यह कैसा संगीत…
देश में अपनी एक अलग पहचान रखने वाला इंदौर का शास्त्रीय संगीत महाविद्यालय इन दिनों चर्चा में है। चर्चा किसी अच्छे काम या बड़ी उपलब्धि के कारण नहीं, बल्कि यहां के एक शिक्षक की शर्मसार करने वाली हरकतों के कारण। अभी तक चुप्पी साधकर बैठे यहां के विद्यार्थी अब मुखर होने लगे हैं और ऐसी-ऐसी बातें सामने आ रही हैं, जिन्हें सुनने के बाद आप सिर पकड़ लेंगे। ऐसा आखिर किसकी शह पर हो रहा है। यह शिक्षक संगीत के ख्यात ग्वालियर घराने से जुड़े हैं और अगले साल की शुरुआत में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। पीडि़त छात्रों ने सारे सबूत भी इक_ा कर लिए और मामला अब प्रदेश की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर के सामने उठने वाला है।
अंडे नजर आए टैलेंट नहीं दिखा
अंडे का ठेला लगाने वाले पारस रायकवार को तो आखिरकार हाथ जोड़कर लोगों से कहना पड़ा कि मुझे अब मदद की जरूरत नहीं है, इस शहर के लोगों ने खूब मदद कर दी। यह भी तब जब पारस या उसके भाई ने किसी के सामने हाथ नहीं फैलाए। पर सब्जी बेचकर परिवार का पोषण कर रही पीएचडी स्कॉलर डॉक्टर रईसा अंसारी के मामले में लोगों की चुप्पी समझ नहीं आई। ऐसा नहीं कि उसे मदद की दरकार नहीं, पर वह किसी के सामने हाथ फैलाने के बजाय खुद्दारी से परिवार चलाना चाहती है। सब्जी बेचकर उसका काम चल रहा है, पर शहर के जिम्मेदार लोग योग्यता मुताबिक उसे काम दिलवा दें तो यही सबसे बड़ी मदद होगी।
नाचती सब्जियां कभीं यहां कभी वहां
सब्जी के प्रति इस शहर के लोगों के मोह को अब कलेक्टर मनीष सिंह भी सैल्यूट करने लगे हैं। कोरोना संक्रमण के सबसे कठिन दौर में जब प्रशासन और पुलिस की बहुत ज्यादा सख्ती थी तब भी इंदौर के लोगों ने सब्जी का जुगाड़ कर ही लिया था। जब चोइथराम मंडी बंद की गई और शहर में गली-मोहल्लों में ठेलों और साइकिलों पर सब्जी मिलना बंद हो गई तो यह दीवाने सब्जी खरीदने पीथमपुर, हातोद, बेटमा, तिल्लौर और बड़वाह तक चले गए। प्रशासन समझा-समझाकर थक गया कि सब्जियां कोरोना वायरस की बड़ी कैरियर हैं, पर लोग नहीं माने तो नहीं माने।
सांसद की दूरी कौन सी मजबूरी
डॉ. निशांत खरे को तो संघ ने रोज-रोज की भचभच से मुक्त करते हुए एक अलग दायित्व दे दिया, लेकिन सांसद शंकर लालवानी ने जनप्रतिनिधियों की अतिसक्रियता के बीच आपदा प्रबंधन समिति से दूरी क्यों बना ली यह कोई समझ नहीं पा रहा। कोरोना संक्रमण के सबसे अहम दौर में सांसद, कलेक्टर और डॉक्टर खरे की तिकड़ी ने बहुत सोच-समझकर निर्णय लिए, लेकिन बाद में सक्रिय हुए जनप्रतिनिधियों को तो मानो शहर के हालात से कोई वास्ता ही नहीं था। उन्होंने ऐसा दर्शाया मानो शहर के सबसे बड़े शुभचिंतक ये ही हैं। जब श्रेय पाने के लिए कुछ भी निर्णय होने लगे तो लालवानी ने इन बैठकों से राम-राम कर ली।
बाबा का कम्प्यूटर दिमाग
कुछ भी कहो कम्प्यूटर बाबा किस्मत के तो धनी हैं। सिंहस्थ के पहले सरकार के खिलाफ जो तेवर दिखाए तो सरकार ने इनका सिंहस्थ अच्छा निपटवा दिया। फिर भाजपा से बाय-बाय कर ली। कांग्रेस की सरकार बनी तो बारास्ता दिग्विजयसिंह कमलनाथ के यहां मजबूत हो गए और लाल बत्ती वाली गाड़ी की सवारी मिल गई। लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर रायकवार की मदद से दिग्विजयसिंह से अच्छी डील हो गई और अब जब कांग्रेस सरकार में नहीं तो बाबा लोकतंत्र बचाने का नारा देकर फिर मैदान में आ गए। जिस हिसाब से इंतजाम हो रहे हैं, इस यात्रा के प्रायोजक भी कमलनाथ ही दिख रहे।
गई ताकत तो मिटी हिमाकत
कांग्रेस के राज में अफसरों को फस्र्ट नेम से पुकारने का शौक पाल बैठे नेताओं को अब बहुत दिक्कत हो रही है। जीतू पटवारी का ही मामला लें। उन्हें मंत्री बनने के बाद लगा था कि अब तो पांच साल सब कुछ उन्हीं के मुताबिक होगा। तब के कलेक्टर और एसएसपी को वह फस्र्ट नेम से पुकारने लगे थे। पर ऐसा ज्यादा दिन नहीं चल पाया। कांग्रेस की सरकार भी गई और दोनों अफसर भी चले गए। नए अफसरों से पुरानों जैसा बर्ताव भी संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में फिर कलेक्टर साहब और डीआईजी साहब जैसे संबोधन पर लौटने के लिए अच्छी खासी मशक्कत भी करना पड़ी होगी। सालों पहले ऐसा ही शौक पुस्तक प्रकाशक अनिल माहेश्वरी ने पाला था।
ऊपर से आया नीचे का नाम
राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के बीच तो एकेवीएन इंदौर के एमडी को लेकर खींचतान चल ही रही है और अभी तक इसी कारण फैसला नहीं हो पाया है। लेकिन इस पद के लिए एक नया नाम सामने आया है और वह है भोपाल नगर निगम के पूर्व आयुक्त विजय दत्ता का। कहा यह जा रहा है इस नाम में मुख्यमंत्री की रुचि है। अब यदि किसी नाम में मुख्यमंत्री की रुचि है तो फिर बाकी अफसरों की क्या बिसात। इसी कारण एक-दो दावेदार बैकफुट पर आ गए हैं और निगाहें दूसरे पदों पर जमा ली हैं।
… और अंत में
बेटमा इंदौर से ज्यादा दूर नहीं है और यहां के थाने की कमान संजय शर्मा के हाथ में है। कुछ महीने पहले ही वह पुलिस लाइन से वहां भेजे गए। अब यदि बेटमा में किसी को शर्मा को ढूंढना हो तो परेशान होने की जरूरत नहीं, उनका मुकाम थाने के बजाय माचल स्थित तसल्ली रिसोर्ट है। वहां आसानी से संपर्क हो जाता है। थाना तो मातहत अमला चला ही लेता है।
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