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    ‘ग्वालियर की महारानी’ के अस्पताल में इंजीनियरों ने जमकर कूटा माल

  • May 15, 2022

    • पुरानी बिल्डिंग तोडऩे से लेकर नई बिल्डिंग बनाने तक बनाया पैसा
    • आर्थिक अनियमिता में एक इंजीनियर निलंबित, कई जांच में फंसे
    • ग्वालियर में निर्माणाधीन 1000 बिस्तरीय अस्पताल का मामला

    भोपाल। लोक निर्माण विभाग की भवन निर्माण विंग पीआईयू के इंजीनियरों ने ग्वालियर के गजरा राजा मेडिकल कॉलेज के 1000 बिस्तर के अस्पताल निर्माण में जमकर माल कूटा है। पीआईयू ग्वालियर के इंजीनियरों ने अस्पताल के लिए पुराने भवन को तोडऩे से लेकर नया भवन बनाने तक में करोड़ों रुपए की आर्थिक अनियमितता कर डाली है। अस्पताल निर्माण की गई गंभीर आर्थिक अनियमितता का मामला राज्य शासन तक पहुंच गया है। जिसमें अस्पताल भवन निर्माण से जुड़े 9 इंजीनियर बुरी तरह फंस गए हैं। इनमें से एक इंजीनियर प्रदीप अष्टपुत्रे को निलंबित कर दिया है। जबकि अन्य अफसरों पर बड़ी कार्रवाई की तैयारी है। ग्वालियर का निर्माणीधीन 1000 बेड का अस्तपाल ग्वालियर-चंबल संभाग की जनता के लिए बरदान साबित होने वाला है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने अस्पताल निर्माण में ख्ूाब मेहनत की है,लेकिन लोनिवि के अफसरों ने अस्तपाल निर्माण में आर्थिक अनियमितताएं की हैं। जिसकी वजह से निर्माण की गुणवत्ता एवं डिजाइन एवं अन्य में अपने स्तर पर बदलाव कर आर्थिक अनियमितता की गई है। फिलहाल मामला जांच में है। इस मामले में कार्यालय संचालक पीआईयू की भी भूमिका संदिग्ध है। फिलहाल यह मामला मुख्यमंत्री तक पहुंच गया है।


    यह है अनियिमिताएं
    प्रभारी संभागीय परियोजना पीआईयू प्रदीप अष्टपुत्रे पर आरोप हैं कि इन्होंने मुख्यत: पुराना भवन तोडऩे के लिए नीलामी न कर 80.00 लाख का भुगतान किया और 1 करोड़ के उपयोगी मलवे की अफरा-तफरी की। अस्पताल की पुनरीक्षित प्रशासकीय स्वीकृति के लिए मुख्य सचिव द्वारा बुलाई परियोजना परीक्षण समिति की बैठक में यह तथ्य सामने आया कि प्रशासकीय स्वीकृति 7 मंजिल की थी, लेकिन इंजीनियरों ने बिना किसी अधिकारिता के 9 मंजिल के भवन निर्माण की डिजाइन का अनुमोदन किया गया। जिससे 40 करोड़ का अतिरिक्त वित्तीय भार राज्य शासन पर आया।

    नियमों को किया दरकिनार
    पीआईयू (परियोजना क्रियान्वयन इकाई) ग्वालियर अतिरिक्त परियोजना संचालक ने 5 बार में 960 करोड़ की पूरक स्वीकृतियां जारी की। जबकि उन्हें ठेका लागत 230 करोड़ से सिर्फ 10 फीसदी (23 करोड़) की स्वीकृति देने का ही अधिकार है। 10 फीसदी से अधिक की स्वीकृति के लिए फाइल शासन के पास जाती है। अतिरिक्त परियोजना संचालक ने अपने स्तर पर ही यह निर्णय ले लिया था।

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