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    निर्धारित समय सीमा में यदि नहीं हुआ अनुसंधान तो आरोपी को मिलेगी डिफॉल्‍ट बेल : MP High Court

  • April 27, 2021

    भोपाल। अपराधिक प्रकरण में निर्धारित समय सीमा में पुलिस द्वारा अनुसंधान नहीं किया जाता हैं ऐसे में विधि अनुरूप आरोपी को ऑटोमेटिक बेल का अधिकार होगा एवं ऐसे में उसे जमानत आवेदन लगाने की भी आवश्यकता नहीं होगी एवं कोर्ट को उसे बैल भी देनी होगी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट इंदौर (High Court Indore Bench) खंड द्वारा यह महत्वपूर्ण व्यवस्था दी गई है।

    पुलिस थाना महू जिला इंदौर द्वारा पंजीबद्ध किए गए अपराध अंतर्गत धार 420, 467, 468, 471, 120 बी एवं 3/4 सार्वजनिक द्युत अधिनियम के सम्बंध में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट इंदौर खंड द्वारा प्रार्थीगण नितीन व सचिन खंडेलवाल द्वारा अपने अधिवक्ता प्रतीक माहेश्वरी द्वारा ज़मानत निरस्ती आदेश के विरुद्ध दायर की गई याचिका अंतर्गत धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता के मामले में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा कानून की धारा 167 (2) की विस्तृत व्याख्या करते हुए आरोपीगण के पक्ष में यह स्पष्ट अभिमत दिया है कि यदि पुलिस के द्वारा विभिन्न अपराधों पर लागू निर्धारित समयसीमा में (60 या 90 दिवस) में अनुंसंधान में विलंब किया जाता है या चालान प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो आरोपी को ऑटोमैटिक (Default) बेल का अधिकार होगा एवं उसे इस हेतु अलग से जमानत आवेदन लगाने की भी आवश्यकता नहीं होगी। भले ही वो जमानत अर्जी न प्रस्तुत करे तब भी कोर्ट उसे जमानत देने को बाध्य होगी।


    मामला ये है कि महू के गूजरखेड़ा में राजू वर्मा के मकान की ऊपरी मंजिल में ऑनलाइन सट्टा खेलते पुलिस ने 12 जुलाई 2020 को चार लोगों को पकड़ा था। इनमें विकास पिता मनोहरसिंह यादव निवासी ग्राम जोगीबेड़ा खंडवा, जितेंद्र पिता नारायण लोवंशी निवासी सिवनी मालवा, होशंगाबाद, हेमंत पिता अनिल गुप्ता निवासी रायगढ़ छत्तीसगढ़ और सोनू पिता संतोष गुप्ता निवासी रायगढ़ छत्तीसगढ़ भी शामिल थे।

    पुलिस द्वारा सूचना प्राप्त होने पर की गई कार्रवाई में जब अपनी टीम समेत मौके पर धावा बोला एवं सर्च की गई तो मौके पर उपस्थित आरोपियों से दो लैपटॉप समेत तमाम सट्टा उपकरण जब्त किए गए। हालांकि, एफआईआर कहानी अनुसार प्रार्थी नितिन व सचिन का प्रकरण में कोई भूमिका नहीं था पर सहआरोपीगण द्वारा दिए गए कथन अनुसार, उन लोगों को प्रकरण में शामिल कर दिनांक 2-11-2020 को गिरफ्तार कर लिया गया। जब से वो न्यायिक निरोध में रहे।

    काफी समय तक निरोध में रहने के पश्चात जब अनुसंधान में कोई तरक्की न हो सकी एवं पुलिस द्वारा तय समयसीमा में अपने दायित्वों का निर्वहन कानून की मंशा अंतर्गत धारा 167 (2) के प्रोवीजो अनुसार, नहीं हुआ तब नितिन व सचिन द्वारा माननीय न्यायिक दंडाधिकारी महोदय प्रथम श्रेणी डॉ. आम्बेडकर नगर महू के तहत एक आवेदन अंतर्गत धारा 167 (2) का प्रस्तुत किया जिस पर तर्क सुनने के पश्चात उन्हें डिफॉल्ट जमानत का लाभ आदेश दिनांक 29 जनवरी 2021 द्वारा दिया गया एवं उनके द्वारा योग्य प्रतिभूति भर जमानत ले ली गई।


