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    सरकारी लापरवाही से बिजली कंपनियों का बढ़ा बोझ

  • September 28, 2022

    • 13365 करोड़ का भुगतान नहीं करने से कर्ज में हुई वृद्धि

    भोपाल। प्रदेश सरकार की लापरवाही से प्रदेश में केन्द्र सरकार के प्रोजेक्ट उदय को न केवल पलीता लग गया , बल्कि सूबे की बिजली कंपनियों पर भी कर्ज का बोझ बढ़ गया है जिसकी वजह से उनका घाटे के आंकड़े में कई सौ अरब की वृद्वि हो गई।यह खुलासा किया गया है कैग की रिपोर्ट में। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि केन्द्र सरकार द्वारा संचालित प्रोजेक्ट उदय योजना के तहत बिजली कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए उनका 26055 करोड़ रुपए का कर्ज राज्य सरकार को अपने पास से अधिग्रहित करना था, लेकिन प्रदेश सरकार ने उसमें से महज 12690 करोड़ का कर्ज ही अधिग्रहित किया। यही नहीं शेष बची 13365 करोड़ रुपए की राशि न तो कंपनियों को दी और न ही उसे अधिग्रहित किया। इसकी वजह से बिजली कंपनियों का कर्ज और घाटे में वृद्धि होती गई। कैग की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि इसकी वजह से बिजली कंपनियों को आत्मनिर्भर बनाने की जगह उनकी देनदारी के भुगतान करने में देरी करती रही, जिसकी वजह से बिजली कंपनियों की आर्थिक स्थिति और खराब होती चली गई। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2016-17 से 2019-20 की अवधि के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रोजेक्ट उदय शुरू किया गया था। जिसके तहत मध्यप्रदेश को बिजली कंपनियों को आत्मनिर्भर करने उनके कर्ज को अधिग्रहित करना था। इसके लिए अगस्त 2016 में समझौते पर हस्ताक्षर भी किए गए थे। उस समय सितंबर -2015 की स्थिति में बिजली कंपनियों पर 34739 करोड़ रुपए का कर्ज था। इसका 75 फीसदी कर्ज राज्य सरकार को तय शर्तों के तहत अधिग्रहित करना था। जिसकी वजह से उदय प्रोजेक्ट के तहत मदद मिलनी थी। इस 75 फीसदी हिस्से के तहत राज्य सरकार को 26055 करोड़ रुपए के कर्ज का अधिग्रहण करना था , लेकिन सरकार ने सिर्फ 12690 करोड़ रुपए के कर्ज को ही अधिग्रहित किया।
    यही नहीं शेष बची राशि का भुगतान भी नहीं किया गया और न ही इस राशि को अधिग्रहित किया गया। इसकी वजह से प्रोजेक्ट समाप्ती के बाद भी इसका मुख्य उद्देश्य अधूरा ही रह गया। उधर, जब सरकार को 75 फीसदी कर्ज अधिग्रहित करना था, उसी अवधि में बिजली कंपनियों को 11200 करोड़ का अतिरिक्त कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ा। कैग का मनना है कि यदि सरकार तय राशि का अधिग्रहण कर लेती तो इस अतिरिक्त कर्ज को लेने की जरूरत ही नहीं रहती।


    देनदारियों का भुगतान नहीं
    कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि घाटे में चलने की वजह से अगर बिजली कंपनियों की सरकार पर चल रहीं देनदारियों को समय पर चुकाया जाता तो उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सकती थी, लेकिन सरकार ने इस सबंध में कोई कदम ही नहीं उठाया। इसकी वजह से प्रदेश सरकार पर इस अवधि में ही 1606.23 करोड़ की देनदारी बची रही, जिसकी वजह से बिजली कंपनियों का आर्थिक संचालन मुश्किल बना रहा। इसी तरह से कैग ने माना की बिजली कंपनियों के परफार्मेंस के तय लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सका। हद तो यह हो गई कि ट्रांसमिशन लॉस कम किया जाना था , लेकिन वह उलटे बढ़ गया। कैग ने अपने ऑडिट में पाया कि बिजली कंपनियों को समग्र तकनीकी एवं वाणिज्यिक हानि पंद्रह प्रतिशत तक लानी थी, वर्ष 2015-16 में 23.45 प्रतिशत थी। इसके लिए चरणबद्ध कमी के लक्ष्य तय किए गए थे, लेकिन 2019-20 तक उलटे यह हानि बढ़कर 33.08 प्रतिशत तक पहुंच गई।

    उपभोक्ताओं पर ही आया पूरा बोझ
    कैग ने ऑडिट में बिजली कंपनियों और सरकार के बिजली महकमे के स्तर पर लक्ष्यों को पूरा करने और आर्थिक संचालन में कोताही पाई गई , जिसकी वजह से इसका सारा बोझ घूम फिर कर अप्रत्यक्ष रूप से बिजली उपभोक्ता पर ही डाल दिया गया।

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