वॉशिंगटन। यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका ने ताइवान को लेकर चीन के साथ जंग के बढ़ते खतरे को देखते हुए पहली बार यूरोपीय सहयोगियों के साथ रणनीति बनाना शुरू कर दिया है। चीन के बेहद आक्रामक रूख को देखते हुए अमेरिका ने ब्रिटेन के आला अधिकारियों के साथ बैठक की है। इस बैठक का मकसद चीन के साथ युद्ध के खतरे को कम करने के लिए ज्यादा करीबी सहयोग की संभावना तलाश करना और संघर्ष की स्थिति के लिए आपात योजना बनाना था।
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ब्रिटिश अखबार फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय वाइट हाउस के हिंद- प्रशांत क्षेत्र के समन्वयक कुर्त कैंपबेल और चीन पर राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की शीर्ष अधिकारी लौरा रोजेनबर्गर ने मार्च में ताइवान को लेकर ब्रिटिश अधिकारियों के साथ अहम बैठक की थी। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि अमेरिका चाहता है कि यूरोपीय संघ के सहयोगियों जैसे ब्रिटेन के साथ सहयोग को बढ़ाया जाए। अमेरिका ने यह बैठक ऐसे समय पर की है जब चीन का ताइवान के प्रति आक्रामक रवैया बढ़ता जा रहा है।
चीन ने ताइवान के पास लगातार बड़ी संख्या में फाइटर जेट और बॉम्बर भेज रहा है। इसी को देखते हुए अमेरिका ने जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ गहन बातचीत शुरू कर दी है। अमेरिका के इंडो-पैसफिक कमांड के प्रमुख एडमिरल जॉन अक्विलिनो ने कहा है कि यूक्रेन की जंग ने ताइवान को लेकर चीन के खतरे को रेखांकित किया है। एक ब्रिटिश अधिकारी ने कहा कि ताइवान को लेकर हुई बैठक में इस पर चर्चा हुई कि ब्रिटेन किस तरह से ताइवान के साथ मिलकर कूटनीतिक तरीके से एशिया में प्रतिरोध को बढ़ा सकता है।
अमेरिकी और ब्रिटिश अधिकारियों में हुई इस चर्चा में यह भी बातचीत हुई कि अगर ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच जंग शुरू होती है तो ब्रिटेन किस तरह की भूमिका को निभा सकता है। यही नहीं अब अमेरिका ने ताइवान को लेकर अपने सहयोगी देशों को खुफिया सूचना भी साझा करना शुरू कर दिया है। एक ब्रिटिश अधिकारी ने कहा कि यह बैठक ताइवान को लेकर हुई अब तक की सभी बैठकों में सर्वोच्च स्तर की थी और सबसे महत्वपूर्ण थी।
ताइवान मामलों के विशेषज्ञ रयान हास ने कहा कि यह एक सही रणनीति है कि ताइवान को लेकर विचार विमर्श बढ़ाया जाए। अमेरिका और ब्रिटेन को युद्ध को लेकर अपने मतभेदों को खत्म करना होगा और संभावित संघर्ष के लिए खुद को तैयार करना होगा। खासतौर पर यूक्रेन जंग को देखते हुए। हास ने कहा कि यह जरूरी हो गया है कि जब भी आवश्यकता हो जोरदार तरीके से जवाब दिया जाए। अमेरिका और ब्रिटेन के बीच बढ़ते सहयोग का उदाहरण यह है कि ब्रिटिश एयरक्राफ्ट कैरियर करीब 6 महीने तक हिंद प्रशांत क्षेत्र में तैनात था।
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