उज्जैन। शहर में मां दुर्गा पर्व नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर से हो रही है। कारीगर मां दुर्गा की प्रतिमा तैयार करने में जुटे हुए हैं। खास बात यह है कि उज्जैन में बंगाली कलाकार कोलकाता के गंगा घाट की मिट्टी, कानपुर के बास और पंजाब के करनाल से मंगवाई गई घास से दुर्गा प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। इसके अलावा इसमें वेश्या वाड़ी से मंगवाई गई मिट्टी का भी इस्तेमाल किया जाता हैं।
उल्लेखनीय है कि उज्जैन में कई सालों से बंगाली कलाकार यहाँ आकर 100 से 200 दुर्गा प्रतिमाएँ बनाते हैं। वे गंगा नदी, वेश्या वाड़ी और अन्य शहरों से लाई गई घास और बास से प्रतिमाएँ तैयार करते हैं। इस कारण इन प्रतिमाओं की झलक आम दुर्गा प्रतिमाओं से काफी अलग और आकर्षक होती है। उज्जैन में दो जगह बंगाली कलाकार मूर्ति बना रहे हैं। बंगाली कॉलोनी स्थित मृदा आकृति मूर्ति आर्ट्स के विजय पाल ने अग्रिबाण को चर्चा में बताया कि इस साल हम माँ दुर्गा की 70 से अधिक प्रतिमाएँ बना रहे हैं। जिसके लिए विशेष साड़ी व ज्वेलरी कोलकाता से मंगवाई गई है। इसके अलावा गंगा नदी की मिट्टी का उपयोग भी दुर्गा प्रतिमा बनाने में किया जाता है। हम अकेले ही हर साल कोलकाता से 600 बोरी गंगा नदी की मिट्टी मंगवाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि हम वेश्याबाड़ी से लाई गई मिट्टी का भी शगुन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। यह हमारी परंपरा है। इस मिट्टी के बिना हम मूर्ति बना ही नहीं सकते हैं। यहाँ से लाई गई मिट्टी को शगुन के तौर पर दूसरी मिट्टी में मिलाकर माता की प्रतिमा को आकार दिया जाता है।
600 बोरी आई गंगा की मिट्टी, 800 नग बास
श्री पाल ने बताया कि माँ दुर्गा की प्रतिमाओं का निर्माण गंगा की सफेद मिट्टी से होता है, इसलिए इस साल गंगा की 600 बोरी मिट्टी बुलवाई गई है, जिसका इस्तेमाल प्रतिमाओं के चेहरे, उंगलियों के निर्माण के साथ ही फिनिशिंग के लिए किया जाता है। प्रतिमा के लिए शिप्रा की पीली मिट्टी भी मंगवाई जाती है। वहीं 800 नग बांस कानपुर से और श्रृंगार का सामान कोलकाता से लाया जाता है। बास कानपुर से इसलिए मंगवाया जाता हैं, क्योंकि यह अन्य जगहों के बासों की तुलना में मजबूत और मोटा होता हैं।
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