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    चुनावी माहौल में निर्मला सीतारमण ने देश की जनता को समझाए जीएसटी के फायदे

  • May 07, 2024

    नई दिल्‍ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इन दिनों देश भर के प्रबुद्ध वर्गों के बीच मोदी सरकार के काम काज के फायदे गिनाने में खासी व्यस्त हैं. वित्त मंत्रालय की कमान संभालने के बाद निर्मला सीतारमण ने जीएसटी को अमली जामा पहनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. अब चुनावी माहौल गरमा चुका है, तब वित्त मंत्री ने एक लंबा लेख लिखकर जीएसटी के इतिहास से लेकर संघिय ठांचे को दुरुस्त करने में इसकी भूमिका को लेकर भी खूब दलीलें दी हैं. निर्मला सीतारमण ने ये बताया है कि जीएसटी, ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ के प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति है. उनका कहना है कि हम निरंतर यह सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयासरत हैं कि करों को बढ़ाने के बजाय, बेहतर करदाता सेवाओं और कार्यकुशलता में वृद्धि के माध्यम से नई ऊंचाइयों को छुआ जाए.

    निर्मला सीतारणण के लेख में लिखा है कि जीएसटी संरचना के अंतर्गत दो महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की गई हैं. जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण के अध्यक्ष की नियुक्ति हुई है और आर्थिक गतिविधि में वृद्धि का नतीजा ये निकला है कि सकल जीएसटी संग्रह 2 लाख करोड़ रुपये की सीमा को पार कर गया है. निर्मला सीतारमण ने इस लेख को तीन भागों में विभाजित किया है. पहला भाग जीएसटी की उत्पत्ति और अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को सुव्यवस्थित करने में इसकी भूमिका की पड़ताल करता है. दूसरा भाग इस बात की चर्चा करता है कि कैसे जीएसटी ने गरीब-समर्थक दृष्टिकोण के माध्यम से लोगों को लाभान्वित किया है. तीसरा भाग सहकारी और राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा देने में जीएसटी की भूमिका पर प्रकाश डालता है.

    लेख के पहले हिस्से में वित्त मंत्री ने बताया है कि सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में जीएसटी पर विचार किया गया था. अपने 10 वर्षों के कार्यकाल में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार जीएसटी पर राजनीतिक सहमति प्राप्त करने में असफल रही. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जीएसटी को लाने की आवश्यक सहमति प्राप्त की गई और 2016 में संसद में जीएसटी अधिनियम पारित किए गए. निर्मला सीतारमण के मुताबिक, जीएसटी से पहले भारत की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली विभाजित और जटिल थी जिसमें प्रत्येक राज्य विभिन्न नियमों और कर दरों के साथ व्यावहारिक रूप से अपने आप में एक अलग बाजार था. केंद्रीय उत्पाद शुल्क जैसे करों के लिए इनपुट का लाभ नहीं उठाया जा सका जिससे आम लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ गया.

    जीएसटी ने 17 करों और 13 उपकरों को 5-स्तरीय संरचना में सुव्यवस्थित किया और कर-शासन को सरल बनाया. पंजीकरण के लिए टर्नओवर सीमा, वस्तु के लिए 40 लाख रुपये और सेवाओं के लिए 20 लाख रुपये (वैट के तहत औसतन 5 लाख रुपये से) हो गई. जीएसटी ने राज्यों के 495 अलग -अलग प्रविष्टियों (चालान, फॉर्म, घोषणा, आदि) की संख्या को घटाकर केवल 12 कर दिया. जीएसटी; एकसमान प्रक्रियाओं, सरल पंजीकरण, एकल रिटर्न और न्यूनतम भौतिक संचालन व पूरी तरह से सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा परिचालित प्रणाली के माध्यम से अनुपालन को सरल बनाने में सफल रहा.


    मासिक भुगतान योजना के साथ तिमाही रिटर्न तथा अनुपालन की बहुत कम प्रक्रियाओं के कारण, 44 लाख से अधिक छोटे करदाताओं और एमएसएमई को लाभ हुआ है. एक डेलॉइट सर्वेक्षण (2023) के अनुसार, अधिकतम आपूर्ति श्रृंखलाओं के साथ लागत में कमी के लिए 88% एमएसएमई जीएसटी का भुगतान करते हैं. जीएसटी ने ई-इनवॉइस, ट्रेड्स और अकाउंट एग्रीगेटर फ्रेमवर्क जैसे उपकरणों के माध्यम से एमएसएमई वित्त पोषण में वृद्धि की है. जीएसटी के तहत पंजीकृत करदाताओं की संख्या 2017 के 65 लाख से बढ़कर 1.4 करोड़ से अधिक हो गई है. ई-वे बिल प्रणाली ने लॉजिस्टिक लागत को कम करके अंतर-राज्य जांच-चौकियों को ख़त्म कर दिया. ट्रकों की दैनिक यात्रा में 44% की वृद्धि हुई और टैक्स ‘नाका’ पर भ्रष्टाचार कम हुआ. परिणामस्वरूप, घरेलू सामानों का अंतर-राज्य व्यापार, वित्त वर्ष 18 के 23.5% से बढ़कर वित्त वर्ष 22 में जीडीपी का 35% हो गया.

