अयोध्या: अयोध्या में रामलला विराजमान (Ramlala seated in Ayodhya) हो चुके हैं. सोमवार यानी 22 जनवरी को नए बने मंदिर के गर्भगृह में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा (Ramlala’s life prestige) संपन्न हुई. गर्भगृह में रामलला की 51 इंच की विग्रह स्थापित की गई जिसे मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज (Sculptor Arun Yogiraj) ने तराशा है. जिस शिला को मूर्ति का रूप दिया गया है उसकी खुदाई मैसूर के एचडी कोटे तालुका में जयापुरा होबली में गुज्जेगौदानपुरा से की गई थी. अब उस पत्थर से जुड़ी एक अहम जानकारी सामने आई है.
पीटीआई ने राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से बताया है कि जिस चट्टान के पत्थर से मूर्ति तराशी गई है वो 3 अरब साल पुरानी है. मतलब 300 करोड़ साल पुरानी चट्टान से कृष्ण शिला निकाली गई और फिर अरुण योगीराज ने उसको मूर्ति का रूप दिया. ट्रस्ट के मुताबिक, यह एक महीन से मध्यम दाने वाली और आसमानी-नीली मेटामर्फिक चट्टान है. इसकी सतह चिकनी होने की वजह से इसे सोपस्टोन कहा जाता है. आमतौर पर सोपस्टोन मूर्तिकारों के लिए मूर्तियां बनाने के लिए आदर्श माना जाता है.
ट्रस्ट की ओर से बताया गया कि कृष्ण शिला रामदास नामक शख्स की कृषि भूमि को समतल करते समय मिली थी. एक स्थानीय ठेकेदार, जिसने चट्टान की गुणवत्ता का आकलन किया था, ने अपने संपर्कियों के जरिए इसकी जानकारी मंदिर के ट्रस्टियों तक पहुंचाई थी. वहीं, अरुण योगीराज ने सोमवार को कहा, मैंने हमेशा महसूस किया कि भगवान राम मुझे और मेरे परिवार को सभी बुरे समय से बचा रहे हैं. मेरा दृढ़ विश्वास है कि यह वही थे जिन्होंने मुझे शुभ कार्य के लिए चुना था.
उन्होंने कहा कि मूर्ति बनाते वक्त सटीकता से काम करते हुए मैंने रातों की नींद की भी परवाह नहीं की, लेकिन मुझे लगता है कि मैं इस धरती पर सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हूं और आज मेरे जीवन का सबसे अच्छा दिन है. अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा की गई रामलला की मूर्ति को ‘बालक राम’ से जाना जाएगा. इस विग्रह का नाम बालक राम इसलिए रखा गया है कि क्योंकि भगवान पांच साल के बच्चे के रूप में खड़ी मुद्रा में स्थापित किए गए हैं. प्राण प्रतिष्ठा के एक पुजारी अरुण दीक्षित ने कहा है कि भगवान राम की मूर्ति का नाम बालक राम रखा गया है क्योंकि वो एक बच्चे की तरह दिखते हैं, जिनकी उम्र पांच साल है.
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