नई दिल्ली। रुपए (rupee) में आई ताजा गिरावट का असर (fall effect) तमाम क्षेत्रों के आयात में देखने को मिलेगी। आयात अब महंगा (imports now expensive) हो जाएगा इससे न सिर्फ देश का चालूखाता घाटा (country’s current account deficit) बढ़ेगा बल्कि रुपया इसी तरह गिरता रहा तो कारोबारियों की लागत में भी इजाफा होगा। फिक्की की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश में 48 फीसदी कारोबारियों ने देश में उत्पादन की लागत में 10 फीसदी से ज्यादा बढ़त (more than 10% increase) की बात मानी है।
रुपए के गिरावट के नए स्तर पर पहुंचने के बाद विशेषज्ञों को लगता है कि इसका असर तमाम कमोडिटी के आयात पर पड़ेगा और उसी के साथ उससे बनने वाला उत्पाद भी प्रभावित होगा। भारत बड़े पैमाने पर जरूरी चीजों जैसे कच्चा तेल, इस्पात, पाम आयल और दवाओं का आयात करता है। ऐसे में इन सभी चीजों के लिए पहले के मुकाबले ज्यादा कीमत चुकानी होगी।
विशेषज्ञों की राय
इंडिया इंफोलाइन कमोडिटीज के वाइस प्रेसिडेंट अनुज गुप्ता ने बताया है कि देश में आयात महंगा होने से इन चीजों के दाम भी आने वाले दिनों में बढ़ जाएंगे साथ ही देश का चालू खाता घाटा भी बढ़ना तय है।
वहीं आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ योगेंद्र कपूर ने रुपए की गिरावट की वजह बताते हुए कहा कि भारतीय शेयर बाजार से लगातार विदेशी फंड वापस उन देशों में जा रहा है। यही वजह है कि बाजार में भी उतारचढ़ाव बना हुआ है और रुपया भी कमजोर हो रहा है। उनके मुताबिक रुपए के कमजोर होने से भारत के आयात और व्यापार संतुलन पर असर पड़ता है जो पहले से ही आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान के कारण ऊंची महंगाई के तौर पर दिखाई दे रहा है।
महंगाई से बढ़ी लागत
फिक्की के बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे में कारोबारियों ने ये बात मानी है कि ऊंचे कमोडिटी के दामों और लागत की वजह से कारोबार पर दबाव देखा जा रहा है। उनका ये भी कहना है कि भू-राजनीतिक तनाव में हालिया बढ़त से काफी अनिश्चितता पैदा हो गई है। रुपए की गिरावट से इसपर दबाव और बढ़ेगा। इससे न सिर्फ कारोबारियो के मुनाफे पर दबाव दिखेगा बल्कि निर्यात के मोर्चे पर भी दूसरे देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में दिक्कत होगी।
सर्वे में करीब 84 फीसदी कंपनियों ने माना है कि कच्चे माल की ऊंची लागत कारोबार के लिए बड़ी बाधा है। पिछले दौर के सर्वे में ये आंकड़ा 82 फीसदी था। इनमें से 48 फीसदी का मानना है कि उत्पादन की लागत 10 फीसदी से ज्यादा है। वहीं 43 फीसदी के मुताबिक ये 5-10 फीसदी बढ़ी है। वहीं बाकी बचे 9 फीसदी मानते हैं कि ये लागत 5 फीसदी तक बढ़ी है। रुपए में अगर ये गिरावट आगे भी जारी रही तो इन कारोबारियों की मुश्किल और बढ़ सकती है।
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