इंदौर। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (right to education act) के तहत गरीब बच्चों को निजी स्कूलों (private schools) में नि:शुल्क प्रवेश हर साल शैक्षणिक सत्र (academic session) के दौरान दिलवाया जाता है। इंदौर जिले में हालांकि 595 निजी स्कूल (private school) हैं, जिनमें 14 हजार से अधिक सीटें सुरक्षित रखी जाती है। हालांकि इनमें आधी से अधिक सीटें खाली भी रह जाती हैं, क्योंकि अधिकांश गरीब बच्चों के पालक भी बड़े-प्रतिष्ठित स्कूलों में ही प्रवेश दिलवाना चाहते हैं। अभी शिक्षा विभाग ने 9.38 करोड़ रुपए की राशि निजी स्कूलों के लिए मंजूर की है, जो गरीब बच्चों को प्रवेश देने के एवज में दी जाएगी। पूर्व में हालांकि लगभग 6 करोड़ रुपए इन निजी स्कूलों को बांटे भी जा चुके हैं। कक्षा पहली से लेकर 8वीं तक गरीब बच्चों को नि:शुल्क प्रवेश दिया जाता है और उसकी प्रतिपूर्ति शासन निर्धारित फीस के रूप में इन निजी स्कूलों को देता है।
हर साल शैक्षणिक सत्र शुरू होने के साथ ही आरटीई के अंतर्गत गरीब बच्चों का निजी स्कूलों में प्रवेश कराया जाता है। निजी स्कूलों को अपनी कुल सीटों में से 25 फीसदी सीटें इन गरीब बच्चों के लिए आरक्षित रखना पड़ती है और ऑनलाइन आवेदन लिया जाता है और जिन स्कूलों में निर्धारित सीटों की तुलना में कई गुना अधिक आवदेन मिलते हैं वहां पर फिर बच्चों का प्रवेश लॉटरी सिस्टम से कराया जाता है। इंदौर में ही डेली कॉलेज, सत्यसांई, सिका, चोईथराम या ऐसे अन्य बड़े स्कूलों में तय सीटों से अधिक ही आवेदन हर साल मिलते हैं। जबकि अन्य निजी स्कूलों में सीटें खाली रह जाती है। हालांकि दो से तीन बार आवेदन बुलवाने की प्रक्रिया शिक्षा विभाग द्वारा की जाती है। कई ऐसे छोटे निजी स्कूल भी हैं जो आरटीई के तहत मिलने वाली शासन की राशि के लिए गरीब बच्चों का प्रवेश भी करवाते हैं। बावजूद इसके आधी से ज्यादा सीटें बच जाती है। पिछले दिनों निजी स्कूलों ने शिक्षा विभाग से मांग की थी कि उनके एक-दो वर्ष पूर्व के भी फीस के पैसे नहीं मिले हैं। दरअसल गरीब बच्चों से तो कोई फीस नहीं ली जाती है, मगर शासन सिर्फ शैक्षणिक शुल्क की राशि ही निजी स्कूलों को देता है। हालांकि बड़े स्कूलों को तो इसमें भी घाटा होता है, क्योंकि वे हर प्रवेश पर अच्छी-खासी राशि पालकों से विभिन्न मदों पर वसूलते हैं।
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