नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली की महिला वैज्ञानिकों की एक टीम ने आंखों के फंगस संक्रमण के इलाज संबंधित एक कारगर तरीका ढूंढ लिया है। इनका दावा है कि अमेरिकी दवा नटामाइसिन को पेप्टाइड के साथ मिलाकार इसका प्रयोग करने पर फंगस पर काफी सकारात्मक परिणाम सामने आया है। इस विषय पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों में से प्रोफेसर अर्चना चुग व इनकी पीएचडी छात्राएं डॉ. आस्था जैन, हर्षा रोहिरा, सुजित्रा शंकर, डॉ सुष्मिता व डॉ सीएम शाह शामिल हैं।
इस बारे में आईआईटी दिल्ली के कुसुम स्कूल ऑफ बायोलाजिकल साइंस की प्रोफेसर अर्चना चुग ने बताया कि भारत में एक विशाल आबादी कृषि संबंधित कार्य करते हैं जोकि खेती करते समय वनस्पति आघात से ग्रस्त हैं। कई बार आंखों में धूल चले जाने पर रगड़ होती है जिसका प्रभाव तुरंत देखने को नहीं मिलता है। लेकिन पूर्व में लगे रगड़ या चोट से कई बार कार्निया की ऊपरी परत छिल जाती है। इससे फंगस संक्रमण कार्निया में पहुंच जाता है। बाद में पीड़ित के काली पुतली के अंदर सफेद एवं बाद में लाल धब्बे दिखने लगते हैं, तब यह गंभीर हो जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप या तो आंखों से धुंधला या फिर दिखाई देना तक बंद हो जाता है। इसे फंगल केराटाइसिस भी कहते हैं। जिसका बाजार में उपलब्ध दवाएं कई बार कारगर नहीं होती। अमेरिकी-फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) द्वारा प्रमाणित नटामाइसिन को फंगल केराटाइसिस के इलाज में प्रयोग किया जाता है। लेकिन यह दवा पर्याप्त मात्रा में आंखों में प्रवेश नहीं कर पाती। जिसकी चलते इसकी कुछ बूंदे बेकार हो जाती है।
प्रोफेसर चुग के अनुसार नैनोटेक्नोलाजी का प्रयोग कर लैब में एक पेप्टाइड तैयार किया गया। पेप्टाइड प्रोटीन का ही एक हिस्सा होता है। इसे नटामाइसिन के साथ मिलाया गया। उन्होंने बताया कि इसकी खासियत यह है कि यह कोशिकाओं के अंदर खुद तो जाता ही है साथ में मालिक्यूल्स को भी लेकर जाता है। इस तरह जब पेप्टाइड और नटामाइसिन को मिलाकर प्रयोग किया। विज्ञानियों ने इसे खरगोश और चूहे पर प्रयोग किया। परिणाम आश्चर्यजनक थे, नटामाइसिन को अकेले प्रयोग करने के मुकाबले पेप्टाइड के साथ प्रयोग करने पर प्रभाविकता पांच गुना बढ़ गई। (एजेन्सी, हि.स.)
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