नई दिल्ली: खाड़ी की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बीच पैसे और पावर के लिए इन दिनों भारी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है. जनवरी में यूएई की राजधानी अबू धाबी में मध्य-पूर्व के नेताओं ने एक शिखर सम्मेलन में भाग लिया था जिसमें सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अनुपस्थित थे. शिखर सम्मेलन में उनकी अनुपस्थिति ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा और इससे स्पष्ट संदेश गया कि सऊदी अरब और यूएई के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
पिछले दिसंबर में यूएई के शीर्ष नेता राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान भी सऊदी की राजधानी रियाद में आयोजित हाई प्रोफाइल चीन-अरब सम्मेलन में शामिल नहीं हुए थे. खाड़ी के अधिकारियों ने ब्लूमबर्ग से कहा कि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और यूएई के राष्ट्रपति जानबूझकर इन सम्मेलनों से दूर रहे. सऊदी अरब और यूएई औपचारिक रूप से अभी भी सहयोगी बने हुए हैं लेकिन विदेशी निवेश और तेल बाजार में प्रभाव बढ़ाने के लिए दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा जारी है. इसी प्रतिस्पर्धा में दोनों देश कई मोर्चों पर अलग हो गए हैं.
पहले दोनों देशों के बीच की असहमतियां बंद दरवाजों के पीछे थीं लेकिन अब कई ऐसी खबरें तेजी से बाहर आ रही हैं जिसमें दोनों देशों के बीच का तनाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है. दोनों पड़ोसी सहयोगियों के बीच यह असहमति ऐसे वक्त में सामने आई है जब ईरान मध्य-पूर्व में अपने प्रभाव को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के बीच ओपेक की भूमिका बेहद अहम हो गई है. ऐसे में दोनों पड़ोसियों के बीच की यह तनातनी मध्य-पूर्व और पूरी दुनिया के लिए नुकसानदेह है.
तनाव कम करने की कोशिशें नाकाम
सूत्रों ने बताया कि इस तनाव को कम करने के लिए क्राउन प्रिंस सलमान के करीबी संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शेख तहनून बिन जायद अल नाहयान ने कई बार सऊदी की यात्रा की. अपनी इस यात्रा के दौरान नाहयान ने प्रिंस सलमान से मुलाकात की थी लेकिन वो दोनों देशों के बीच का तनाव कम करने में विफल रहे. कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि अबू धाबी में जनवरी शिखर सम्मेलन के बाद क्राउन प्रिंस सलमान ने एक बार शेख तहनून से मिलने से भी इनकार कर दिया था.
द वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त अरब अमीरात के शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान कभी सऊदी क्राउन प्रिंस के गुरु हुआ करते थे. कुछ साल पहले ही वो सऊदी के विशाल रेगिस्तान में कैंपिंग के लिए गए थे. लेकिन हाल के वर्षों में दोनों नेताओं के बीच नेतृत्व को लेकर भारी असहमति देखने को मिली है और दोनों अब अलग-अलग हो गए हैं.
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका की वरिष्ठ सलाहकार दीना एस्फंदरी कहती हैं, ‘कुछ साल पहले तक, दोनों के बीच इस तरह के मतभेद देखने-सुनने को नहीं मिलते थे और अब यह तेजी से सामान्य हो रहा है.’
दोनों नेताओं के बीच चल रहे मतभेद को लेकर दोनों देशों के अधिकारियों ने कोई टिप्पणी नहीं की है. दोनों देशों के अधिकारी हालांकि, यह दिखाने की कोशिश करते रहते हैं कि दोनों देशों के बीच सब कुछ सामान्य है. फरवरी में यूएई के विदेश-नीति सलाहकार अनवर गर्गश ने एक ट्वीट कर सऊदी अरब के साथ संयुक्त अरब अमीरात की एकता की पुष्टि की और कहा कि खाड़ी गठबंधनों में बदलाव के बारे में सामने आ रही रिपोर्ट्स गलत हैं. गर्गश ने लिखा कि ऐसी खबरें ऐसे समय में विभाजन पैदा करती हैं जब क्षेत्र को एकजुटता की जरूरत है.
यमन मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच सबसे ज्यादा तनाव
सऊदी अरब और यूएई के बीच तनाव का सबसे बड़ा कारण यमन है. दोनों देश युद्धग्रस्त यमन में अपनी पावर को बढ़ाने को लेकर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. यमन में साल 2014 में गृहयुद्ध शुरू हुआ था. यूएई और सऊदी अरब के सैन्य गठबंधन ने साल 2015 में इस युद्ध में हस्तक्षेप किया था. यमन के उत्तरी हिस्से पर ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों का कब्जा है जबकि दक्षिण के अधिकांश हिस्सों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार का कब्जा है. दोनों पक्षों के बीच अब तक युद्ध चल रहा है.
खाड़ी के अधिकारियों ने बताया कि संयुक्त अरब अमीरात ने साल 2019 में यमन से अपने अधिकांश सुरक्षा बलों को वापस बुला लिया था. सऊदी अरब अब हूती विद्रोहियों से युद्ध खत्म करने को लेकर बातचीत कर रहा है. ऐसे में यूएई को डर है कि सऊदी अरब यमन में उसे अलग-थलग कर देगा. यूएई यमन के दक्षिणी हिस्से में अपना रणनीतिक प्रभाव बनाए रखना चाहता है. वो लाल सागर में अपना प्रभाव बढ़ाने की भी कोशिश कर रहा है ताकि वो विश्व के देशों से अपना व्यापार सुगमता से कर सके.
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