लंदन : चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के शासनकाल में तिब्बत की धार्मिक स्वतंत्रता में तेजी से कमी आने के साथ ही शिनजियांग प्रांत में अत्याचार भी ज्यादा हो गए हैं। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने बेरहमी से धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट किया है। यह कहना है लंदन में रहने वाले शोधकर्ता जेचरी स्किडमोर का। शी चिनफिंग 2012 में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने थे, तभी से मानवाधिकार हनन के मामलों में चीन का रुख आक्रामक होता चला गया है।
मानवाधिकारों की निगरानी करने वाली संस्था के अनुसार तिब्बत में वहां की जनता की धार्मिक स्वतंत्रता से लेकर बोलने की आजादी तक पर पाबंदी लगना शुरू हो गया। प्रशासन का रवैये में तानाशाही आ गई। सुरक्षा बलों की हिंसा बढ़ने लगी। रिपोर्ट बताती है कि चिनफिंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी का तिब्बत और शिनजियांग में अघोषित एजेंडा जब दुनिया के सामने आने लगा तो यहां पर पाबंदी और बढ़ने लगी। उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार बढ़ने के साथ ही उनको जबरन हिरासत में रखने की घटनाओं में तेजी आ गई। चीन की इन नीतियों से यहां की स्वायत्तता तेजी से नष्ट हुई है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इसे सांस्कृतिक नरसंहार माना है। दलाई लामा ने खुद यहां पर चल रहे इस कुचक्र की तरफ संकेत किया था। शोधकर्ता ने कहा है कि शी चिनफिंग के कार्यकाल में धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को बदलने का नियोजित तरीके से कुचक्र चल रहा है। धार्मिक संस्थाओं पर तेजी से नियंत्रण किया जा रहा है। जैसा कि चिनफिंग ने खुद ही साफ कर दिया था कि तिब्बत के बौद्धधर्म को समाजवाद और चीनी परिस्थितियों के अनुकूल होना चाहिए। इसी तरफ उनका प्रशासन काम कर रहा है।
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