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    प्राचीन भारत में आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन का किया जाता रहा है अनुपालन

  • June 30, 2024

    – प्रहलाद सबनानी

    पिछले कुछ वर्ष से निगमित अभिशासन को विभिन्न बैकों एवं कम्पनियों में लागू करने के भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इस सम्बंध में विस्तार से दिशा-निर्देश जारी किए हैं एवं इन्हें सहकारी क्षेत्र के बैंकों में लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के पश्चात अमेरिका में लागू की गई पूंजीवाद की नीतियों के चलते कम्पनियों को अमेरिकी सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने की खुली छूट दी गई थी ताकि अमेरिकी में बिलिनायर नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ाई जा सके और अमेरिका एक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में शामिल हो जाए। अमेरिका एवं अन्य देशों में व्यापार को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अमेरिका में आर्थिक नियमों में भारी छूट दी गई थी। इस छूट का लाभ उठाते हुए कई अमेरिकी कम्पनियों ने अन्य देशों में भी अपने व्यापार का विस्तार करते हुए अपनी कई कम्पनियां इन देशों में स्थापित की और बाद में उन्हें बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कहा गया।


    अमेरिका में स्थापित कम्पनियां दूसरे देशों में स्थापित अपनी सहायक कम्पनियों की अमेरिका में बैठकर देखभाल तो कर नहीं सकती थीं। अतः उन्होंने अन्य देशों में स्थापित कम्पनियों के बोर्ड में अपने प्रतिनिधि, निदेशक के तौर पर भर्ती किए। इस बोर्ड को चलाने के साथ ही इन देशों में इन कम्पनियों द्वारा व्यापार को विस्तार देने के उद्देश्य से इस सम्बंध में नियमों की रचना की गई, जिन्हें बाद में निगमित अभिशासन का नाम दिया गया। वर्ष ।970 के आसपास अमेरिका में एवं अन्य यूरोपीयन देशों में निगमित अभिशासन के सम्बंध में बहुत शोध कार्य सम्पन्न हुआ एवं निगमित अभिशासन के कई मॉडल एवं सिद्धांत विकसित हुए, जिन्हें भारत में भी लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि भारत में तो प्राचीन काल से ही आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन सम्बंधी नियमों का अनुपालन किया जाता रहा है। सनातन संस्कृति में कर्म एवं अर्थ को धर्म से जोड़ा गया है। अतः प्राचीन भारत में धर्म का पालन करते हुए ही आर्थिक गतिविधियां सम्पन्न होती रही हैं। इस प्रकार, आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन तो व्यापार में उपयोग होता ही रहा है।

    ब्रिटिश मूल के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं इतिहासकार एंगस मेडिसिन द्वारा सम्पन्न किए के शोध के अनुसार एक ईसवी पूर्व से 1750 ईसवी तक वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से 48 प्रतिशत के बीच रही है और भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े स्तर पर होने वाले व्यापार में अभिशासन की नीतियों का अनुपालन तो निश्चित रूप से होता ही होगा। परंतु, पश्चिमी देश निगमित अभिशासन को एक नई खोज बता रहे हैं। प्राचीन काल में भारत में आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन के अनुपालन का स्तर बहुत उच्च था। एक घटना के माध्यम से इसे सिद्ध भी किया जा सकता है। एक किसान ने एक अन्य किसान से जमीन के टुकड़ा खरीदा। उस किसान ने जब जमीन में खुदाई शुरू की तो उसे खुदाई के दौरान उस जमीन में सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला। इस घड़े को लेकर वह किसान जमीन के विक्रेता किसान के पास पहुंचा और बोला आपसे जो जमीन का टुकड़ा मैंने खरीदा था उसमें सोने के सिक्कों से भरा यह घड़ा मिला है, मैंने तो चूंकि आपसे केवल जमीन खरीदी है, अतः इस घड़े पर आपका अधिकार है।

    विक्रेता किसान ने उस घड़े को लेने से इसलिए इंकार कर दिया कि क्योंकि अब तो वह जमीन मैं आपको बेच चुका हूं अतः अब जो भी वस्तु अथवा पदार्थ इस जमीन से प्राप्त होता है उस पर जमीन के क्रेता अर्थात केवल आपका अधिकार है। दोनों किसानों के बीच जब किसी प्रकार की सुलह नहीं हो सकी तो वे दोनों किसान राजा के महल में अपनी समस्या का हल ढूंढने के लिए पहुंचे। जब वहां भी इस समस्या का हल नहीं निकल सका तो दोनों किसानों ने राजा से प्रार्थना की कि सोने के सिक्कों से भरे इस घड़े को राज्य के खजाने में जमा कर दिया जाए। राजा ने भी उस घड़े को राज्य के खजाने में जमा करने से इंकार कर दिया क्योंकि राज्य के खजाने में तो अभिशासन सम्बंधी नियमों के अनुपालन के अनुसार ही प्राप्त धन को जमा किया जा सकता है और अभिशासन सम्बंधी नियमों में इस प्रकार से प्राप्त धन को खजाने में जमा करने का वर्णन ही नहीं है। इस उच्च स्तर की अभिशासन प्रणाली प्राचीन भारत में लागू थी।

