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    ‘कानून के रक्षक ही अपराधियों की तरह काम करेंगे तो फैल जाएगी अराजकता’, अदालत की टिप्पणी

  • March 20, 2024

    नई दिल्ली। बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने कहा कि कानून (law) के रक्षकों और संरक्षकों (protectors and guardians) को वर्दी में अपराधियों (criminals) के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और अगर इसकी अनुमति दी गई तो इससे अराजकता (Anarchy) फैल जाएगी। अदालत ने कहा कि हिरासत में मौत पर सख्ती से अंकुश लगाया जानना चाहिए और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

    हाईकोर्ट ने फर्जी मुठभेड़ मामले में मुंबई पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा को उम्र कैद की सजा सुनाते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस अधिकारी, जो कानून के रक्षक हैं, ने फर्जी मुठभेड़ में रामनारायण गुप्ता का अपहरण और हत्या करके और इसे वास्तविक मुठभेड़ का रंग देकर अपने पद का घोर दुरुपयोग किया है। अदालत ने कहा कि फर्जी मुठभेड़ के इस मामले में नरमी के लिए कोई जगह नहीं हो सकती क्योंकि इसमें शामिल व्यक्ति, यानी पुलिस, राज्य की शाखा हैं, जिनका कर्तव्य नागरिकों की रक्षा करना है न कि कानून को अपने हाथ में लेना और उनके खिलाफ भीषण अपराध करना।


    यह था फर्जी मुठभेड़ कांड
    मुंबई पुलिस की एक टीम ने 11 नवंबर, 2006 को रामनारायण गुप्ता को वाशी से इस संदेह पर पकड़ा था कि वह राजन गिरोह का गुर्गा है। उसके दोस्त अनिल भेड़ा को भी पकड़ा गया था। बाद में गुप्ता को उसी शाम उपनगरीय वर्सोवा में पार्क के पास एक फर्जी मुठभेड़ में मार डाला गया। भेड़ा को दिसंबर 2006 में हिरासत से रिहा कर दिया गया था। हालांकि, गुप्ता मामले में अदालत में गवाही से कुछ दिन पहले जुलाई 2011 में भेड़ा का कथित तौर पर अपहरण कर लिया गया और उसकी हत्या कर दी गई। फिलहाल राज्य सीआईडी मामले की जांच कर रही है।

    हाईकोर्ट ने सीआईडी जांच पर उठाए सवाल
    भेड़ा मामले पर संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अभी तक सीआईडी ने जांच पूरी करने और अपराधियों का पता लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। पीठ ने कहा, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले के एक प्रमुख प्रत्यक्षदर्शी की जान चली गई। यह परिवार के लिए न्याय का मजाक है। पुलिस के लिए जांच करना और मामले को उसके तार्किक अंत तक ले जाना महत्वपूर्ण है, ऐसा न हो कि लोगों का सिस्टम से विश्वास उठ जाए।

    सबूतों के अभाव में शर्मा को कर दिया था बरी
    सत्र अदालत ने 2013 में शर्मा को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। जबकि, 14 पुलिसकर्मियों सहित कुल 21 को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इनमें से दो की हिरासत में मौत हो चुकी है।

    ये हैं दोषी
    दोषियों में पूर्व पुलिसकर्मी नितिन सरतापे, संदीप सरकार, तानाजी देसाई, प्रदीप सूर्यवंशी, रत्नाकर कांबले, विनायक शिंदे, देवीदास सपकाल, अनंत पटाडे, दिलीप पलांडे, पांडुरग कोकम, गणेश हरपुडे, प्रकाश कदम और हितेश सोलंकी शामिल हैं। इसके अलावा मनोज मोहन राज, सुनील सोलंकी, मोहम्मद शेख, सुरेश शेट्टी, अखिल खान और शैलेंद्र पांडे को बरी किया है।

    एंटीलिया मामले में पकड़ा गया प्रदीप शर्मा
    प्रदीप शर्मा पुलिस की नौकरी छोड़ने के बाद राजनीति में उतर गया था। हालांकि, एंटीलिया और मनसुख मर्डर केस में उसका नाम सामने आने के बाद उसे एनआई ने गिरफ्तार कर लिया था। मुंबई से अंडरवर्ल्ड के गुर्गों को खत्म कर शोहरत हासिल करने वाले प्रदीप शर्मा के पिता अंग्रेजी के प्रोफेसर थे। वह महाराष्ट्र के धुले में एक कॉलेज में पढ़ाते थे। प्रदीप शर्मा धुले में ही पला बढ़ा।

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