    निर्मला सीतारमण ने लेख के दूसरे हिस्से में ये बताया है कि औसत जीएसटी दर 2017 के बाद से लगातार कम हो रही है, जिससे जीएसटी के गरीब-समर्थक दृष्टिकोण की झलक मिलती है. राजस्व तटस्थ दर 15.3% होने का सुझाव दिया गया था, लेकिन 2017 में यह केवल 14.4% था और यह 2019 में घटकर 11.6% रह गया है. जीएसटी ने पूर्व-जीएसटी दरों की तुलना में कई आवश्यक वस्तुओं के टैक्स को कम किया है. बालों के तेल और साबुन जैसी सामान्य वस्तुओं में 28% से 18% तक कर-कटौती हुई है. विद्युत उपकरणों पर पहले 31.5% टैक्स लगाया जाता था, जो अब कम होकर 12% रह गया है. सिनेमा के टिकटों में भी टैक्स की कमी की गई है. 2017 से कर की दरों को युक्तिसंगत बनाया गया है. राष्ट्रीय मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण ने यह सुनिश्चित किया कि कंपनियां उपभोक्ताओं को लाभ प्रदान करें. जीएसटी ने कई आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को छूट दी है, जैसे बिना ब्रांड वाली खाद्य वस्तुएं, कुछ जीवन रक्षक दवाएं, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, सार्वजनिक परिवहन, सैनिटरी नैपकिन, श्रवण सहायता उपकरण के हिस्सों, कृषि सेवाओं, आदि.

    तीसरे हिस्से में वित्त मंत्री ने लिखा है कि जीएसटी, भारत में राज्यों को सशक्त बनाकर सहकारी संघवाद का उदाहरण पेश करता है. जीएसटी काउंसिल, 75% बहुमत वोट की आवश्यकता के साथ, केंद्र को एक तिहाई मतदान शक्ति और राज्यों को दो-तिहाई मतदान शक्ति प्रदान करता है. 52 बैठकों में से, एक को छोड़कर सभी निर्णय आम सहमति से हुए हैं. निर्मला कहतीं हैं कि जीएसटी काउंसिल के अध्यक्ष के रूप में मैंने सुनिश्चित किया है कि बिना किसी पूर्वाग्रह के सभी राज्यों की बातों को समान रूप से सुना जाए. यह एक मिथक है कि सभी जीएसटी संग्रह केंद्र के होते हैं. जीएसटी राज्यों के राजस्व में महत्वपूर्ण योगदान देता है – राज्यों को उस राज्य में एकत्र किए गए एसजीएसटी का लगभग 100% प्राप्त होता है, जो आईजीएसटी (यानि अंतर-राज्य व्यापार) का 50% होता है. वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर, सीजीएसटी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, यानि 42% राज्यों को दिया जाता है. जीएसटी ने टैक्स में 0.72 (जीएसटी-पूर्व) से 1.22 (2018-23) तक का सुधार किया है. क्षतिपूर्ति के समाप्त होने के बावजूद, राज्यों का राजस्व मजबूती के साथ 1.15 है. जीएसटी के बिना, वित्त वर्ष 2018-19 से 2023-24 तक राज्यों की उपकरों से राजस्व प्राप्ति 37.5 लाख करोड़ रुपये होती थी. जीएसटी के साथ, राज्यों का वास्तविक राजस्व 46.56 लाख करोड़ रुपए हो गया है.

    जीएसटी के पक्ष में ये तमाम दलीलें रखने के बाद अंत में निर्मला सीतारमण ने कहा कि जीएसटी दर, प्रस्तावित राजस्व तटस्थ दर से कम होने और राजस्व को प्रभावित करने वाले कोविड -19 के बावजूद, जीएसटी संग्रह (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में) अब जीएसटी (कुल और सकल दोनों) के पहले के स्तरों तक पहुंच गए हैं. यह दर्शाता है कि केंद्र और राज्य, सामूहिक तौर पर बेहतर कर प्रशासन के माध्यम से, हमारे करदाताओं पर कम बोझ डालते हुए समान राजस्व संग्रह करने में सक्षम हैं. सीतरणण का दावा है कि जीएसटी काउंसिल के माध्यम से केंद्र तथा राज्य, दोनों सरकारों को सामूहिक रूप से प्रणाली को और अधिक करदाता-अनुकूल बनाने के लिए काम करना चाहिए. दोनो मिल कर काम करते रहेंगे तभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘विकसित भारत’ के विज़न को साकार किया जा सकेगा.

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