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    सैकड़ों करोड़ की 300 एकड़ जमीन कैट को दी तो लालबाग सरकार को सौंपा, जानिए महाराज-महारानी की दान की गई जमीनें

  • October 07, 2020


    एमवाय से लेकर यूनिवर्सिटी और स्कूलों की जमीनें भी शासन के नाम कर दीं

    इंदौर। ट्रस्ट के सचिव राठौर का कहना है कि महारानी के परिवार पर 100-200 करोड़ की संपत्तियों को औने-पौने दामों में बेचे जाने का आरोप लगाया जा रहा है। उन्हीं महारानी के परिवार ने इंदौर की जनता के लिए अपना सबकुछ समर्पित कर दिया। उन्होंने बताया कि विभाजन के बाद भारत सरकार के कोविनेंट के जरिए इंदौर शहर की असीम संपदा महारानी के नाम पर की गई थी, जिसमें कलेक्टोरेट से लेकर भंवरकुआं, फलबाग और राजेन्द्र नगर तक की पूरी भूमियों के अलावा राजबाड़ा, लालबाग पैलेस से लेकर शहर की कई संपत्तियां शामिल थीं। लेकिन महारानी ने महाराजा यशवंतराव होलकर के रहते जहां एमवाय हास्पिटल सरकार को सौंपा, वहीं उनके अवसान के बाद वारिस के तौर पर मिली सारी संपत्तियां अपने निजी ट्रस्ट में शामिल कर शहर के लिए समर्पित करना शुरू की। इंदौर में यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए उन्होंने आरएनटी मार्ग स्थित अपनी भूमि जहां शासन को सौंप दी, वहीं लालबाग पैलेस भी शासन को सौंप दिया। इंदौर में जब कैट जैसे वैज्ञानिक अनुसंधान केन्द्र का शुभारंभ करने की बात शुरू हुई तो जिला प्रशासन ने महारानी के स्वामित्व की 300 एकड़ जमीन मांगी। इस जमीन की कीमत आज की तारीख में हजारों करोड़ रुपए है, लेकिन महारानी ने बिना कुछ सोचे-समझे इंदौर शहर को मिल रही उपलब्धि के लिए अपने स्वामित्व की भूमि शासन के नाम कर दी, जिस पर आज कैट बना हुआ है। इसके अलावा इंदौर के बाल विनय मंदिर से लेकर कई स्कूल महारानी के निजी ट्रस्ट की भूमि पर संचालित हो रहे हैं। महारानी की कोविनेंट में मौजूद कई संपत्तियां आज भी शासन के नाम पर चढ़ी हुई होकर उनके काम आ रही हैं, जिन पर कभी महारानी ने अपने स्वामित्व का दावा ही नहीं किया। उन्होंने कहा कि महाराजा यशवंतराव होलकर के बाद महारानी और उनके पति सतीश मल्होत्रा उदार भाव से शहर के लिए समर्पित रहे। इंदौर की महारानी होने के बावजूद न उनके पास कोई महल बचा है और न ही कोई संपदा। वे माणिकबाग रोड स्थित एक छोटी सी निजी भूमि पर ट्रस्ट का कार्यालय संचालित करते हुए एक छोटे से मकान में अपने प्रवास के दौरान रुकती हैं।

    डेली कॉलेज भी होलकरों की जमीन पर बसा
    ट्रस्ट के सचिव का कहना है कि उन्हें ट्रस्ट का पदभार संभाले बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ, लेकिन उनके संपर्क में आने के बाद लगा कि कलियुग में भी ऐसे दाता होते हैं। जब भी शासन द्वारा उनकी निजी संपत्ति की मांग की जाती है वे हंसते-हंसते उसे शासन को सौंप देते हैं। इंदौर का लालबाग पैलेस जहां सबसे बड़ा उदाहरण है, वहीं डेली कॉलेज भी महारानी की जमीन पर ही बसा, ताकि शहर के बच्चों को उच्च शिक्षा मिल सके।

    हाल ही में राजबाड़ा के शिव मंदिर का अपने पैसों से जीर्णोद्धार कराया, चार करोड़ खर्चे, महालक्ष्मी मंदिर की 1 करोड़ देकर काया पलटी
    एक ओर जहां ट्रस्ट के ट्रस्टी महारानी उषादेवी और उनके परिवार पर खासगी ट्रस्ट की संपत्तियों के दुरुपयोग का आरोप लग रहा है, वहीं वास्तविकता यह है कि महारानी द्वारा प्रत्यक्ष रूप से ट्रस्ट के संचालन में कोई रुचि नहीं ली जाती। ट्रस्ट के ट्रस्टियों ने ट्रस्ट का संचालन कर रहे महारानी उषाराजे के पति सतीश मल्होत्रा से जब-जब आमदनी से ज्यादा खर्च का जिक्र किया, तब-तब वे अपने निजी पैसे ट्रस्ट को देकर खासगी संपत्तियों का संचालन करते रहे। यहां तक कि जब राजबाड़ा का पुनर्निर्माण शुरू हुआ तो वहां स्थित शिव मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए इंदौर के संभागायुक्त ने मल्होत्रा से कहा तो उन्होंने अपने सचिव राठौर को मंदिर के जीर्णोद्धार में होने वाले खर्च का बजट बनाने के लिए कहा। राठौर ने बताया कि उन्होंने मामूली खर्च मेें जीर्णोद्धार का खर्च जब मल्होत्रा को दिया और कहा कि खासगी ट्रस्ट के पास खर्च के लिए रकम नहीं है तो मल्होत्रा ने स्वयं अपने पैसे से जीर्णोद्धार कराने के निर्देश देते हुए नया बजट बनाने को कहा और मंदिर के जीर्णोद्धार में स्वयं रुचि लेते हुए निजी आर्किटेक्ट लगाकर करीब 4 करोड़ रुपए मंदिर में खर्च कर डाले, जिसकी कोई रकम न तो ट्रस्ट से ली और न दान या चंदे से उन्होंने मंदिर पुनर्निर्माण के लिए एक नया खाता खुलवाया, जिसमें पैसे जमा कराए गए। इसके अलावा राजबाड़ा स्थित महालक्ष्मी मंदिर बेबसी की हालत में था, जिसमें प्रवेश से लेकर दर्शन और पूजा तक की स्थिति नहीं थी। इस पर उन्होंने मंदिर के जीर्णोद्धार का जिम्मा लेते हुए करीब 1 करोड़ रुपए खर्च कर डाले। यहां तक कि वहां मौजूद किराएदारों को भी बेदखल नहीं किया गया और वर्षों बाद मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ।

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