जबलपुर। मप्र की निचली अदालतों में 25 पुराने प्रकरण तीन माह की समयावधि में निपटाने की अनिवार्यता संबंधी हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से कहा गया है कि इस मामले में मार्च में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी थी और शीघ्र सुनवाई का आग्रह भी किया गया था,लेकिन इसके बावजूद ये मामले की सुनवाई के लिये प्रकरण लिस्टेड नहीं हुआ, लिहाजा एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट सेे न्याय की गुहार लगाई है।
क्या है आदेश में
हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार कार्यालय द्वारा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर सभी जिला सत्र न्यायालयों को आदेश जारी किया कि वो 25 पुराने प्रकरण अनिवार्य रूप से तीन माह में निराकृत करें।
तर्क और तथ्य क्या हैं
याचिका में एसोसिएशन ने पांच जजों की संवैधानिक पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा है कि राइट-टू-स्पीडी ट्रायल पक्षकारों का विधिक अधिकार है। न्यायालय द्वारा समय-सीमा तय करना कानून सम्मत नहीं है। प्रकरण के निराकरण के लिये न्यायालयों को आदेश दिया जाना नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है। इसके अलावा, याचिका में कानून बनाने के अधिकार पर भी तथ्य प्रस्तुत किये गये हैं। अभी ये तय नहीं हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई कब होगी।
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