मीत की प्रीत
मीत लालवानी और कोठी नंबर दो। आखिर ऐसा क्या है इस कोठी में कि जिसे खाली करवाने के लिए मंत्रालय की पांचवीं मंजिल से हस्तक्षेप किया गया। दरअसल यह कोठी पहले सज्जनसिंह वर्मा को आवंटित की गई थी। सत्ता में बदलाव के बाद जब वर्मा मंत्री नहीं रहे तो इस पर सांसद शंकर लालवानी की नजर पड़ी और यह कोठी उन्हें अलॉट हो गई। बस कोठी अलॉट होना थी कि इसे खाली कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई। मजेदार बात यह है कि कोठी जल्दी खाली हो जाए और इसमें सांसद का व्यवस्थित दफ्तर शुरू हो जाए इसमें सबसे ज्यादा रुचि मीत की ही रही। इसी कारण मामला भोपाल पहुंचा। यह बात अलग है कि पत्नी की बायपास सर्जरी के कारण वर्मा ने इसे खाली करने के लिए कुछ दिन का समय मांगा था।
कुमार का पद पुरुषोत्तम भरोसे
कुमार पुरुषोत्तम को तो उनकी मेहनत का सही पुरस्कार मिल गया, लेकिन अब एकेवीएन की कमान कौन संभालेगा इसको लेकर प्रशासनिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चा है। कृष्णमुरारी मोघे दिलचस्पी लें तो वरदमूर्ति मिश्रा का इस पद के लिए दावा मजबूत हो सकता है। वैसे जनसंपर्क आयुक्त सुदाम खेड़े अपने प्रिय अफसर केदार सिंह को इस पद पर देखना चाहते हैं तो मंत्री तुलसी सिलावट चाहते हैं कि रजनीश कसेरा को मौका दिया जाए। देखते हैं इनमें से किसे मौका मिलता है। वैसे मोघे की उद्योग मंत्री राज्यवर्धनसिंह से ताजा नजदीकी का फायदा भी कुछ लोग मिश्रा को दिलवाने में लगे हैं। खैर! फैसला तो मुख्यमंत्री के दरबार में ही होगा।
केसर हैं कसेरा… जहां जाएंगे रंग जमाएंगे
अपर आयुक्त रजनीश कसेरा अचानक नगर निगम के लिए इतने अप्रासंगिक क्यों हो गए यह कोई समझ नहीं पा रहा है। लोग तो यह भी जानना चाहते हैं कि कसेरा से एक के बाद एक कई प्रभार आखिर निगमायुक्त ने किस कारण वापस लिए। कसेरा को हलका करने और दूसरे अफसरों को जरूरत से ज्यादा वजनदार करने का मामला इन दिनों नगर निगम में इसलिए भी चर्चा का विषय है कि आखिरकार निगम आयुक्त प्रतिभा पाल को कसेरा के मामले में इतनी स्टडी कैसे हो गई। वैसे कसेरा को लेकर यह चर्चा जोरों पर है कि वह जल्दी ही या तो इंदौर में किसी महत्वपूर्ण पद पर दिख सकते हैं ।
इंदौर में नहीं…..प्रदेश में उमेश
वीडी यानी विष्णुदत्त शर्मा की कार्यकारिणी में इंदौर से किसे मौका मिल पाएगा इसको लेकर भाजपा के दिग्गज भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। ओके दावेदार एक दर्जन से ज्यादा हैं और मौका दो-चार को ही मिलना है। पर एक नाम पर तो सब सहमत हैं कि इसे तो मौका मिलना ही चाहिए। वह नाम है उमेश शर्मा का, जो नगर अध्यक्ष पद के भी मजबूत दावेदार थे और जब गौरव रणदिवे को अध्यक्ष बनाया गया तो उनके तेवर भी तीखे थे। खुद गौरव चाहते हैं कि उमेश प्रदेश कार्यकारिणी में अहम भूमिका में हों। वैसे उमेश के साथ हमेशा ऐनवक्त पर ही चोट होती है।
भाजपा को नजर आ रही है मालवा में मलाई
भाजपा के नेता खम ठोंककर यह दावा करते हैं कि मालवा-निमाड़ से अभी 3-4 और कांग्रेसी विधायक हमारा दामन थामेंगे। इसके पीछे इनका तर्क भी कुछ अजीब है। वे कहते हैं एडवांस का उतारा तो लोटस वन के दौरान ही हो चुका है। बाकी देने में भी कोई दिक्कत नहीं है। यदि हमारे साथ नहीं आना चाहते हैं तो एडवांस वापस करना होगा ना। नेपानगर की विधायक सुमित्रा कास्डेकर के भाजपा में आने के बाद सक्रिय हुए कुछ मैनेजर कह रहे हैं कि अब तो सरकार भी हमारी है। वैसे भाजपाइयों के इतना कुछ कहने के बाद भी चंद्रभागा किराड़े, पांचीलाल मेड़ा और वालसिंह मेड़ा को चिंता करने की जरूरत नहीं। कहने वाले तो कहते रहते हैं।
भ्रष्टाचार का दीपक
कन्फेक्शनरी किंग कहे जाने वाले दीपक दरयानी की परेशानी और बढ़ सकती है। कमलनाथ से नजदीकी के कारण इन दिनों वे कई के टारगेट पर हैं। डीजीजीआई की सर्च के बाद कुछ और केंद्रीय एजेंसियां भी आशा कन्फेक्शनरी को लेकर खोजबीन में लगी हैं। शहर में दीपक के चाहने वालों की भी कमी नहीं है, वे मौके का फायदा लेकर जताने की कोशिश में लगे हैं कि दीपक की परेशानी का कारण वे ही हैं। वैसे इस सबसे बेखौफ दीपक अपने काम में लगे हैं कि ऐसी परेशानियों का सामना करते हुए वे यहां तक पहुंचे हैं।
पिता को मिला बेटे का सहारा
प्रेमचंद गुड्डू कोरोना पॉजिटिव क्या हुए भाजपाइयों को लगा मानो वे चुनाव की दौड़ से ही बाहर हो जाएंगे। तरह-तरह की बातें चुनाव क्षेत्र में चर्चा में आ गईं। घर-घर महादेव महाअभियान पर भी अटकलें लगने लगीं। आखिरकार गुड्डू के बेटे अजीत ने मोर्चा संभालकर परिवार की टेस्ट रिपोर्ट वीडियो पर सार्वजनिक करते हुए कहा कि चिंता न करें हम सब ठीक हैं और विधानसभा क्षेत्र का हर कांग्रेस कार्यकर्ता गुड्डू बनकर ही चुनाव लड़ेगा।
…और अंत में
एक वक्त था, जब पुलिस की नीली गाड़ी किसी क्षेत्र में निकल जाती थी तो लोग घरों में घुस जाते थे या सड़कों पर भगदड़ मच जाती थी। ठीक वही स्थिति अब पीली गाडिय़ों को देखकर हो रही है। इन दिनों पीली गाडिय़ों का बड़ा आतंक है। ऐसा लगता है मानो इन पर किसी का नियंत्रण ही नहीं। इन गाडिय़ों में सवार लोगों को जो जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं, लॉकडाउन-अनलॉक के दौर में इन लोगों ने जिस तरीके से वसूली की है, उसके किस्से चटकारे लेकर सुनाए जा रहे हैं।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved