क्या यह जरूरी था महामहिम… दो दिन पहले आपको किसी मंदिर में झाड़ू लगाते, एक साधारण से घर में रहते और आम लोगों के बीच गुजर-बसर करते देखा था तो लगा था देश एक बार फिर गांधी-शास्त्री की सादगी को सर्वोच्च पद पर निहारेगा…लेकिन कल केवल आपके शपथ समारोह के लिए सेना के तीनों अंगों का जमावड़ा… तोपों की सलामी… कारों की कतार… घुड़सवारों की फौज और खुद को गरीब परिवार की समझने वाली महिला को उनके अपने महल तक ले जाने के लिए सतरंगी कारवां जहां नजर आया वहीं वैभवशाली परंपराओं के बीच गूंजते आपके सादगी के सुर सनाई दिए कि इस देश में गरीब के सपने भी पूरे होते हैं…लेकिन सच कहें तो आपकी इस गरीबी को देखकर बड़ा रश्क हुआ…यह वही गरीबी है, जो मेहनतकशों के चुकाए करों से जुटाए पैसों से आपकी शपथ को वैभवी बना रही है…यह वही गरीबी है, जो एक गरीब को गरीब से दूर ले जा रही है…यह वही गरीबी है, जो अमीरों की कैद में नजर आ रही है…यह वही गरीबी है, जो अपनी गरीबी पर इठला रही है, क्योंकि इस देश में एक गरीब के सपने तो दो निवालों से पूरे हो जाते हैं…महलों के ख्वाब तो नींद में भी नहीं आते हैं…इस देश में राजनीति गरीबी को सम्मान देने के लिए आगे आती तो कोई बेरोजगार नहीं होता…कोई भूखा नहीं सोता…कोई बीमार नहीं मरता…कोई कांधे पर अपनों की लाशों को लेकर पैदल नहीं चलता…आप सौभाग्यशाली हैं… आपने मुकाम पाया…देश के सर्वोच्च पद को अपनाया, लेकिन सच कहें तो उस पद पर बैठे व्यक्ति के हिस्से में भी केवल सरकार की तारीफ का काम ही आया…उस पद पर बैठे व्यक्ति ने केवल अभिभाषण पढऩे का कत्र्तव्य निभाया…पांच साल कब गुजर गए किसी राष्ट्रपति के समझ में नहीं आया…देश की आजादी से लेकर आज तक के वक्त में यदि किसी राष्ट्रपति को मौका मिला तो वो थे ज्ञानी जेलसिंह, जिन्हें इंदिराजी की हत्या के बाद देश की बागडोर थमाने का काम जिम्मे आया और उन्होंने भी इंदिराजी की विरासत उनके बेटे राजीव को सौंपकर पीछा छुड़ाया…आपने वादा किया है आप गरीबों की गरीबी दूर करेंगी…आदिवासियों का उद्धार करेंगी…हमारी निगाहें देखती रहेंगी कि आप अपने वादों को कैसे पूरा करेंगी या आप भी परंपराओं का निर्वहन करते हुए अपना समय पूरा करेंगी…
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