भोपाल। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में बीजेपी सरकार (BJP government) की नई शराब नीति (new liquor policy) को लेकर बवाल मचा हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती (Former Chief Minister Uma Bharti) नशा मुक्ति अभियान का आगाज 14 फरवरी से करने को तैयार हैं, लेकिन इन सबके बीच सरकार के चरणबद्ध तरीके से नशा मुक्ति अभियान (drug de-addiction campaign) को तेज करने की पोल खुलती हुई नजर आ रही है। मुख्यमंत्री शिवराज ने ऐलान किया था कि प्रदेश में क्रमबद्ध तरीके से शराबबंदी की जाएगी. लेकिन, इसके उलट उनके इस ऐलान के बाद से साल दर साल प्रदेश में शराब की खपत भी बढ़ रही है और सरकार के मुनाफे में भी वृद्धि हो रही है. नशा मुक्ति जैसे अभियान गुम होते हुए नजर आ रहे हैं।
बता दें, नशा मुक्ति अभियान को लेकर सरकार का बजट भी साल दर साल घटता हुआ नजर आ रहा है. सरकार अब प्रदेश में शराब सस्ती कर आम लोगों की पहुंच तक बनाने की तैयारी में है. दूसरी ओर, नई शराब नीति को लेकर मचे घमासान पर प्रदेश के वित्त मंत्री अजीबो-गरीब तर्क दे रहे हैं. वित्त मंत्री का कहना है कि नकली शराब पीने से लोग बीमार हो जाते हैं. ऐसे में शराब की दर कम कर आम लोगों की पहुंच तक बनाने की कोशिश की जा रही है।
इस तरह बढ़ रहा राजस्व
प्रदेश में साल 2020-21 के दौरान शराब पर वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) के तौर पर राजस्व का संग्रह पिछले साल (2019-20) की तुलना में 26.14 फीसद बढ़ा है. यह बढ़कर 1183.58 करोड़ रुपये रहा, जबकि 2019-20 में यह 938.28 करोड़ और 2018-19 में 632.27 करोड़ रुपए था. प्रदेश में दुकानों पर शराब की बिक्री पर 10 प्रतिशत वैट, रेस्तरां और बार में शराब की बिक्री पर 18 प्रतिशत वैट है. मध्य प्रदेश में देसी शराब दुकान 2541, विदेशी 1070, बार लाइसेंस (होटल,रेस्टोरेंट क्लब) 358, बोटलिंग इकाइयां 34 हैं।
नशा मुक्ति जैसे अभियान का घटा बजट
बता दें, सरकार ने जहां एक ओर शराब से खजाना बढ़ाया है तो दूसरी तरफ नशा मुक्ति जैसे अभियान का बजट घटाया है. 2018 में सरकार ने नशा मुक्ति अभियान के जरिए लोगों को नशे से दूर रखने के लिए 10 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया था, लेकिन साल-दर-साल यह बजट घटकर अब 73 लाख हो गया है. आलम यह है कि सामाजिक न्याय विभाग के पास इस बात का आंकड़ा नहीं है कि बीते 4 साल में नशा मुक्ति अभियान के जरिए कितने लोगों की नशा मुक्ति कराई गई।
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