लखनऊ । उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में कोरोना के खतरे के बीच (Amid the threat of Corona) माता-पिता (Parents) अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने (Send Children to School) से कतरा रहे हैं (Hesitant) ।
माता-पिता भी चिंतित हैं क्योंकि ज्यादातर बच्चे स्कूल जाने के लिए बसों या रिक्शा का इस्तेमाल करते हैं। प्रयागराज में तीन बच्चों की मां सुनीता कपूर ने कहा, “रिक्शा और स्कूल बसों में कई बच्चे जाते हैं। स्वच्छता ठीक से नहीं की जाती है और कोई पर्यवेक्षक भी नहीं है। हम अपनी कार में बच्चे को छोड़ने और लाने का जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि पेट्रोल की कीमतें बढ़ गई हैं। इसलिए जोखिम अधिक है।”
राज्य के अधिकांश स्कूलों ने अब स्कूलों के फिर से खुलने पर हाइब्रिड मोड में जारी रखने का फैसला किया है। लखनऊ के एक निजी स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा, “स्थिति बेहद अप्रत्याशित है। कुछ माता-पिता फीजिकल कक्षाओं की उम्मीद कर रहे हैं, जबकि अन्य अनिच्छुक हैं और चाहते हैं कि उनके बच्चे घर पर रहें।”
“पिछले कुछ दिनों में, उपस्थिति कम हो गई है। 15-18 आयु वर्ग के बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने से पहले उनके टीकाकरण का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। हम स्थिति सामान्य होने तक ऑनलाइन कक्षाएं फिर से शुरू करेंगे।”
आठ साल के एक बच्चे की मां रूचि अरोड़ा ने कहा, , “मेरे बेटे का जीवन उसकी शिक्षा से ज्यादा मेरे लिए मायने रखता है। मैंने अपने बेटे को 17 जनवरी(स्कूल खुलने की तिथि) से स्कूल नहीं भेजने का फैसला किया है। हमें ऑनलाइन शिक्षण में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है ,लेकिन हम अभी भी अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेजेंगे।” उसने कहा कि उसका आठ साल का बेटा जो तीसरी कक्षा में पढ़ता है, उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह कोविड प्रोटोकॉल का पालन करेगा। उसने कहा, “बच्चे एक-दूसरे के साथ खेलते हैं, अपना टिफिन साझा करते हैं और नियमित रूप से सैनिटाइजर का उपयोग नहीं करते हैं। वास्तव में, वे मास्क तभी पहनते हैं जब शिक्षक ऐसा कहते हैं। ऐसी स्थिति में हम जोखिम कैसे ले सकते हैं?”
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