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    अगर पेशा है जूनून…तो सब कुछ है संभव

  • September 30, 2024

    • ‘मंडे पॉजिटिव’ में आज पढि़ए कैसे शिक्षक ब्रिजनंदनी की राह बनी एक सीख

    मदन मोहन अवस्थी, जबलपुर। मध्य प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता के स्तर में सुधार के लिए विद्यालयों में अच्छे भवन, तकनीकी सुविधा एवं पर्याप्त शिक्षकों के दावे सरकारी स्तर पर खूब किए जाते रहे हैं, लेकिन जबलपुर में इसकी हकीकत उलट है। जबलपुर जिले से करीब 50 किलोमीटर दूर एक सरकारी स्कूल किराए के भवन में चल रहा है।, और जहां पर नया भवन बनकर तैयार होना था वहां पर अब गाय भैंस बंध रही है, यहां बच्चों के लिए न अच्छा विद्यालय भवन है और न ही पढ़ाने के लिए पर्याप्त शिक्षक, लेकिन इसी बदहाल व्यवस्था के बीच उसी स्कूल में पदस्थ महिला शिक्षक ने जो कर दिखाया है वह काबिले तारीफ है। जबलपुर के शहपुरा विकासखंड के एक छोटे से गांव में शिक्षा की अलख जगाने के लिए महिला शिक्षक, ब्रिजनंदनी सेन ने एक अनोखी पहल की है।



    शहपुरा विकासखंड के सरकारी स्कूल में पदस्थ बृजनंदिनी सेन प्राथमिक शाला चौकी स्कूल में शिक्षक के पद पर पदस्थ है। स्कूल का भवन जर्जर हो चुका था, जिसे तोडऩे के बाद मध्य प्रदेश का शिक्षा विभाग बनाना ही भूल गया। बच्चों की शिक्षा पेड़ के नीचे संचालित हो रही थी। बारिश और धूप की वजह से बच्चे स्कूल छोडऩे लगे थे, जिससे उनके भविष्य पर संकट के बादल मंडराने लगे। इस चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में ब्रिजनंदनी सेन ने अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटने का फैसला किया। उन्होंने बच्चों की शिक्षा को बाधित न होने देने के लिए अपनी सैलरी से एक कमरे का किराया देना शुरू कर दिया। हर महीने दो हजार रुपये का किराया देकर, उन्होंने गांव में ही एक भवन किराए पर लिया, जहां स्कूल का संचालन सुचारू रूप से चल सके। यह पहल बच्चों के भविष्य को संवारने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो रही है।
    महिला शिक्षक बृजनंदिनी सेन कहती है कि स्कूल भवन टूटने के बाद कुछ दिन उन्होंने गांव में ही एक पेड़ के नीचे स्कूल लगाना शुरू किया, लेकिन छोटे-छोटे जीव जंतु आसपास घूमते रहते थे। वहीं बेमौसम बारिश और तेज धूप के चलते बेहद परेशानी हो रही थी, तब गांव में दो हजार रुपये में एक किराए का भवन लिया। जिसमें पहली से लेकर पांचवी तक स्कूल संचालित कर रहे हैं। बृजनंदनी कहती हैं कि जब हम इन परिस्थितियों में बच्चों को उच्च शिक्षा दे सकते हैं तो अगर हमें स्कूल भवन मिल जाता है तो हम बच्चों को और भी अच्छी शिक्षा दे सकते हैं, साथ ही इस संबंध में विकासखंड से लेकर जिले में बैठे अधिकारियों तक को जानकारी दे दी गई है।
    ब्रिजनंदनी सेन ने न सिर्फ अपनी सैलरी से किराया दिया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि बच्चों को पढ़ाई के लिए एक सुरक्षित और स्थिर वातावरण मिले। उनकी इस पहल से न केवल बच्चों की शिक्षा जारी रही, बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा। इस समय, स्कूल में कुल 32 बच्चे अध्ययनरत हैं और उनके साथ दो महिला शिक्षक भी तैनात हैं। शिक्षक दिवस के मौके पर जब हम शिक्षकों का सम्मान करते हैं, ब्रिजनंदनी सेन की इस पहल को सलाम करना न भूलें। उनकी इस अनूठी और प्रेरणादायक पहल ने यह साबित कर दिया कि एक शिक्षक न केवल ज्ञान का प्रदाता होता है, बल्कि बच्चों के उज्जवल भविष्य का संरक्षक भी होता है। ब्रिजनंदनी सेन का यह कदम न केवल बच्चों के जीवन को सवांर रहा है।

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