नई दिल्ली: हुन सेन, कंबोडिया के वो प्रधानमंत्री जो 38 साल से सत्ता में हैं. एक बार फिर उन्होंने जीत का दावा किया है. चुनाव ऐसा कि मानो हुन सेन का राज्यभिषेक हो रहा है. एशिया में वह सबसे लंबा शासन करने वाले नेता हैं. उनकी पार्टी कंबोडियन पीपुल्स पार्टी के प्रवक्ता ने बताया कि कितनी सीटें मिली हैं इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. इस बार चुनाव में रिकॉर्ड तोड़ 84 फीसदी मतदान हुआ है. मतदान का विरोध भी हुआ. कई मतदाताओं ने बैलट पेपर फाड़ दिए. इसकी वजह से दो लोग गिरफ्तार किए गए हैं.
- 125 सीटों का रिकॉर्ड दोहराने की उम्मीद: कंबोडिया में 1.6 करोड़ मतदाता हैं. इनमें 97 लाख मतादाताओं ने मतदान किया. हुन सेन की पार्टी कंबोडियन पीपुल्स पार्टी (सीपीपी) समेत कुल 18 पार्टियों चुनावी मैदान में थीं. इनमें 17 छोटी पार्टियां हैं. इनके पास इतना रिसोर्सेज नहीं है कि ये हुन सेन को टक्कर दे पाएं. सेन की पार्टी ने 2018 के चुनाव में संसद की सभी 125 सीटों पर जीत हासिल की थी. उन्हें उम्मीद है कि उनकी पार्टी सभी सीटों पर फिर कब्जा करेगी.
- मुख्य विपक्षी पार्टी को किया बैन: कंबोडियन पीपुल्स पार्टी की लोकप्रीयता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2013 के चुनाव में पार्टी को आधे से कम वोट मिले थे. इस चुनाव में कंबोडिया नेशनल रेस्क्यू पार्टी ने जीत हासिल की थी. रेस्क्यू पार्टी खासतौर पर युवाओं में काफी चर्चित थी. ट्रेड यूनियन का रेस्क्यू पार्टी को समर्थन था. अब जब हुन सेन का धरातल कमजोर होने लगा तो 2018 के चुनाव से पहले 2017 में स्थानीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पार्टी पर बैन लगा दिया.
- कैंडललाइट पार्टी पर प्रतिबंध: हुन सेन ने इसी इतिहास को एक बार फिर दोहराई. हालिया चुनाव में कैंडललाइट पार्टी, जो उन्हें टक्कर दे सकती थी, चुनाव आयोग ने बैन लगा दिया. सीपीपी ने कोर्ट और लोकतांत्रिक संस्थानों पर कब्जा किया हुआ है. ऐसे में विपक्षी नेताओं को देश छोड़कर भागना पड़ा इनमें अधिकांश को किसी न किसी गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है. कैंडललाइट पार्टी के नेताओं को धमकियां और उनका उत्पीड़न किया गया. एक्सपर्ट मान रहे थे कैंडललाइट पार्टी सीपीपी को टक्कर दे सकती है.
- हुन सेन के समर्थक क्या कहते हैं?: 1970 के दशक के खमेर रूज नरसंहार और उसके बाद हुए गृह युद्ध के बाद शांति, विकास और स्थिरता बनाए रखने की सीपीपी की क्षमता को पार्टी ने खूब बेचा है. खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में लोगों का मानना है कि हालात काफी बदले हैं. मसलन, कंबोडिया कभी दुनिया का सबसे गरीब देश हुआ करता था लेकिन अब समर्थकों का मानना है कि देश में काफी परिवर्तन हुए हैं.
- कंबोडिया की अर्थव्यवस्था: हुन सेन के शासन में कंबोडिया ने स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे में सुधार किए हैं. इसके साथ ही कंबोडिया मिडिन इनकम देशों की लिस्ट में शामिलहो गया है. कंबोडिया विदेशी कपड़ा ब्रांड का एक हब माना जाता है. इसकी वजह से यहां बड़े स्तर पर लोगों को नौकरियां मिली है. बताया जाता है कि 1998-2019 के बीच कंबोडिया की अर्थव्यवस्था ने 7.7 फीसदी का उछाल देखा है.
- बेटे को सौंपना चाहते हैं सत्ता: हुन सेन 70 साल के हैं. अब वह राजनीति से सन्यास लेने की कगार पर हैं. बताया जाता है कि हुन सेन ने इतना कुछ अपने एक बेटे के लिए किया है. 45 वर्षीय हुन मैनेट उनके बेटे हैं. हालिया चुनाव में वह भी मैदान में थे. हुन सेन की कोशिश है कि अगर वह चुनाव जीतते हैं तो वह उसी बेटे को सत्ता सौंप दें. हालांकि, हुन सेन ने इसके लिए कोई समय सीमा नहीं बताई है.