- पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों ने अस्पताल को बनाया ‘चारागाह’
- लोक निर्माण भवन से लेकर मंत्रालय तक भ्रष्टों पर मेहरबानी
- निलंबित इंजीनियर ने फोड़ा लेटर बम
भोपाल। मध्यप्रदेश में संगठित भ्रष्टाचार का नमूना देखना है तो ग्वालियर में लोक निर्माण विभाग की पीआईयू विंग द्वारा बनाए जा रहे 1000 बेड के अस्पताल की फाइलों को देख लीजिए। इंजीनियरों ने लोक निर्माण भवन, मंत्रालय के अफसर के संरक्षण में आर्किटेक्ट और ठेकेदारों की मिलीभगत से किस तरह से अस्पताल निर्माण की लागत बढ़ाई। सरकार के नियमों को धता बताकर अस्तपाल के डिजाइन में बदलाव किया और पुनरीक्षित लागत को भी मंजूरी दे दी है। जब मामला उठा तो शासन स्तर पर ग्वालियर के वर्तमान अतिरिक्ति परियोजना संचालक (एपीडी)वीके आरख से जांच कराकर 9 इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। इनमें से एक इंजीनियर प्रदीप अष्ठपुत्रे को निलंबित कर दिया है। अष्ठपुत्रे ने राज्य शासन को पत्र लिखा है। जिसमें आरख की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं और पूरे संगठित भ्रष्टाचार की पोल खोलकर रख दी है। पत्र के बाद से विभाग में हड़कंप मचा है।
पढि़ए पत्र में इंजीनियरों के कारनामे
- ग्वालियर के 1000 बिस्तर अस्पताल की 338.46 करोड की प्रशासकीय स्वीकृति 05 अक्टूबर 2018 को प्रदान की गयी। अलग-अलग तकनीकी स्वीकृतियां भी जारी की गई। सभी तरह की स्वीकृतियों की जानकारी अतिरिक्त परियोजना संचालक कार्यालय ग्वालियर में हैं।
- डीपीआर तैयार करना एक सामुहिक टीम वर्क है। आर्कीटेक्ट द्वारा डीपीआर तैयार की। यदि डीपीआर की पूरी जिम्मेदारी अकेले संभागीय परियोजना यंत्री की होती तो परियोजना यंत्री, सहायक परियोजना यंत्री की जरूरत नहीं होती। तकनीकी स्वीकृति का अधिकार भी उसी के पास होता।
- कॉन्क्रीट एवं स्टील की राशि में वृद्धि मुख्य वास्तुविद कार्यालय से 2 अतिरिक्त फ्लोर डिजाइन करने के कारण हुई, जबकि शासन का आदेश केवल एक अतिरिक्त फ्लोर डिजाइन करने का था। डिजाइन अनुमोदित करने वाले अधिकारी से पूछा जाना चाहिये।
- स्वीकृत प्राक्कलन में ग्रेनाइट फ्लोरिंग का प्रावधान था, परन्तु अतिरिक्त परियोजना संचालक ने लेदर फिनिश ग्रेनाइट लगाने, मेसनरी वर्क, प्लास्टर आदि की स्वीकृति दी। जिससे वास्तविक काम की लागत बढ़ी।
- मूल प्राक्कलन में डोर फ्रेम वुड वर्क का प्रावधान था, लेकिन डोर फ्रेम वुड वर्क के स्थान पर डब्ल्यूपीसी डोर फ्रेम एवं ग्रेनाइट डोर फ्रेम लगाए जाने की स्वीकृति दी गई। इसी प्रकार टॉयलेट में डोर की जगह 100 फीसदी सॉलिड डोर शटर की स्वीकृति दी।
- मूल कार्य पर अतिरिक्त परियोजना संचालक ने ठेका लागत 230.00 करोड़ के 10 फीसदी राशि 23.00 करोड़ के विरूद्ध लगभग 60 करोड़ रू. की पूरक स्वीकृतियां दी गईं। इसमें आर्किटेक्ट मैसर्स डिजाइन एसोसियेट्स की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं।
- वास्तविक प्राक्कलन राशि रू. 491.00 करोड़ का तैयार किया गया था, परन्तु अतिरिक्त परियोजना संचालक ने इसमें से लगभग 39.00 करोड़ की राशि (अधिकतर विद्युत कार्य से सम्बन्धित है) को पीजी गेप एनालिसिस प्राक्कलन में शामिल कराकर राशि रू. 434.85 करोड़ का डीपीआर तैयार कराकर सभी सहायक परियोजना यंत्रियो एवं परियोजना यंत्रियो को भोपाल बुलाकर वही तकनीकी स्वीकृति दी है। जब राशि रू. 434.85 करोड़ का डीपीआर ही करेक्ट न होकर वास्तविक राशि लगभग 491.00 करोड़ या इससे भी अधिक है, इसलिये संलग्न प्रपत्र में अधिक भुगतान विवरण भी सही नहीं है। उक्त 39.00 करोड़ रू. का भुगतान, इसी कार्य पर किया गया है।
- इस मामले में प्रमुख सचिव लोनिवि द्वारा तकनीकी स्वीकृति प्रदान करने वाले अधिकारियों की जानकारी मांगी गईं थी। जो अतिरिक्त परियोजना संचालक तक पहुंची, लेकिन प्रमुख सचिव तक नहीं पहुंची।
अस्पताल निर्माण से जुड़े सभी इंजीनियरों को निलंबित कर जांच कराएं
सरकार को लिखे पत्र में अष्टपुत्रे ने कहा है कि 1000 बिस्तर अस्पताल निर्माण से शुरू से जुड़े रहे सिविल एवं विद्युत के सभी सहायक परियोजना यंत्रियो, परियोजना यंत्रियो, संभागीय परियोजना यंत्रियो तथा अतिरिक्त परियोजना संचालकों को निलंबित कर विस्तृत जांच कराई जाए। या उन्हें वहां से हटाया जाए। इसी तरह इस कार्य पर पदस्थ रहे ऑडिटर, मानचित्रकार, लेखाधिकारी, अतिरिक्त परियोजना संचालक ग्वालियर कार्यालय में पदस्थ मानचित्रकार, पूरक स्वीकृति प्रदान करने वाले लिपिक, संलग्न सहायक परियोजना अधिकारी, परियोजना अधिकारी को भी हटाया जाए।