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स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी बदलने का बना रहे मन, तो ध्यान रखें ये खास बातें फायदे में रहेंगे

February 23, 2022

नई दिल्ली। अगर आप अपनी स्वास्थ्य बीमा कंपनी की सेवाओं से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं और इसे बदलने का मन बना रहे हैं, तो आपको बता दें कि आप आसानी से दूसरी कंपनी में अपनी पॉलिसी को पोर्ट (बदल) करा सकते हैं। बीमा कंपनी बदलने की इस प्रक्रिया को पोर्टिंग कहते हैं। हालांकि, स्वास्थ्य बीमा को पोर्ट कराने से पहले प्रीमियम और प्रतीक्षा अवधि जैसी कई जरूरी बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। हम यहां पोर्टेबिलिटी से जुड़ी जरूरी बातों के बारे में बता रहे हैं।

दूसरे प्लान की पूरी जानकारी जुटाएं
अपनी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी को पोर्ट कराते हैं, तो नई कंपनी आपकी प्रीमियम की दरों को तय करने के लिए स्वतंत्र होती है। पोर्ट के दौरान अगर आप उच्च जोखिम वाली श्रेणी में हैं, तो हो सकता है नई कंपनी पुरानी कंपनी की तुलना में आपसे अधिक प्रीमियम वसूल करे। ऐसे में पोर्ट कराने से पहले आपको इसके बारे में जानकारी ले लेनी चाहिए और आपको एक नहीं बल्कि तीन-चार बीमा कंपनियों के प्लान की पूरी जानकारी जुटानी चाहिए। इसके बाद जिस प्लान से आप संतुष्ट हों उसमें अपनी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी को पोर्ट करा लीजिए।


नई कंपनी के कवरेज को समझें
कई लोग इंश्योरेंस पॉलिसी इसलिए पोर्ट कराते हैं कि दूसरी कंपनी कम प्रीमियम ऑफर कर रही है। नई कंपनी के कवरेज, उसकी लिमिट और सब-लिमिट को समझें। यह दावा करते समय परेशानी से बचाएगा। इसके साथ ही यहां पॉलिसी बदलते समय एक और बात का ध्यान रखा जाना बेहद जरूरी है कि आप अपनी पॉलिसी जिस नई कंपनी के ऑफर को देखकर बदल रहे हैं तो इससे पहले दूसरी और भी कंपनियों के ऑफर्स की तुलना उससे करें।

पूरी प्रक्रिया में लगते हैं 45 दिन
अगर आप अपनी स्वास्थ्य बीमा योजना को पोर्ट करना चाहते हैं, तो आपको स्वास्थ्य बीमा योजना के नवीनीकरण से कम से कम 45 दिन पहले प्रक्रिया शुरू करनी होगी। आपको अपनी वर्तमान बीमा कंपनी को पॉलिसी पोर्ट कराने के संबंध में सूचना देनी होगी। आपको नई बीमा कंपनी के बारे में भी जानकारी मुहैया करानी होगी। आपको अपनी अवधि को ब्रेक किए बिना ही पॉलिसी का नवीनीकरण करना होता है, इसलिए पोर्टिंग प्रक्रिया शुरु होने पर 30 दिन की अनुग्रह अवधि मिलती है।

ये समस्या आने पर ही बदलें कंपनी

  • कंपनी की खराब सेवा
  • पॉलिसी में कम लाभ
  • अपर्याप्त कवर
  • डिजिटल फ्रेंडली नहीं
  • रूम किराया सीमा कम होना
  • जटिल दावा निपटान प्रक्रिया
  • दावा कवर देने में देरी
  • पारदर्शिता की कमी

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