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    अप्रैल माह में उठते जनाजे देखकर रूह कांपी थी

  • September 29, 2020


    रमजान माह के बाद कब्रिस्तान में आने वाली मय्यतों से मुस्लिम समुदाय में राहत की सांस
    इन्दौर, निलेश राठौर।
    लॉकडाउन के प्रथम चरण में जब कोरोना ने देश के साथ ही शहर में अपने पैर पसारना शुरू किए ही थे, तब मुस्लिम बस्तियों में मौत तांडव कर रही थी। मगर आज शहर के कब्रिस्तानों के ताजे आंकड़े देखे जाएं तो हम यह कहते हैं कि अनलॉक हुए शहर के बाद मौत ने अपना रुख दूसरी ओर कर लिया है और श्मशानों में चिता की लपटें तेज हो गई हैं, वहीं कब्रिस्तान में आने वाली मय्यतों से राहत की सांस ली जा रही है।
    शहर में मौजूद श्मशान और कब्रिस्तानों के ताजा आंकड़े देखें तो हम यह पुरे यकीन से कह सकते हैं कि कोरोना वायरस ने अपने शुरुआती दौर में जिन इलाकों में मौत का कहर ढाया था या यूं कहें कि लॉकडाउन लगने पर इलाज के अभाव में लोगों ने जान गंवाई थी, वहां अब शांति है। सितम्बर माह में श्मशानों की आंकड़ों वाली खबर प्रकाशित करने के बाद अग्निबाण संवाददाता कब्रिस्तान के आंकड़े देखने पहुंचे तो पता चला कि सितम्बर माह में शहर के प्रमुख मुक्तिधाम पंचकुइया, मालवा मिल, मेघदूत (सयाजी), रीजनल पार्क, पालदा मुक्तिधाम, रामबाग, जूनी इन्दौर और बाणगंगा में केवल 20 दिनों में जहां 1306 चिताएं कोरोना और सामान्य मौत से मरने वाले शहरी और बाहर से आने वाले लोगों की जली हैं, वहीं सितम्बर माह में पिछले 24 दिनों में आने वाली मय्यतों के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह केवल 114 पर आकर रुक गया, यानी श्मशानों के आंकड़ों का केवल 9 प्रतिशत।
    लुनियापुरा में पहुंचे सर्वाधिक 153 जनाजे तो महू नाका में 143
    भारत में जब कोरोना ने अपने पैर पसारने शुरू किए तो सबसे पहला अटैक मुस्लिम बस्तियों पर किया था। उसी समय शहर की इन मुस्लिम बस्तियों में शायद कोरोना से तो नहीं, परंतु अन्य बीमारियों जैसे सांस, हार्ट अटैक, किडनी फेल, लिवर फेल, निमोनिया जैसी अन्य कई बीमारियों से ग्रसित लोगों ने घरों में ही इलाज न मिलने के अभाव में दम तोड़ दिया था, क्योंकि कोरोना के खौफ के चलते किसी भी बीमारी का मरीज अस्पताल नहीं जा रहा था। इस दौरान खजराना गांव के छोटे से कब्रिस्तान में जहां महीने में 2 या 5 मय्यतें आती हैं वहां पर यह आंकड़ा 14 पर पहुंच गया था। वहीं लुनियापुरा में सर्वाधिक 153 जनाजे पहुंचे तो महू नाका में 143 और चंदन नगर में 121। इन तीन कब्रिस्तानों में ही 400 से अधिक कर्बें खुदीं। कब्रिस्तान में कब्र खोदने वालों ने अपने इस दिल दहलाने वाले अनुभव को हमसे साझा करते हुए बताया कि इतनी बड़ी तादात में आई मय्यतों को देखकर हम सबके हाथ-पैर फूल गए थे। यहां तक कि हमारी रूह भी कांप उठी थी। उनका कहना था कि हमने क्या हमारे बाप-दादाओं ने भी एक माह में इतनी मय्यतें घरों से नहीं उठाई होंगी। इसके अलावा आजाद नगर में 79, फरीदाबाग कब्रिस्तान खजराना में 106 तो बाणगंगा कब्रिस्तान भी यह आंकड़ा 91 पर पहुंच गया था। पंचकुइया कब्रिस्तान लुहारों का प्राइवेट कब्रिस्तान है, जहां इस माह में सर्वाधिक 8 मय्यतें आईं, जबकि यहां महीने में 1 या ज्यादा से ज्यादा 3 मय्यतें आती हैं।
    हाथों में छाले पड़ गए थे कब्र खोदते-खोदते
    इसी माह में कब्र खोदने वालों के हाथों ने जवाब दे दिया था, क्योंकि उनके हाथों में बड़े-बड़े छाले पड़ गए थे। चंदन नगर कब्रिस्तान में कब्र खोदने वाले सलीम बाबा के हाथों में तो अभी भी जख्म हैं, जो धीरे-धीरे ठीक हो रहे हैं। सामान्य दिनों में कब्रें खोदने में जहां 4 से 6 घंटे का समय लगता है, वहीं गर्मी के समय 8 से 10 घंटे तक भी लग जाते हैं।

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