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    भारत की आर्थिक विकास दर का बढ़ना मतलब आम व्यक्ति का सशक्त होना है

  • April 24, 2022

    – डॉ. मयंक चतुर्वेदी

    भारत में टीकाकरण, आपूर्ति सुधार और नियमन में आसानी से होने वाले लाभ, निर्यात में तेज बढ़ोतरी और पूंजी खर्च करने में तेजी लाने के लिए वित्तीय मौके की उपलब्धता की मदद से ही यह संभव हो सका है कि भारत की आर्थिक विकास दर दुनिया के तमाम बड़े देशों के साथ ही हर मोर्चे पर चीन जैसे प्रतिस्पर्धी देश से अधिक रहने जा रही है। यह बढ़त सच पूछिए तो देश के आम व्यक्ति का आर्थिक रूप से सशक्त होना है।

    आज इंटरनेशनल मोनेटरी फंड यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जो कह रहा है, उसके बारे में भारत सरकार पहले से ही अनुमान लगाकर बैठी थी, इसलिए ही सरकार की ओर से जनवरी 2022 में घोषणा कर दी गई कि वर्ष 2022-23 में 8.0-8.5 प्रतिशत की दर से भारतीय इकोनॉमी बढ़ेगी। वस्तुत: इस वृद्धि का अनुमान मोदी सरकार की इस मान्यता पर आधारित है कि अब महामारी संबंधित और आर्थिक बाधाएं नहीं आएंगी। म़ॉनसून सामान्य रहेगा। दुनिया के प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा वैश्विक तरलता की निकासी बड़े स्तर पर समझदारी के साथ होगी। तेल की कीमतें भी बहुत नहीं बढ़ेंगी। बावजूद इसके यह एक हकीकत है कि आज कच्चे तेल (क्रूड आयल) की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 130 डालर प्रति बैरल तक पहुंच कर हाल फिलहाल कुछ कम दिखाई दे रही हैं। यह हमारे देश के लिए चिंताजनक अवश्य है। भारत में हर दिन 55.50 लाख बैरल कच्चे तेल की खपत होती है। लेकिन इसके साथ ही यह हमारे लिए अच्छा है कि इस वर्ष वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं में तेजी से कमी आई है, जिसका कि अधिकतम लाभ इन दिनों भारत को मिलता दिख रहा है।

    भारत के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय आर्थिक रिपोर्ट
    इंटरनेशनल मोनेटरी फंड (आईएमएफ) की तरफ से लगाया गया ये अनुमान कि इस साल ग्रोथ रेट 8.2 रह सकती है, इसलिए बेहद खास है क्योंकि अमेरिका और चीन के बारे में उसका जो अनुमान है, भारत उससे कहीं आगे दिखाई दे रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था चीन की तुलना में लगभग दोगुनी रफ्तार से बढ़ती दिख रही है। चीन की ग्रोथ रेथ 4.4 फीसद तक ही रहने वाली है, जबकि अमेरिका की ग्रोथ रेट 3.7 फीसद तक अधिकतम जाने का अनुमान है। यहां सिर्फ बात इंटरनेशनल मोनेटरी फंड की ही नहीं है, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक की वर्ष 2022-23 के लिए जीडीपी वृद्धि में क्रमशः 8.7 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत के अनुमान लगाए गए हैं।

    वैश्विक आंकड़ों के अनुसार सभी ओर से भारत की स्थिति बेहतर रहने की बात कही जाती रही है। विश्व बैंक ने अपनी ‘वैश्विक आर्थिक संभावना’ रिपोर्ट में कहा था कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था 3.7 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है, जो पिछले साल के 5.6 प्रतिशत की तुलना में काफी कम है। इसी तरह 2021 में आठ फीसदी की दर से वृद्धि दर्ज वाले चीन के 2022 में 5.1 फीसदी से बढ़ने की उम्मीद है। यूरोपीय देशों के समूह के इस साल सामूहिक तौर पर 4.2 प्रतिशत की दर से बढ़ने की संभावना विश्व बैंक ने जताई, जबकि पिछले साल यह 5.2 फीसदी थी। जापान की वृद्धि दर इस साल 2.9 प्रतिशत रह सकती है जो पिछले साल के 1.7 फीसदी से अधिक होगी। कुल मिलाकर इससे पता चलता है कि समग्र आर्थिक गतिविधि महामारी के पूर्व स्तर की स्थिति को पार कर गई है और भारत आज विश्व के तमाम देशों को आर्थिक वृद्धि दर में पीछे छोड़ता हुआ दिख रहा है।

    भारत में सामान की खपत विनिर्माण की तुलना में अधिक हो रही
    इसके साथ ही भारत में महंगाई दर में भी तेजी आई है, देश में खुदरा महंगाई दर 16 महीने के उच्च स्तर पर है। कह सकते हैं कि बीते मार्च माह में लगातार तीसरे महीने खुदरा महंगाई दर आरबीआई के टार्गेट रेंज से ज्यादा है। आरबीआई ने सरकार को खुदरा महंगाई दर 2-6 फीसदी के बीच सीमित रखने को कहा था। किंतु इस बढ़ती महंगाई के पीछे के कारण पर भी हमें गौर करना चाहिए। जो सीधे महंगाई को लेकर केंद्र सरकार को टार्गेट करते हैं, उन्हें भी यह समझना होगा कि खुदरा महंगाई दर में यह तेजी खाने-पीने के सामानों की कीमतों में उछाल की वजह से आई है। वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक मार्च 2022 महीने में महंगाई दर की मुख्य वजह पेट्रोलियम नैचुरल गैस, मिनरल ऑयल, बेसिक मेटल्स की कीमतों में तेजी है जो रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ग्लोबल सप्लाई चेन में पड़े व्यवधान से पैदा हुआ है। मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन के जारी आंकड़े भी यही बता रहे हैं। इसका एक अर्थ यह भी हुआ कि भारत में सामान की खपत विनिर्माण की तुलना में अधिक हो रही है।

    ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट बढ़ने से सभी ओर बना हुआ है पूंजी का प्रवाह
    वस्तुत: सप्लाई से अधिक डिमान्ड साथ में यह भी बता रहा है कि आर्थिक रूप से यहां के लोगों के पास पहले की तुलना में अधिक रुपए पहुंच रहे हैं, उनकी आर्थिक ग्रोथ हो रही है और वे दिल खोलकर खर्च करने से अपने को पीछे नहीं रख रहे हैं। इसे भारत में आर्थिक विकास दर से भी जोड़कर देखा जा सकता है। यहां डिमाण्ड और सप्लाई के सिद्धांत में एक बात स्पष्ट है कि यदि बाजार में लगातार किसी वस्तु की जरूरत बनी हुई है, तब इसका अर्थ यह है कि उसके खरीदार बढ़ रहे हैं। ऐसे में स्वभाविक है, उस वस्तु से जुड़े जितने भी लोग होंगे उन्हें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष उसका लाभ मिलेगा। ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ने का सीधा अर्थ है कि पूंजी का प्रवाह सभी ओर समान रूप से हो रहा है। यानी अधिकतम लोगों तक अधिकतम लाभ आज के समय में पहुंच रहा है।

    किसानों की आय में हो रही है वृद्धि
    खेती-किसानी की यदि यहां बात की जाए तो मोदी सरकार केंद्रीय पूल के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ खाद्यान्नों की खरीद अपनी बढ़ोतरी का रुझान लगातार बनाए हुए है। इससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय में वृद्धि हुई है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कृषि क्षेत्र के इस बेहतरीन प्रदर्शन में सरकार की नीतियां काफी मददगार रही हैं, जिससे किसानों को महामारी संबंधी बाधाओं के बावजूद समय पर बीजों और उर्वरकों की आपूर्ति सुनिश्चित हुई। कृषि क्षेत्र को अच्छी मॉनसून बारिश से भी मदद मिली है, जो जल संचय स्थलों के 10 साल की औसत से अधिक स्तर के रूप में दिखता है।

    देश का स्वर्ण भंडार 62.6 करोड़ डॉलर बढ़कर 43.145 अरब डॉलर पर
    भारत का माल एवं सेवा निर्यात भी पहले की तुलना में काफी हद तक मजबूत हुआ है। उत्पाद निर्यात महामारी से संबद्ध बहुत सी वैश्विक आपूर्ति बाधाओं के बावजूद 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा बना हुआ है। कुल सेवा निर्यात में भी तीव्र उछाल है और यह उछाल व्यावसायिक और प्रबंधन सलाहकार सेवाओं, ऑडियो-विजुअल और संबद्ध सेवाओं, माल ढुलाई सेवाओं, दूरसंचार, कंप्यूटर और सूचना सेवाओं के माध्यम से आया है। आयात में भी घरेलू मांग बढने और आयातित कच्चे तेल तथा धातुओं की कीमत में वृद्धि के चलते काफी मजबूती आई है। वैश्विक महामारी से उत्पन्न सभी अवरोधों के बावजूद भारत का भुगतान संतुलन पिछले दो वर्षों के दौरान अधिशेष में बना हुआ है। इससे भारतीय रिजर्व बैंक को अपना विदेशी मुद्रा भंडार संचित रखने में मदद मिली बल्कि अन्य अर्थ से जुड़े तमाम क्षेत्रों में संतुलन बना हुआ है। देश का स्वर्ण भंडार 62.6 करोड़ डॉलर बढ़कर 43.145 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। इसी तरह से अन्य क्षेत्रों में विकास पर फोकस करते हुए केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार काम कर रही है।

    मोदी सरकार की मौद्रिक नीति ने बनाया विकास का रास्ता
    भारत में कोरोना महामारी फैलने के बाद से यही देखा गया कि मोदी सरकार ने विकास को सहारा देने और उसमें सहायता प्रदान करने के लिए मौद्रिक नीति तैयार की, उसे सावधानीपूर्वक नियंत्रित किया गया, ताकि अतिरिक्त नकदी को अगले कुछ वर्षों में कहीं और न लगा दिया जाए। इस सुरक्षा जाल का एक अन्य पहलू सामान्यत: अर्थव्यवस्था और विशेष तौर पर एमएसएमई की सहायता के लिए सरकारी प्रतिभूतियों का उपयोग के रूप में सामने आया। पिछले दो वर्षों में सरकार ने उद्योग, सेवा, वैश्विक रूझानों, व्यापक स्थिरता, संकेतकों और सार्वजनिक तथा निजी स्रोतों दोनों की कई अन्य गतिविधियों सहित 80 उच्च आवृत्ति संकेतकों (हाई फ्रीक्वेंसी इंडीकेटर्स-एचएफआई) से लाभ उठाया है। इसका यह परिणाम मानिए कि आज भारतीय अर्थव्यवस्था सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तत्पर है ।

    (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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