इंदौर। प्राधिकरण द्वारा एमआर-12 का निर्माण करवाया जा रहा है। मगर उसमें लगभग दो हजार मकानों की अवैध बस्ती बाधक बनी हुई है, जिसके चलते टुकड़ों में काम कराना पड़ रहा है। मास्टर प्लान में एमआर-12 की चौड़ाई 60 मीटर यानी 200 फीट है। मगर फिलहाल प्राधिकरण सिक्स लेन में 150 फीट चौड़ा रोड ही बना रहा है। बायपास से उज्जैन रोड को जोडऩे वाली यह महत्वपूर्ण सडक़ है, जो भौंरासला से सीधे बाहरी यातायात को भी बिना सुपर कॉरिडोर या एमआर-10 पर लाए बिना बायपास के जरिए बाहर कर देगी। इसमें रेलवे क्रॉसिंग के अलावा अन्य फ्लायओवर भी बनाए जाना है। पूर्व में प्राधिकरण ने यहां पर योजना 177 घोषित की थी, जो लैंड पुलिंग पॉलिसी के चलते निरस्त हो गई और अब उस पर टीपीएस घोषित की गई है।
प्राधिकरण को मास्टर प्लान की सडक़ों के अलावा सालों पहले जो उसने 12 एमआर यानी मेजर रोड तय किए थे उनका भी निर्माण करना है। अभी कई एमआर या तो बने ही नहीं अथवा आधे-अधूरे हैं, जिसमें एमआर-12 भी शामिल है। कुछ समय पूर्व प्राधिकरण ने एबी रोड से लेकर रेलवे क्रॉसिंग तक फोर लेन की सडक़ तक के टेंडर मंजूर किए और काम भी शुरू करवा दिया। इस हिस्से पर बनने वाली सडक़ पर लगभग 4 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। हालांकि पूरा एमआर-12 12.8 किलोमीटर लम्बाई का है, जो भौंरासाल से शुरू होकर एबी रोड होते हुए बायपास तक बनना है। इसमें भौंरासला के अलावा शकरखेड़ी, कुमेर्डी, भांग्या, तलावलीचांदा और अरण्ड्या की जमीनें शामिल हैं। अवैध निर्माण या अन्य अनुमतियों के चलते प्राधिकरण को टुकड़ों-टुकड़ों में काम करना पड़ रहा है। एबी रोड से लेकर रेलवे क्रॉसिंग के एक किलोमीटर के हिस्से में भी यही समस्या है।
दरअसल रविदास नगर नामक एक बस्ती इसमें सबसे बड़ी बाधक बनी हुई है, जिसमें लगभग 2 हजार मकान बताए जा रहे हैं। जनप्रतिनिधियों की मांग है कि इन मकानों में रहने वाले गरीबों को ऐसे ही नहीं उजाड़ा जाए, बल्कि प्राधिकरण उनका व्यवस्थापन करे। अब सवाल यह है कि प्राधिकरण इतनी बड़ी संख्या में हटाए जाने वाले लोगों को मकान कहां से देगा। यही कारण है कि टुकड़ों-टुकड़ों में प्राधिकरण को काम करना पड़ रहा है। योजना 139 और 169-ए में 300 मीटर लम्बाई में सडक़ बन रही है, तो एबी रोड से कैलोदहाला, रेलवे क्रॉसिंग तक एक किलोमीटर, वहीं 13 करोड़ रुपए की लागत से बायपास से एबी रोड तक की 4 किलोमीटर लम्बाई में सडक़ बनाई जाना है। एमआर-12 अगर बन जाता है तो सुपर कॉरिडोर और एमआर-10 पर अभी जो बाहरी वाहनों का दबाव है उससे राहत मिलेगी, क्योंकि महाकाल लोक बनने के बाद उज्जैन रोड पर लगातार यातायात का दबाव बढ़ गया है। मगर बिना बाधाओं को हटाए यह महत्वपूर्ण रोड जल्द बनना संभव नजर नहीं आता। एमआर-10 पर नदी के ऊपर एक हाईलेवल ब्रिज भी निर्मित किया जाना है, तो रेलवे के साथ अन्य ब्रिजों के निर्माण पर भी 100 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च होगी। प्राधिकरण हालांकि अपने बजट में इनमें से कई कार्यों की मंजूरी दे चुका है। वहीं टीपीएस के तहत घोषित योजना पर भी काम किया जा रहा है, जिसमें 50 फीसदी जमीन वापस उनके मालिकों को लौटाई जाएगी।
पांचों टीपीएस योजनाओं में 500 करोड़ के काम जारी
जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने कल प्राधिकरण में बैठक की, जिसमें अध्यक्ष जयपालसिंह चावड़ा ने बताया कि सांवेर क्षेत्र में ही पांच टीपीएस योजनाएं अमल में लाई जा रही है, जिनमें 500 करोड़ रुपए के कार्य तो फिलहाल चल ही रहे हैं और लगभग 700 करोड़ के विकास कार्य प्रस्तावित हैं, जिसमें एमआर-12 पर चल रहे कार्यों की जानकारी भी मंत्री को दी गई। वहीं दो सेतु निर्माण भी प्रस्तावित बताए गए। इसके अलावा सांवेर क्षेत्र में ही स्टार्टअप पार्क का भी निर्माण प्राधिकरण को करना है, जो भी अभी तकनीकी कारणों से उलझा है।
स्टेडियम के विशाल भूखंड का टेंडर खुलना बाकी
प्राधिकरण ने सुपर कॉरिडोर पर स्टेडियम की जमीन आरक्षित की है। लगभग 23 एकड़ की इस जमीन के लिए पिछली बार टेंडर बुलाए गए और एक निजी कम्पनी ने सिंगल टेंडर भरा है। हालांकि प्राधिकरण का कहना है कि अभी कमर्शियल टेंडर खुलना बाकी है। 200 करोड़ रुपए से अधिक कीमत का यह भूखंड है, जिसके लिए एमपीसीए से भी चर्चा की गई। मगर वह 60-70 करोड़ रुपए में ही सब्सिडी पर यह भूखंड मांग रही है। मगर प्राधिकरण नियम के विपरित इस तरह आबंटन नहीं कर सकता। टेंडर के जरिए ही भूखंड बेचने की उसकी मजबूरी है। अब जो सिंगल टेंडर प्राप्त हुआ है उस पर भी प्राधिकरण बोर्ड निर्णय लेगा। हालांकि तीन मर्तबा टेंडर बुलाया जा चुका है और कोई खरीददार इतने महंगे भूखंड को लेने के लिए सामने नहीं आया। हालांकि उस पर अन्य उपयोग की अनुमति भी मांगी जा रही है।
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