पटना: बिहार (Bihar) के पूर्व डिप्टी सीएम और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) लगातार आरक्षण (Reservation) का मुद्दा उठा रहे हैं. विधानसभा सत्र (Assembly Session) के दूसरे दिन और तीसरे दिन उन्होंने लगातार इस पर बात की और उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष से इसपर कमिटी गठित करने का आग्रह किया. खास बात यह कि इस बार उन्होंने अपनी डिमांड और बढ़ा दी और 85-15 का फॉर्मूला लागू करने की मांग की. बता दें कि विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दौरान दूसरे दिन इस बात को लेकर पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव और वर्तमान डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी में थोड़ी बहसबाजी भी हुई थी. इस दौरान तेजस्वी यादव ने कहा था कि हमें सिर्फ यह चिंता है कि आरक्षित जाति को आरक्षण का लाभ मिले. आइये जानते हैं कि आखिर तेजस्वी यादव का तर्क क्या है और उनकी मंशा क्या है?
दरअसल, बिहार विधानसभा उपचुनाव के बाद तेजस्वी यादव ने आरक्षण के मुद्दे को उठाते हुए नया ट्विस्ट देने की कोशिश की है. उनका कहना है कि कि बहुजनों की आबादी 85% से ज्यादा है, इसलिए सरकार नया विधायक लाकर उन्हें कम से कम 85% आरक्षण की सुविधा दें. तेजस्वी यादव का तर्क है कि नीतीश कुमार की सरकार वंचित जातियों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 85% आरक्षण देने के लिए जो नया विधेयक लाए उसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए कोटा हो.
तेजस्वी यादव का यह भी लॉजिक है कि विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव इसकी पहल करें और विधेयक लाने के लिए कमिटी बनाएं. इसके बाद नीतीश सरकार से विधेयक लाने के लिए कहें. तेजस्वी ने आग्रह करते हुए कहा कि एक समिति समिति गठित की जाए और इस समिति को एक नया विधेयक लाने दिया जाए, जिसमें एससी-एसटी, ओबीसी-ईबीसी और ईडब्ल्यूएस के लिए संयुक्त रूप से 85% कोटा निर्धारित हो. उन्होंने कहा कि बिहार को एक नया उदाहरण स्थापित करने दें और 85-15 का फार्मूला लागू करने दें.
तेजस्वी यादव का कहना है कि नीतीश कुमार की सरकार सदन की एक समिति गठित कर 50% कोटा बढ़ाने की सिफारिश करने पर सहमत होती है तो वह उसकी पूर्ण समर्थन का आश्वासन देते हैं. तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार के लोगों को उनकी जब सरकार थी तो 17 महीने के छोटे से कार्यकाल में आरक्षण के विस्तारित सीमा को लागू किया. तेजस्वी का यह भी कहना है कि इसके लिए वह क्रेडिट की होड़ में नहीं लगेंगे सिर्फ उनकी चिंता बहुजन समाज को उसका अधिकार मिलने को लेकर है.
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