– नागराज राव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर छात्रों और युवा पीढ़ी से भारतीय वैज्ञानिकों और भारतीय विज्ञान के बारे में अधिकारिक जानकारी प्राप्त करने का आह्वान करते हुए हैदराबाद के किसान का उदाहरण दिया था। उन्होंने कहा था कि विज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए प्रयोगशालाओं को जनहितकारी बनने की तरफ कदम आगे बढ़ाने होंगे। हैदराबाद के किसान वेंकट रेड्डी का जिक्र करते हुए उनसे प्रेरणा लेने की बात कही।
प्रधानमंत्री ने तेलंगाना के किसान पद्मश्री चिंतला वेंकट रेड्डी का मन की बात कार्यक्रम में जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि विटामिन डी की कमी से होने वाली बीमारियों और समस्याओं के बारे में विचार करते हुए कड़ी परिश्रम, अनुसंधान और परीक्षणों के माध्यम से पद्मश्री वेंकट रेड्डी ने गेहूं और चावल की ऐसी किस्म को विकसित की जो विटामिन डी से युक्त है। इस तरह उन्होंने विटामिन डी की कमी से होनेवाली समस्याओं का समाधान किया है।
इसी क्रम में तेलंगाना के करीमनगर के एक अन्य किसान ने खेती के प्रति लगन, नई सोच और प्रयोगधर्मिकता का उदाहरण पेश किया है। उन्होंने चावल की ऐसी किस्म की खोज की है जिसमें खाने के लिए उसे पकाए जाने की जरूरत नहीं होगी। चावल को कुछ देर के लिए पानी में भिगो देना ही काफी होगा। अगर आप गरमागरम चावल खाना चाहते हैं तो उसे गर्म पानी में भिगो सकते हैं। अन्यथा सामान्य पानी से भिगोकर खाने पर भी चावल उसी तरह तैयार हो जाता है।
करीमनगर के श्रीराममल्लापल्ली गांव के किसान श्रीकांत का कहना है कि उसे एकबार असम जाने का मौका मिला था। जहां चावल की ऐसी किस्म के बारे में पता चला जो बिना पकाए ही खाया जा सकता है। उन्होंने गौहाटी विश्वविद्यालय से संपर्क करके चावल की इस अनूठी प्रजाति के बारे में जानकारी ली। पता चला कि असम के पहाड़ी इलाकों में कुछ जनजातियां इस तरह का चावल पैदा करती हैं जिसे खाने के लिए पकाने की जरूरत नहीं होती।
पहाड़ी जनजातीय इलाकों में इस किस्म के चावल को बोकासौल नाम से जाना जाता है। चावल की यह किस्म सेहत के लिए बेहद गुणकारी माना जाता है। चावल में 10.73% फाइबर और 6.8% प्रोटीन मौजूद है। किसान श्रीकांत ने बताया कि इस चावल को गुड़ केला और दही के साथ खाने से स्वाद लाजवाब होता है।
श्रीकांत असम के जनजातीय इलाके से इस किस्म के चावल के बीज लेकर आए थे। 12 वीं शताब्दी में असम में राज करने वाले अहम राजवंश को बोकासौल चावल बहुत पसंद था लेकिन बाद में चावल की दूसरी प्रजातियों को मांग बढ़ती चली गई। किसान श्रीकांत ने बताया कि लगभग विलुप्त हो चुकी चावल की इस किस्म को विकसित करने का फैसला उन्होंने लिया और आधा एकड़ खेत में उसकी बुवाई कर दी। श्रीकांत को उम्मीद थी कि आधे एकड़ में करीब 5 बोरी चावल का उत्पादन हो जाएगा। दूसरी प्रजातियों के बराबर ही इस चावल की फसल 145 दिनों में तैयार हो जाती है।
श्रीकांत ने कहा कि आधुनिक युग में इस चावल की उपयोगिता को समझा जा सकता है। खासकर जब रसोई गैस की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। उन्होंने बताया कि कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर उनके लिए प्रेरणा हैं जिन्होंने प्राकृतिक आध्यात्मिक कृषि का आविष्कार किया और ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसमें कृषि के लिए न ही किसी रासायनिक कीटनाशक का उपयोग किया जाता और न ही बाजार से अन्य औषधियाँ खरीदने की आवश्यकता पड़ती है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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