भोपाल। प्रदेश में लंपी वायरस से गौवंश को बड़ा खतरा पैदा हो गया है। आधे प्रदेश में यह बीमारी फैल चुकी है। वायरस को फैलने से रोकने में अभी तक पशु पालन विभाग पूरी तरह से असफल रहा है। लंपी वायरस गौवंश को चपेट में ले रहा है, उसमें भी संकर नस्ल (हाईव्रिड)गायों को ज्यादा प्रभावित करता है। देसी नस्ल को इससे मौत का खतरा बेहद कम है। पशुओं में लंपी वायरस इंसानों में मलेरिया की तरह मच्छर, कीट, मख्खियों के काटने से फैलता है। लंपी से निपटने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर नियंत्रण कक्ष बना दिया है। साथ ही टीकाकरण में तेजी कर दी है। पशु विशेषज्ञों के अनुसार लंपी से पीडि़त पशु से इंसानों को कोई खतरा नहीं है। हालांकि जिन गांव , फार्म हाउस या गौशालाओं में लंपी फैल चुका है। वहां कीटनाशकों को छिड़काव कर काटने वाले कीट, पतंग और मच्छरों को मारने एवं भगाने की जरूरत है। क्योंकि यह लंपी वायरस पशुओं की लार, चारे से नहीं फैसला है। बीमार पशु से काटकर स्वस्थ पशु को काटने की स्थिति में फैसता है।
हाइव्रिड नस्ल की 80 फीसदी तक होती है मौत
लंपी वायरस से देसी नस्ल के गौवंश को खतरा ज्यादा है। देसी नस्ल सिर्फ 2-3 फीसदी तक मौत होती है। जबकि गायों की हाइब्रिड नस्ल की 80 फीसदी तक की मौत हो जाती है। 1 साल से कम उम्र के बच्चे ज्यादा बीमार नहीं होते। सबसे ज्यादा 1 से 5 साल का गौवंश इसकी जद में आता है। 5 साल से अधिक आयु का गौवंश भी इससे प्रभावित होता है।
स्वस्थ पशुओं में टीकाकरण जरूरी
पशु विशेषज्ञों के अनुसार वैसे तो देश में लंपी वायरस को कोई टीका नहीं है। बकरियों में जो गोटा टीका लगाया जाता है, वही टीका लंपी से निपटने में पूरी तरह से कारगार है। लेकिन बीमार पशु में यह बिल्कुल कारगार नहीं है। स्वस्थ पशु को टीका लगा देना चाहिए। क्योंकि टीका लगने के बाद एंटीबॉडीज बनने में ही 8-10 दिन का समय लगता है। यहां बता दें कि भारत में लंपी का टीका तैयार हेा चुका है, लेकिन अभी इसका पशुओं में इस्तेमाल नहीं हो रहा है। जल्द ही भारत में निर्मित लंपी वायरस का टीका पशुओं में लगाया जाएगा।
पशुपालक ये बरतें सावधानी
प्रदेश के 26 से ज्यादा जिलों में लंबी फैल चुका है। सरकारी आंकड़े के अनुसार अभी तक 100 से ज्यादा गौवंश की मौत हो चुकी है। जबकि 7 हजार से ज्यादा इससे संक्रमित हो चुके हैं। पशु विशेषज्ञों के अनुसार लंपी फैलने से बचाने के लिए पशुओं को झुंड में न रखें। पशु वाले क्षेत्रों में सेनिटराइज किया जाए। गौशालाओं को सेनिटाराइज किया जाए या कीटनाशकों का छिंड़काव किया जाए। जिससे मच्छर न रहें।
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