    अभिशासन को परिभाषित करते हुए कहा जाता है कि यह एक तरीका है, जिसके अनुसार संस्थानों को अभिशासित किया जाता है। यह नियमों, व्यवहारों एवं प्रक्रियाओं की एक प्रणाली है जिसके अनुसार एक व्यवसाय को चलाया, विनियमित एवं नियंत्रित किया जाता है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि निर्णय प्रक्रिया स्वच्छ (निष्पक्ष) एवं नैतिक है। इसके माध्यम से यह जानने, संतुलित करने एवं संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है कि लम्बी अवधि के लिए हितधारकों के हित सुरक्षित रहें। हितधारकों में शामिल हैं – बैंक के संदर्भ में जमाकर्ता, एवं अन्य कम्पनियों के संदर्भ में ग्राहक, शेयरधारक, कर्मचारी, प्रबंधन, सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक, आदि। निगमित अभिशासन सम्बंधी नियमों के अनुपालन की जिम्मेदारी बोर्ड के सदस्यों की मानी जाती है।

    अच्छे निगमित अभिशासन के गुणों के सम्बंध में कहा जाता है कि बोर्ड द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों में निष्पक्षिता एवं पारदर्शिता होनी चाहिए। संस्था में प्रत्येक स्तर पर जवाबदेही एवं जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। बोर्ड के सदस्यों के चुनाव में पारदर्शिता हो एवं बोर्ड के सदस्य पेशेवर होने चाहिए। यदि बैंक के बोर्ड की बात की जाय तो बोर्ड के सदस्य जमाकर्ता के ट्रस्टी के रूप में कार्य करें। ऋण प्रदान करने में पारदर्शिता होनी चाहिए एवं मेरिट आधारित निर्णय होने चाहिए। केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक एवं प्रधान कार्यालय द्वारा जारी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित होना चाहिए। अंकेक्षण प्रणाली, जागरूकता प्रणाली (विजिलन्स सिस्टम), धोखाधड़ी का पता लगाने का तंत्र (फ्राड डिटेक्शन मेकनिजम) मजबूत होना चाहिए। साथ ही, संस्थान में उच्च तकनीकी का उपयोग भी होना चाहिए।

    निगमित अभिशासन के अंतर्गत बोर्ड की भूमिका के संबंध में भी कहा जाता है कि बोर्ड के सदस्यों में व्यावसायिक कुशलता होना चाहिए। बोर्ड के सदस्यों द्वारा संस्था में स्थापित प्रणाली एवं प्रक्रिया की व्याख्या करनी चाहिए। आंतरिक नियंत्रण प्रणाली की व्याख्या करनी चाहिए। आंतरिक अंकेक्षण प्रणाली की समय समय पर जांच पड़ताल करनी चाहिए। समस्त व्यवसाय सबंधित नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। प्रणाली एवं प्रक्रिया की उचित समय अंतराल पर समीक्षा करनी चाहिए। निगमित अभिशासन के अंतर्गत बोर्ड स्तर की कुछ समितियों का निर्माण भी किया जाना चाहिए। जैसे, अंकेक्षण समिति, नियमों के अनुपालन की जांच करने के सम्बंध में समिति, बड़ी राशि के फ्राड की जांच करने वाली समिति, बोर्ड के सदस्यों का परिश्रमिक तय करने की समिति, जोखिम प्रबंधन समिति, आदि।

    निगमित अभिशासन के सम्बंध में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बनाए गए नियमों को कम्पनियों एवं बैकों में लागू किया जाना चाहिए। हालांकि प्राचीन भारत में विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में अभिशासन का उच्च स्तर रहा है, क्योंकि उस खंडकाल में कर्म एवं अर्थ के कार्य धर्म से जोड़कर किए जाते थे। परंतु, आज की परिस्थितियां भिन्न हैं, अतः वर्तमानकाल में भिन्न परिस्थितियों के बीच निगमित अभिसासन के नियमों को विभिन्न संस्थानों में लागू किया ही जाना चाहिए।

    (लेखक, आर्थिक मामलों के गहन जानकार एवं विश्लेषक हैं।)

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