नई दिल्ली: देश के 95 शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है. इससे उत्साहित होकर केंद्र ने वायु प्रदूषण को कम करने के लक्ष्य को संशोधित किया है. अब इसे 2025-26 तक वायु प्रदूषण को 40 फीसद तक कम करने का फैसला किया गया है. पहले यह वर्ष 2024 तक वायु प्रदूषण में 20 फीसद तक की कमी लाने का टार्गेट तय किय गया था. बता दें कि साल 2017 की तुलना में वर्ष 2021-22 में संबंधित शहरों में वायु प्रदूषण में कमी दर्ज की गई है.
वायु प्रदूषण में 40 फीसद तक की कमी लाने के बावजूद दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, लखनऊ और कानपुर जैसे शहरों में हवा की गुणवत्ता को स्वीकार्य सीमा तक नहीं लाया जा सकेगा. संशोधित लक्ष्य से इतना फायदा मिल सकता है कि इससे संबंधित राज्य राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत अपने शहरों की बेहतरी के लिए उम्दा योजना बनाने के लिए प्रेरित हो सकेंगे. गुजरात में देश के विभिन्न राज्यों के पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में उन्हें संशोधित लक्ष्य की जानकारी दी गई.
वाराणसी अव्वल : पर्यावरण मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि कई शहर ऐसे हैं, जो वायु प्रदूषण में 40 फीसद से भी ज्यादा की कमी ला सकते हैं. वाराणसी इसका उदाहरण है, जहां 2021-22 में PM-10 के स्तर में 53 फीसद तक की कमी दर्ज की गई. पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि इसका मकसद पर्टिकुलेट मैटर (हवा में घुले वायु प्रदूषक कण) की सांद्रता को स्वीकार्य सीमा तक लाना है. भविष्य में इसे लेकर लक्ष्य को फिर से संशोधित किया जा सकता है.
20 शहरों की स्थिति बेहतर : राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत हाल में किए गए शहरों के विश्लेषण से पता चलता है कि 20 शहरों में (चैन्नई, मदुरै, नाशिक और चित्तुर शामिल) वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय मानकों (पीएम 10, स्वीकार्य वार्षिक औसत 60 माइक्रोग्राम्स प्रति क्यूबिक मीटर) के अनुरूप पाई गई. हालांकि, इसमें ज्यादा घातक पीएम-2.5 के स्तर को लेकर कुछ नहीं कहा गया है. वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय व्यापक मानक के अनुसार, पीएम 2.5 का वार्षिक औसत 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है.
रैंकिंग देने की प्लानिंग : NCAP के तहत 131 शहर हैं, जहां जनवरी 2019 में वायु प्रदूषण को कम करने का अभियान शुरू किया गया. सभी शहर अपने अपने स्तर पर वायु प्रदूषण को कम करने के लिए ज़रूरी कदम उठा रहे हैं. राष्ट्रीय सम्मेलन में इन सभी 131 शहरों को वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए उठाए गए कदम और सफलता के आधार पर सालाना स्तर पर रैंक दिए जाने का फैसला लिया गया है. इसमें इन शहरों को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, धूल का प्रबंधन, निर्माण और तोडफोड़ से निकले मलबे का प्रबंधन, गाड़ियों से निकलने वाले धुएं और औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण के आधार पर आंका जाएगा.
दिल्ली में भी सुधार : साल 2017 के मुकाबले भारत के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक दिल्ली में भी सुधार देखा गया है. यहां 2017 में 241g/m3 के मुकाबले 2021-22 में पीएम-10 का स्तर 196 g/m3 तक कम हुआ. इसी तरह मुंबई में यह स्तर 2017 में जहां 151g/m3 था वहीं 2021-22 में यह 106 g/m3 दर्ज हुआ. इसी तरह कोलकाता में स्तर 2017 में 119 g/m3 से घटकर 105 g/m3 पर पहुंच गया है. इससे जाहिर होता है कि 60 g/m3 की स्वीकार्य सीमा तक पहुंचने के लिए इन शहरों को पीएम 10 सांद्रता में 40 फीसद से अधिक की कमी लानी होगी.
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