नई दिल्ली । यूगोव-मिंट-सीपीआर मिलेनियल (YouGov-Mint-CPR Millennial)के एक सर्वे में शामिल 88 प्रतिशत लोगों ने खुद को मध्यम वर्ग (middle class) का माना है। हालांकि, प्रति माह 50,000 रुपये से कम कमाने वाले भी खुद(The earners themselves) को मध्यम वर्ग में मानते हैं। यूगोव-मिंट-सीपीआर मिलेनियल के इस सर्वे में शामिल इस आय वर्ग के 90 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे मध्यम वर्ग हैं, लेकिन 4 लाख रुपये प्रति माह से अधिक कमाने वालों में से 57 प्रतिशत ने भी खुद को मध्यम वर्ग का माना है। क्या इस मध्यम वर्ग को समझने के लिए भारत में कोई बेहतर रूपरेखा है? एक सुनिश्चित पैमाना बनाकर काम करने की जरूरत है।
तीन तरह के भारतीय
ब्लूम वेंचर्स के मुताबिक, भारत के उपभोक्ताओं को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है। पहला: यह संपन्न वर्ग है, जिसमें लगभग 3 करोड़ परिवार या 12 करोड़ लोग शामिल हैं, जिनमें प्रति व्यक्ति आय लगभग 12.3 लाख रुपये है और यह देश का मुख्य उपभोक्ता वर्ग है।
दूसरा:इसके नीचे आकांक्षी वर्ग है, जिसमें 30 करोड़ लोग शामिल हैं, जिनकी प्रति व्यक्ति आय लगभग 2.5 लाख रुपये है।
तीसरा:पिरामिड के सबसे निचले-तीसरे वर्ग में भारत की अधिकांश आबादी है, जिसके पास किसी भी ऋण-ब्याज की गारंटी देने योग्य कमाई नहीं है।
असमानता घटाना जरूरी
भारत का संपन्न वर्ग देश में प्रदूषण को लेकर चिंतित नहीं है, वह अवसर मिलते ही यूरोप या ऐसे देशों में चला जा रहा है, जहां स्थितियां आरामदेह हैं। दूसरी ओर, मध्यम वर्ग और निचले वर्ग के लोग अपने जरूरी खर्चों में कटौती करने को मजबूर हैं। आय के मोर्चे पर अगर देखें, तो नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के अनुसार, 2017-18 और 2022-23 के बीच श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी में प्रति वर्ष केवल 0.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
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