– डॉ. प्रभात ओझा
प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ की ताजा रिपोर्ट में दुनिया और उसके अंतर्गत भारत की बढ़ती आबादी गौर करने लायक है। अभी पूरी दुनिया की आबादी करीब 7.8 अरब है। यह इस सदी यानी वर्ष 2100 तक करीब 8.8 अरब हो जाएगी। इसके पहले संयुक्त राष्ट्र ने 2019 में एक रिपोर्ट के जरिए बताया था कि 2100 तक दुनिया की यह आबादी लगभग 10.9 अरब होगी। साफ है कि दोनों रिपोर्ट में दो अरब से ज्यादा का अंतर है। इसी तरह भारत की आबादी के सिर्फ एक अरब रहने का अनुमान लगाया गया है। यानी इस समय भारत की जो आबादी 135 करोड़ से भी ज्यादा है, वह सदी के अंत में सिर्फ एक अरब रह जायेगी। हालांकि इस घटी आबादी के बावजूद भारत, चीन को पार कर दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाली देश होगा। यहां देखना है कि 2100 में आबादी का जो अनुमान लगाया गया है उसके 53 साल पहले अंग्रेजी सत्ता से आजाद भारत अपने 100 साल पूरा करेगा। तब 2047 में भारत की आबादी के 1.61 अरब यानी एक करोड़ 61 लाख होने की बात कही गई है।
असल में भारत की जनसंख्या वृद्धि दर में साल 2047 के बाद कमी का अनुमान लगाया गया है। अभी 2010 से लेकर 2019 तक भारत की आबादी 1.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। इस वृद्धि दर से भारत अपने पड़ोसी चीन को 2027 तक ही पीछे छोड़ देगा। प्रश्न है कि इस वृद्धि दर के बावजूद दुनिया और उसके अंतर्गत भारत की आबादी घट कैसे जायेगी? मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी रिपोर्ट में गिरते प्रजनन दर और बुजुर्गों की आबादी को तो ध्यान में रखा, पर कुछ दूसरे मापदंडों को भुला दिया। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया का तर्क है कि संयुक्त राष्ट्र का 10 वर्षों के लिए किया गया वृद्धि दर-आकलन 2.1 प्रतिशत असल में 1.8 प्रतिशत ही रह गया है। लैंसेट ने जो रिपोर्ट दी है, वह अद्यतन है और भरोसे के लायक है। बढ़ती जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और ओडिशा को छोड़ दें तो देश के कई राज्य तो इस हिसाब से ऋणात्मक (नेगेटिव) प्रजनन दर में जाने वाले हैं। यानी ऐसे राज्यों में मृतकों की तुलना में जन्म लेने वाले कम हो जाएंगे। लोग अधिक उम्र में शादी कर रहे हैं, बच्चे कम पैदा हो रहे हैं और उनकी उम्र में अंतर का ध्यान रखा जा रहा है। गरीब लोग भी आर्थिक स्थिति और बच्चों के लालन-पालन के साथ उनकी शिक्षा का ध्यान रख रहे हैं। जनसंख्या दर में कमी के ये पर्याप्त कारण हैं।
उत्सुकता जगती है कि 100 साल के भारत में आबादी का जो अनुमान है, उसमें हालात कैसे होंगे। स्वाभाविक है कि जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या कम होगी, तो दूसरी ओर बुजुर्ग बढ़ेंगे। फिर नौकरी करने वाले लोगों की संख्या भी अधिक होगी। एक अनुमान के मुताबिक, कोरोना महामारी से पहले देश में बेरोजगारी दर 45 साल में चरम पर थी। ऐसे में रोजगार के मामले में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना होगा। गैर कृषि क्षेत्र और उद्योग-धंधों में रोजगार बढ़ाने होंगे। महामारी के दौर के साथ ही इस दिशा में तत्काल जरूरी कदम उठाने होंगे। आबादी के इस आकलन में बढ़े वर्किंग क्लास के पास काम हो तो यह क्लास हमारी अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान दे सकता है। वैसे बढ़े बुजुर्गों की सामाजिक सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा होगा।
वैसे ‘लैंसेट’ तो कहता है कि 2035 तक चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा तो अमरीका दूसरे और भारत तीसरे नंबर पर होगा। संतोष मेहरोत्रा जैसे अर्थशास्त्री इस हालत में भी भारत की प्रति व्यक्ति आय में इजाफा की जरूरत देखते हैं। ऐसा नहीं होने पर वह भयंकर गरीबी की आशंका भी देखते हैं। ‘लैंसेट’ जर्नल ही 23 ऐसे देशों का तथ्य रखता है, जिनकी आबादी घटकर आधी हो जायेगी। इनमें जापान, स्पेन, इटली, थाईलैंड, दक्षिण कोरिया, पोलैंड और पुर्तगाल भी होंगे। इन देशों में मानव श्रम बाहर से मंगाने पड़ सकते हैं।
बहरहाल, 100 साल के आजाद भारत (2047) में जब वह सर्वाधिक आबादी वाला होगा, यह सदी के अंत तक बना रहेगा। उसके बाद नाइजीरिया, चीन, अमरीका और पाकिस्तान का स्थान होगा। नाइजीरिया की जनसंख्या वृद्धि दर में कोई कमी नहीं होने के कारण वह दूसरे स्थान पर रहेगा।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार की पत्रिका `यथावत’ के समन्वय सम्पादक हैं।)
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