भोपाल। स्कूल-कालेज और अस्पतालों को मुनाफा बटोरना भारी पड़ेगा। आयकर विभाग ने धार्मिक, पारमार्थिक व सामाजिक संस्थाओं के लिए नया रिटर्न व आडिट फार्म जारी किया है। पहले जो ट्रस्ट और संस्थाएं दो पेज की आडिट रिपोर्ट दाखिल कर आयकर के दायित्व से मुक्त हो जाते थे, अब उन्हें 20 पेज की आडिट रिपोर्ट जमा करना है। आडिट के नए फार्मेट 10(बी) व 10(बीबी) से आयकर दान, गुप्त दान, ट्रस्ट व ट्रस्टियों से लेकर खर्च और दूसरे ट्रस्ट को किए गए दान की भी छोटी से छोटी जानकारी मांगी जा रही है। बात सिर्फ इतने पर खत्म नहीं हो रही। ताजा संशोधन के बाद ट्रस्टों के बीते वर्षों का रिकार्ड खंगालने और खानापूर्ति में गलती होने पर ट्रस्टों पर संपत्ति के अनुपात में भारी-भरकम टैक्स लगाने के अधिकार भी आयकर को मिल रहे हैं। आयकर ने आडिट और रिटर्न का नया फार्म जारी कर दिया है। एक अप्रैल से ये लागू हो रहे हैं। नए फार्म के प्रारूप और मांगी गई जानकारियों का ब्योरा व बारीकी देखकर चार्टर्ड अकाउंटेंट व कर पेशेवरों के माथे पर शिकन नजर आ रही है। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यह तो दिख रहा है कि सरकार काला धन रोकने के लिए धर्मार्थ संस्थाओं के नाम पर चलने वाले ट्रस्टों पर निगरानी रखना चाह रही है, लेकिन यह भी साफ हो गया है कि नए आडिट और रिटर्न के प्रविधानों के बाद असल सामाजिक संस्थाओं का संचालन और ट्रस्टी बनना भी डराने वाला काम बन जाएगा।
आयकर विभाग ने संस्थाओं को दिया समय
ट्रस्ट और संस्थाओं को 31 अगस्त तक नए प्रारूप में रिटर्न और 30 सितंबर तक आडिट रिपोर्ट आनलाइन दाखिल करने का समय दिया है। आमतौर पर समाज की संस्था बनाने के लिए समाज के लोग आम तौर पर पब्लिक ट्रस्ट से पंजीयन लेकर दान इक_ा कर जमीन आदि की तलाश शुरू करते हैं। इसे कार्पस फंड कहते हैं। बिना पंजीयन के ऐसे कार्पस फंड को भी बिना आयकर पंजीयन लिए इक_ा करने पर आय मानकर 30 प्रतिशत की दर से टैक्स वसूली हो सकेगी।
संस्थाओं को अपनी आय का 85 प्रतिशत खर्च करना जरूरी
संस्थाओं पर नियम लागू कर दिया है कि इन्हें अपनी आय का 85 प्रतिशत खर्च करना जरूरी है। यदि इससे कम खर्च किया तो शेष रुपया एफडीआर में रखकर आयकर विभाग को स्टेटमेंट देना होगा कि यह रुपया परमार्थ कार्यों में कब तक खर्च किया जाएगा। इसके लिए भी पांच वर्ष से ज्यादा का समय नहीं मिलेगा। ऐसी संस्थाएं जो काम कर रही हैं, लेकिन आयकर में पंजीयन हासिल नहीं किया है। उन्हें 30 सितंबर तक पंजीयन लेना है। पंजीयन लेने से चूकने पर बीते वर्षों का लेनदेन भी आयकर जांच में लेकर कार्रवाई कर सकेगा।
संस्थाओं में लाभ कमाने की ‘गलती’ मिली तो ट्रस्ट की श्रेणी से होंगे बाहर
ट्रस्ट मामलों के विशेषज्ञ सीए राजेश सेहलोत के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों व्याख्या की थी कि चैरिटेबल संस्थाएं परोपकार के लिए संचालित होना चाहिए। निजी स्कूलों-कालेजों, अस्पतालों को ट्रस्ट-सोयायटी के रूप में ही पंजीकरण दिया जाता है। आयकर नए फार्म में इनसे एक-एक दान, खर्च और प्राप्तियों का ब्योरा मांग रहा है। आयकर के कर निर्धारण अधिकारी को अधिकार दे दिए गए हैं कि वह ऐसी संस्थाओं के आय-व्यय के पैटर्न का विश्लेषण कर सकेगा। यदि कोई संस्था लाभ कमाती दिखी तो उसे ट्रस्ट की श्रेणी से बाहर कर भारी टैक्स लगा दिया जाएगा।
नवीनीकरण में कोई जानकारी असत्य या अधूरी दी गई तो पंजीयन खत्म
सीए सेहलोत के अनुसार ट्रस्ट-संस्थाओं को निश्चित समय अवधि में पंजीयन का नवीनीकरण करवाना होता है। इसके आवेदन में तमाम जानकारियां मांगी गई है। साथ ही यह शर्त जोड़ दी गई है कि कोई जानकारी असत्य या अधूरी दी गई तो उसे स्पेसिफाइड वाइलेशन यानी निर्देशित उल्लंघन मान लिया जाएगा। ऐसा होने पर ट्रस्ट का पंजीयन खत्म होगा। बाद में उसकी चल-अचल संपत्ति का बाजार भाव से मूल्यांकन कर 30 प्रतिशत टैक्स वसूला जाएगा। यह टैक्स ट्रस्टियों की संपत्ति से भी वसूला जा सकता है।
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