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    पत्नी से तलाक के बाद पति मांग सकते हैं गुजारा भत्ता : मुंबई हाई कोर्ट

  • April 01, 2022

    मुंबई। यह सुन कर भले ही हैरानी हो कि पति से गुजारा भत्ते (alimony) की मांग कर रही पत्नी को उल्टा पति के वास्ते गुजारा भत्ता (alimony) देने का अदालत से फरमान मिल जाए, मगर अब यह हकीकत है कि भारतीय अदालतें (Indian courts) समय के साथ समाज में आए बदलाव को देखते हुए महिलाओं के हित में बने कानूनों पर अलग तरीके से फैसला कर रही हैं। ऐसा हीही मामला औरंगाबाद (Aurangabad) से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें एक पत्नी हो ये पैसै अपने पति को देने हैं। बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने नांदेड़ अदालत द्वारा पारित आदेशों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

    बताया जा रहा है कि अदालत ने एक स्कूल शिक्षक को अपने पति को भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया था, जिसके पास खुद की देखभाल करने के लिए कोई आय नहीं थी। पत्नी एक शिक्षक के रूप में काम करती थी वहीं पति कुछ भी नहीं करता था। ऐसे में नांदेड़ अदालत ने स्कूल के प्रधानाध्यापक को पत्नी का वेतन काटकर अदालत में भेजने के लिए भी कहा था।

    दोनों की शादी 17 अप्रैल 1992 में हुई थी, लेकिन बाद में पत्नी ने इस रिश्ते से तलाक लेते हुए कोर्ट में अर्जी डाली थी, और आखिरकार 2015 में नांदेड़ अदालत ने तलाक को मंजूरी दे दी. इसके बाद पति ने निचली अदालत में याचिका दायर कर पत्नी से 15,000 रुपये प्रतिमाह की दर से स्थायी गुजारा भत्ता देने की मांग की। पति ने तर्क दिया था कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है जबकि पत्नी ने एमए, बीएड की शैक्षणिक योग्यता हासिल की थी और एक स्कूल में काम कर रही थी. पति ने दावा किया कि पत्नी को डिग्री प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए, उसने अपनी महत्वाकांक्षा को दरकिनार करते हुए पत्नी की मदद की थी। उसने ये भी दलील दी कि नौकरी करने से पहले, वह ट्यूशन क्लास ले रही थी और परिवार के लिए आय अर्जित कर रही थी. पति ने यह भी दावा किया था कि वह अपनी पत्नी के पिता के साथ काम कर रहा था, और वहीं से जो पैसे मिल रहे थे, उसे परिवार में मदद कर रहा था।



    वही पति ने यह भी कहा था कि वैवाहिक संबंधों में उसे अपमान और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा क्योंकि पत्नी ने गलत और बेईमान इरादे से तलाक के लिए याचिका दायर की थी. पति ने कहा कि वह न तो कोई नौकरी कर रहा है, न ही उसके पास कोई चल-अचल संपत्ति है या उसकी कोई स्वतंत्र आय है। इसके अलावा पति ने ये भी दलील दी कि उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है, जिस कारण वो आजीविका कमाने के लिए कोई नौकरी हासिल करने में असमर्थ हैं वहीं उसकी पत्नी महीने के 30 हजार रुपये कमा रही है, और उसके पास मूल्यवान घरेलू सामान और अचल संपत्ति भी थी।

    अब इस मामले पर न्यायमूर्ति डांगरे का कहना है कि, “चूंकि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 को बेसहारा पत्नी/पति के लिए एक प्रावधान के रूप में देखा जाना चाहिए, इसलिए प्रावधानों को व्यापक रूप से समझा जाना चाहिए ताकि उपचारात्मक जरूरतों को बचाया जा सके। न्यायमूर्ति डांगरे ने आगे कहा कि 1955 के अधिनियम की धारा 24 के तहत पति द्वारा दायर अंतरिम भरण-पोषण के लिए आवेदन पर न्यायाधीश द्वारा सही विचार किया गया है और पति को अंतरिम भरण पोषण का हकदार माना गया है। अधिनियम की धारा 25 में कहा गया है कि अदालत आवेदक को उसके जीवन भर के लिए एकमुश्त या मासिक राशि के रूप में रखरखाव का भुगतान करने का आदेश दे सकती है।

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