भोपाल। मध्य प्रदेश में अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की जांच के पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंजूरी को लेकर नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने कहा है कि भ्रष्ट अधिकारियों के सामने शिवराज सरकार ने आत्मसमर्पण कर दिया है। उन्होंने कहा कि जब जांच एजेंसियों को पूछताछ, जांच और एफआईआर की कार्रवाई का कोई अधिकार ही नहीं है तो उनके दफ्तरों पर ताला लगा देना चाहिए।
भ्रष्टाचारप निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17 ए के तहत अब किसी भी अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी के खिलाफ जांच के लिए जांच एजेंसी को मुख्यमंत्री की मंजूरी लेना पड़ेगी। इस प्रावधान को लेकर कांग्रेस ने भाजपा की शिवराज सरकार पर हमला बोला है और सरकार के इस फैसले को दुखद बताया है। नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने कहा कि भ्रष्टाचारियों के सामने शिवराज सरकार ने एक तरह से आत्मसमर्पण कर दिया है।
अफसरों के साथ आर्थिक समझौता
सिंह ने सरकार के इस निर्णय को भ्रष्ट नौकरशाहों से सरकार का आर्थिक समझौता करार दिया है। सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री ने समय समय पर भ्रष्ट अधिकारियों को यह चेतावनी दी थी कि उन्हें नौकरी करने लायक नहीं रहने देंगे। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सीएम ऐसे अधिकारियों को जेल की हवा खिलाने और जमीन में गाड़ने की धमकी तक दे चुके हैं। इन चेतावनियों के आधार पर नेता प्रतिपक्ष ने आशंका जताई है कि सरकार का भ्रष्ट नौकरशाहों से आर्थिक समझौता हुआ है।
गोविंद सिंह से साजिश के तहत मूर्खतापूर्ण बयान दिलाया: भाजपा
वहीं, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. हितेष बाजपेयी ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह से किसी साजिश के तहत यह मूर्खतापूर्ण बयान दिलाया गया है क्योंकि भारत सरकार के कार्मिक विभाग का यह आदेश है। इसे सभी राज्य सरकारों को मानना होता है और इसका पालन कांग्रेस की राजस्थान व छत्तीसगढ़ सरकारों को भी करना है। डॉ. बाजपेयी ने नेता प्रतिपक्ष के बयान को जारी करने वाले कांग्रेस नेता केके मिश्रा पर हमला किया और कहा कि उन्होंने कई नेताओं को बर्बाद किया है जिन्हें मानहानि के केसों तक का सामना करना पड़ा है।
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