साल 2003 में आई निर्देशक प्रियदर्शन (Priyadarshan) की हंगामा (Hungama) आज भी दर्शक अपने दिनालें से निकाल पाए हैं। हंगामा 2 उसी ब्रांड को आगे बढ़ाती है दो प्रेमी अपने जीवन की उलझन को सुलझाने में लगे हैं और पति-पत्नी का एक जोड़ा आपसी तालमेल के अभाव में रात-दिन खट्टी-मीठी नोकझोंक दो-चार हो रहा है। हंगामा की तर्ज पर ही नई कहानी लिखी गई और शुरू से अंत तक लेखक-निर्देशक-ऐक्टर इस कोशिश में हैं कि दर्शक हंसें. मामला कॉमेडी ऑफ एरर्स का है। कॉमेडी ऑफ एरर्स (Comedy of Errors) में कथानक कुछ यूं होता है कि उसके किरदार घटनाओं और बातों को एक के बाद एक गलत नजरिये से देखते चलते हैं और फंसते जाते हैं वे समझते कुछ और हैं और मामला कुछ और होता है। इस तरह दर्शक के लिए कॉमेडी पैदा होती जाती है।
प्रियदर्शन ने लंबे समय बाद डायरेक्शन में वापसी की है हंगामा 2 को उन्होंने एक पारिवारिक फिल्म बताया था, ये भी कहा था कि फिल्म में कॉमेडी बिल्कुल साफ-सुथरी रखी गई है। फिल्म देखकर डायरेक्टर की बात बिल्कुल सही लगती है, कुछ भी उटपटांग नहीं दिखाया गया है, बिना सिर पैर की कॉमेडी भी नहीं है. लेकिन मजे की बात ये है कि फिल्म में कॉमेडी भी नहीं है. 2 घंटे 36 मिनट की फिल्म में कोई अगर आपको 10 मिनट हंसा दे, तो उसे कॉमेडी फिल्म नहीं कह सकते.।
वहीं एक्टिंग के मामले में कुछ राहत जरूर दिखाई पड़ती है. मीजान की कॉमिक टाइमिंग बढ़िया लगी है। फिल्म कम की है, इसलिए ये नहीं कह सकते कि कोई जॉनी लीवर टाइप का एक्टर मिल गया है, लेकिन शुरुआत बढ़िया है। प्रणिता सुभाष का काम भी सही कहा जाएगा. ये देखकर अच्छा लगा कि डायरेक्टर ने फिल्म में अपनी फीमेल लीड को काफी स्पेस दी है। आधे से ज्यादा कन्फ्यूजन उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमे हैं. इस बार आशुतोष राणा को भी अलग टाइप का रोल मिला है. एक्टिंग तो उनकी अच्छी ही रहती है, लेकिन इस बार उनका किरदार काफी चिल्लम चिल्ली करता है. कह सकते हैं कि प्रियदर्शन की फिल्म है, इसलिए ऐसा हुआ है. लेकिन शायद आशुतोष पर ये ज्यादा सूट नहीं करता।
लंबे समय बाद वापसी कर रहीं शिल्पा शेट्टी को फिल्म में कई बार आता-जाता दिखाया गया है, लेकिन एक ठोस किरदार की कमी है. मेकर्स ने उन्हें उन्हीं के पुरानी गानों पर डांस जरूर करवाया है, फिल्म के बाद भी वहीं याद रह जाता है। फिल्म में परेश रावल को शिल्पा के पति के तौर पर दिखाया गया है. ये सुनने में जितना अजीब लगता है, देखते समय भी अटपटा दिखाई पड़ता है। कॉमेडी फिल्म जरूर है, लेकिन ये कपल बेमेल सा लगता है. सह कलाकारों में टीकू तलसानिया और राजपाल यादव ने बेहतरीन काम किया है।
हंगामा 2 की डायरेक्शन की बात करना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि प्रियदर्शन ने कोई खराब काम नहीं किया है जो सेट फॉर्मूला 90 के दौर में इस्तेमाल करते थे, उसी को फिर दोहराया है। उनकी हेरा फेरी को देखकर तो आज भी हंसी आ जाती है, लेकिन इस बार शायद कन्फ्यूजिंग फिल्म बनाने के चक्कर में वे खुद ही कन्फ्यूज हो गए वो असर फिल्म में साफ दिखा क्योंकि कॉमेडी गायब रही और कहानी से कनेक्शन भी टूटता रहा। फिल्म में कुछ गाने भी रखे गए हैं अलग से सुनेंगे तो शायद बढ़िया लगें, लेकिन फिल्म के लिहाज से सटीक नहीं बैठते हैं। ऐसे में हंगामा 2 को लेकर कुछ बज तो था, लेकिन कॉमेडी के आभाव में ये सिर्फ एक शोर-शराबे वाली फिल्म रह गई जिसे ना देखने में किसी का कोई नुकसान नहीं होगा।
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