    पश्चातवर्ती प्रक्रम में पुलिस द्वारा उक्त जमानत आदेश से व्यथित होकर सत्र न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका अंतर्गत धारा 397 प्रस्तुत की गई जिसमें सुनवाई के पश्चात पुलिस की उक्त याचिका स्वीकार कर जमानत आदेश को सत्र न्यायालय द्वारा अपने आदेश दिनांक 10 मार्च 2021 के द्वारा अपास्त कर दिया गया। सत्र न्यायालय द्वारा पारित आलोच्य आदेश से व्यथित होकर खंडेलवाल बंधुओं ने हाईकोर्ट के समक्ष एक विशेष याचिका अधिवक्ता प्रतीक माहेश्वरी के माध्यम से धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिताकी गई जिसमें मुख्य रूप से ये तर्क रखा गया कि आरोपी को दी गई जमानत विधि अनुरूप होकर सत्र न्यायालय द्वारा दिया गया आदेश निरस्ती योग्य है क्योंकि वैसे तो पुलिस द्वारा अनुसंधान में काफी विलंब किया गया। ऐसे में आरोपी के अधिकारों का हनन हो रहा है, एवं विधि के स्थापित सिद्धांतों के अनुसार आरोपीगणों को जमानत का लाभ दिया जाना उचित होगा।

    आरोपी द्वारा ये भी तर्क दिया गया कि अनुसंधान चाहे 60 दिवस का समय माना जाए या 90 दिवस का, तब भी पुलिस द्वारा अनुसंधान लगभग 124 दिन में पूर्ण किया गया। जिस तथ्य को भी माननीय सत्र न्यायालय द्वारा अनदेखा किया गया। प्रार्थीगण की छबि समाज में स्वच्छ और बेदाग है। वे व्यापारी होकर प्रकरण में संलिप्तता संदिग्ध होकर बेवजह फंसाए गए हैं। ऐसे में प्रार्थी को बेवजह लंबे समय तक कोरोना काल में निरोध में रखा जाना अनुचित होगा। तर्क के समर्थन में अधिवक्ता माहेश्वरी द्वारा उच्च न्यायालयों एवं सप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के विभिन्न न्याय द्रस्त्रांत पेश किए गए !

    उभय पक्षों को तर्कों को सुनकर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा अपने 24 पृष्ठीय विस्तृत आदेश द्वारा प्रार्थी नितिन व सचिन की ओर से प्रस्तुत तर्कों से सहमत होकर याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए ये व्यवस्था दी कि माननीय न्यायालय द्वारा कानून की धारा 167 (2) की विस्तृत व्याख्या करते हुए न्यायिक दंडाधिकारी महोदय द्वारा पारित जमानत आदेश को सही ठहराते हुए आरोपीगण के पक्ष में यह स्पष्ट अभिमत दिया है कि यदि पुलिस के द्वारा विभिन्न अपराधों पर लागू निर्धारित समयसीमा में (60 दिवस या 90 दिवस) में अनुंसंधान में विलंब किया जाता है या चालान प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो आरोपी को डिफॉल्ट बेल का अधिकार होगा। जिस हेतु उसे अल से जमानत आवेदन लगाने की भी आवश्यकता नहीं है। भले ही वो जमानत अर्जी न प्रस्तुत करे तब भी कोर्ट उसे जमानत देने को बाध्य होगी एवं निचली अदालत को यह मानकर चलना होगा कि आरोपी जमानत भरने हेतु तत्पर है। आरोपी प्रार्थी की और से विडीओ कोनफरेंसिंग से विशेष रूप से दिल्ली के सिनीयर अधिवक्ता के.के. मनन समेत प्रतीक माहेश्वरी अधिवक्ता द्वारा प्रार्थी का पक्ष रखा गया। जानकारी अधिवक्ता माहेश्वरी द्वारा दीं गई।

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