बीएसएफ, 530 असम राइफल्स, 472 सीआईएसएफ, 417 आईटीबीपी और 312 एसएसबी के हैं। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार ही 2017 से 2022 के बीच अर्द्ध सैनिक बलों के सैनिकों के बीच आपसी गोलीबारी में 57 कर्मियों की जान गई है तो 2018 से 2022 क बीच 658 कर्मियों के आत्महत्या की है। कमोबेश यह स्थिति आज भी है। इससे यह साफ हो जाता है कि मानसिक तनाव बड़ी समस्या है और इसे दूर करने के लिए ठोस उपाय किए जाने की अतिआवश्यकता है। हांलाकि इस समस्या का हल खोजने के लिए टास्क फोर्स के गठन से लेकर कई समितियां बनाई गई है पर हालात में अभी तक जिस तरह के बदलाव आने चाहिए थे वे नहीं आ पाये हैं।
दरअसल आधुनिक जीवन पद्धति और भागमभाग की जिंदगी में मानसिक तनाव इस तरह हाबी रहता हे कि लाख प्रयासों के बाद भी व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। एक और कार्य स्थल की परिस्थितियां, दूसरी और पारिवारिक जिम्मेदारियां, तीसरी और पारिवारिक तात्कालिक व दीर्घकालिक समस्या, चौथा कार्य स्थल पर रेस्ट करने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाना, पांचवां आवश्यकता पर या चाहने पर छुट्टियां नहीं मिलने के साथ ही अन्य कई छोटे मोटे कारण हो जाते हैं जिससे व्यक्ति तनाव में चला जाता है। आर्थिक समस्या प्रमुख कारण है।
मानसिक तनाव की इस समस्या का समाधान इसलिए जरुरी हो जाता है कि जहां एक और मानसिक रोग बढ़ता जा रहा हैं वहीं करीब 50 हजार लोगों द्वारा समयपूर्व नौकरी छोड़ना अपने आप में गंभीरता को दर्शाता है। इस सबके लिए मनोचिकित्सकों का होना आवश्यक हो जाता है। देखा जाए तो अन्य देशों की तुलना में देश में मनोचिकित्सकों का वैसे ही टोटा है वहीं अद्धसैनिक बलों में मनोचिकित्सकों की उपलब्धता तो और भी कम है। एक मोटे अनुमान के अनुसार सीआरपीएफ में 3, बीएसएफ में 4, असम राइफल्स में 1, आईटीबीपी में पांच और एसएसबी में केवल एक मनोरोग संबंधी डॉक्टर है। इसमें कुछ कम ज्यादा हो सकती है पर ऐसे में मानसिक तनाव के इलाज की बात करना ही बेमानी है। इसके लिए सरकार और इस क्षेत्र में कार्य कर रहे गैरसरकारी संगठनों को आगे आना होगा। सरकार को भी समय समय पर गठित कमेटियों की रिपोर्ट का अध्ययन कर व्यावहारिक सुझावों को लागू करने पर गंभीरता से आगे आना होगा। गैर सरकारी संगठनों को अर्द्ध सैनिक बलों के क्षेत्रों को अपना कार्य क्षेत्र बनाना होगा और इस तरह की गतिविधियां संचालित करनी होगी जिससे तनाव दूर किया जा सके। इसके लिए समय समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन, लेक्चर्स, योगा क्लासेज, मनोरंजक गतिविधियां और इसी तरह की तनाव कम करने वाली गतिविधियां आदि आयोजित की जानी चाहिए ताकि तनाव को कम करने में सहायता मिल सके।
इसी तरह मनोरोग चिकित्सकों की सेवाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था के साथ ही आवश्यकता पर आसानी से अवकाश मिलने और सेवा शर्तों में इस तरह के प्रावधान किये जाएं ताकि कार्मिक में अन्य समकक्ष से तुलना करने पर किसी तरह की हीन भावना ना आए। अर्द्ध सैनिक बलों को किसी भी स्तर पर कमतर नहीं आका जाना चाहिए। बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने में इन बलों की उपादेयता और भूमिका सर्वाधिक है। ऐसे में समय रहते समग्र प्रयास की आवश्यकता है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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