भोपाल। पंचायत और निकाय चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवारों को इस बार जलसंकट का सामना करना पड़ सकता है। शहर के हर वार्ड में किसी न किसी कारण से पानी की परेशानी बनी हुई है और लोग परेशान हैं। मतदाताओं से वोट मांगने जाने वाले उम्मीदवारों के सामने सबसे बड़ी समस्या इसी रूप में सामने आने वाली है। जिस हिसाब से राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव की तैयारियों में जुट गया है, उससे लग रहा है कि कोई बड़ा कारण सामने नहीं आया तो चुनाव हो ही जाएंगे। इस बार गर्मी में चुनाव होंगे। चुनाव समाप्ति तक जरूर मानसून बनने लगेगा, लेकिन उसके पहले हर उम्मीदवार को शहर में फैले जलसंकट से दो-चार होना पड़ेगा। लगभग पूरे शहर में ही जलसंकट की स्थिति नजर आ रही है। कई जगह नर्मदा का पानी नलों में नहीं आ रहा है तो कहीं कम प्रेशर से पानी आ रहा है, वहीं अधिकांश बोरिंग सूख गए हैं, जिससे जलसंकट और गहरा गया है। आने वाले समय में यह और बढ़ेगा।
सबसे ज्यादा सड़कों पर मचेगा हंगामा
नगरीय निकाय चुनावों को लेकर सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के बाद अब जल्द ही चुनाव होने की उम्मीद जाग गई है। चुनाव होने के बाद परिषद के गठन के साथ ही जन समस्याओं के जिन मुद्दों को अनदेखा कर पिछले तीन साल से निगम के अधिकारी चैन से बैठे थे, उन सभी समस्याओं पर हंगामा मचना तय है। इन मुद्दों में सबसे अधिक हंगामा शहर की सड़कों पर बरपेगा। क्योंकि शहर की सड़कें खस्ताहाल है, एक माह के बाद बारिश प्रारंभ हो जाएगी। इस दौरान शहर की सड़कें और भी बदहाल हो जाएंगी। पिछले दो सालों से शहर की सड़कों का निर्माण कार्य नहीं हुआ है। इसके कारण पिछले वर्ष भी शहर की सभी सड़कें गड्ढों से भर गई थीं जिन पर नगर निगम बार-बार पेंचवर्क का पानी फेर रहा था जो की हर बार बारिश में बह जा रहा था।
परिषद नहीं होने से समस्याएं बढ़ी
10 जनवरी 2020 से नगर निगम में परिषद नहीं है, यहां पर सभी कार्य नगर निगम के अधिकारी और प्रशासक द्वारा किए जा रहे हैं। इसके साथ ही आमजन भी अपनी समस्याओं को लेकर बार-बार अधिकारियों के पास नहीं जा पाते हैं। जबकि पार्षद के होने पर लोग आसानी से पार्षदों के घरों पर पहुंचकर अपनी परेशानियों को बता देते हैं। क्योंकि नगर निगम परिषद में जनता के द्वारा चुने गए पार्षदों द्वारा जन समस्याओं को उठाया जाता है। साथ ही यह भी देखा जाता है कि अधिकारी जो कार्य कर रहे हैं उसमें कहां-कहां कमियां हैं और उन्हें कैसे ठीक किया जा सकता है। इन सभी बातों पर परिषद के अंदर 85 पार्षद, महापौर मंथन करते हैं। इसके बाद सभापति अपना निर्देश देते हैं जिन का पालन नगर निगम के अधिकारियों को करना होता है। लेकिन तीन साल से चुनाव नहीं होने के कारण नगर निगम में परिषद का गठन नहीं हो सका। इसके कारण अधिकारी अपनी मनमर्जी के मुताबिक सभी योजनाओं को तैयार करते रहे और उनका कार्य करते रहे। इनमें से अनेकों योजनाओं में परेशानी हो रही है, जिनका परिषद के आने पर अधिकारियों को सामना करना पड़ेगा।
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