सीहोर: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कुछ पदाधिकारी अपनी सरकार की छवि को धूमिल करने के प्रयास में जुटे हुए हैं. ताजा मामला भोपाल (Bhopal) के नजदीकी ग्राम झरखेड़ा (Jharkheda) का है, जहां बीजेपी के मंडल अध्यक्ष की पत्नी तत्कालीन सरपंच (Sarpanch) और सचिव (Secretary) ने मिलकर गांव की बेशकीमती जमीन को खुर्दबुर्द कर दिया है. बिना प्रशासकीय और तकनीकी स्वीकृति के पंचायत क्षेत्र में दुकानों का निर्माण कराया, जबकि राजस्व रिकॉर्ड में इन दुकानों का निर्माण दर्ज ही नहीं है.
वहीं शिकायत के बाद जब जांच में यह बात सामने आई तो तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ आशीष तिवारी ने पूर्व सरपंच और सचिव पर एफआईआर कराने के निर्देश दिए. यह आदेश करीब दो महीने पहले दिया गया था, लेकिन जनपद पंचायत सीईओ सीहोर द्वारा अभी इस मामले में केस दर्ज नहीं कराया गया है. चर्चा है कि बीजेपी मंडल अध्यक्ष के दबाव में जनपद सीईओ एफआईआर दर्ज नहीं करा पा रही हैं.
बता दें सीहोर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम पंचायत झरखेड़ा में साल 2022 के पूर्व 17 दुकानों का निर्माण कराया गया, जिनमें नियमों का उल्लघंन और वित्तीय गड़बड़ियां जांच में सामने आई है, लेकिन चौंकाने वाली बात तो यह है कि एफआईआर दर्ज कराने के निर्देशों के बाद भी इस पूरे मामले में जिम्मेदार चुप्पी साधे बैठे हैं. ऐसे में अफसरों की कार्यप्रणाली पर अब उंगलियां उठने लगी है. आखिर किन कारणों के चलते पूर्व सरपंच-सचिव पर मामला दर्ज नहीं हो सका.
जांच के दौरान दुकान खरीददारों ने पूर्व सरपंच और सचिव पर गंभीर आरोप लगाए. झरखेड़ा के कैलाश चन्द्र ने बताया कि उन्होंने एक दुकान नीलामी में खरीदी थी जिसकी कीमत दो लाख 86 हजार रुपये निर्धारित की गई थी, लेकिन उन्हें दुकान की खरीद रसीद 65 हजार दी गई. वहीं मुलीबाई ने बताया एक लाख आठ हजार नगद भुगतान करने पर उन्हें 45 हजार की रसीद दी गई. उन्होंने एक लाख 45 हजार रुपये नगद दिए जबकि उन्हें 45 हजार की रसीद मिली.
जगदीश विश्वकर्मा ने बताया कि एक दुकान उन्होंने नीलामी में खरीदी थी, जिसकी कीमत एक लाख थी जो उन्होंने पूर्व सरपंच को नगद दिए थे, लेकिन उन्हें 45 हजार रुपये की रसीद दी गई. इसी प्रकार गांव के ही लखन मेवाड़ा ने बताया कि उन्होंने दुकान के लिए एक लाख 40 हजार नगद पूर्व सरपंच को दिए, जबकि उसे 45 हजार की रसीद दी गई. दुकान बेचने के दौरान ज्यादा राशि दुकानों से ली गई जबकि उन्हें कम राशि की रसीदें दी गईं. वहीं इसकी जानकारी भी ग्राम पंचायत कार्यालय में मौजूद नहीं है.
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