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कैसे सरकारी घोषित हुई जमीन, प्रशासन ने किया बिन्दुवार खुलासा

September 27, 2022

इंदौर। धारा 20 की छूट के अनुसार गृह निर्माण संस्था अपने सदस्यों को 200 वर्गमीटर से अधिक भूमि आबंटित नहीं कर सकती और 50 फीसदी भूखंड 1500 स्क्वेयर फीट से अधिक के नहीं हो सकते।
जबकि खजराना की 22.36 एकड़ जमीन पर कॉर्पोरेट विकास के तहत ग्रुप हाउसिंग का अभिन्यास मंजूर करवाया गया। इसके साथ ही कई बहुमंजिला इमारतों के निर्माण की भी अनुमति ली गई, इस अभिन्यास में बड़े-बड़े भूखंडों के अलावा मल्टियों की अनुमति हासिल कर ली।

एक परिवार के सदस्यों को भूखंड आवंटित नहीं किए जा सकते
संस्था ने अंतिम ऑडिट 2015-16 में कराया, जिसमें सदस्यों की संख्या 940 बताई। वहीं इनमें से 237 सदस्य ऐसे हैं जो एक ही पते पर निवासरत या एक ही परिवार के सदस्य हैं। श्रीराम गृह निर्माण संस्था में शामिल जमीनों को गैर सदस्यों को भी बेच दिया। ऐसे 30 लोगों की सूची भी प्रशासन ने अपने इस आदेश में वर्णित की है। वहीं कुछ जमीन पर छोटे मकान, एक पर फीस बैकरी और शेष जमीनें खाली पड़ी है।

केवल सहकारी संस्था और उनके सदस्यों को ही दी गई थी धारा 20 की छूट
संस्था ने विभिन्न सर्वे नम्बरों की जमीनें वर्ष 87 से लेकर 98 के बीच खरीदी और उसमें से 7.14 हेक्टेयर जमीन गेर आवासीय बताकर सहकारिता विभाग के साथ मिलीभगत कर अनुमति लेकर बेच डाली और इसके बदले में कहां जमीनी खरीदी इसका कोई रिकॉर्ड संस्था के पास नहीं है। जमीन बेचते वक्त भी विमुक्ति आदेश की जानकारी छुपाई गई। संस्था ने अपनी जमीनें भूमाफिया प्रवृत्ति के लोगों को बड़े-बड़े टुकड़ों में बेच डाली। दीपक मद्दे के साथ जितेन्द्र और राजीव धवन भी शामिल हैं।


हिना पैलेस का झूठ भी उजागर
अवैध हिना पैलेस की 10.746 हेक्टेयर जमीन का नियमितिकरण भी नगर निगम से धोखाधड़ीपूर्वक तैयार किए दस्तावेजों के आधार पर कराया गया, जिसमें वैभव महालक्ष्मी रियल इस्टेट के साथ-साथ सारथी, हरियाणा, टेलीकॉम गृृह निर्माण की जमीनें भी शामिल कर ली गई है।

सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक ने की पुष्टि
कलेक्टर ने अपने आदेश में मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा पारित किए गए आदेश दिनांक 02.07.2019 और उसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए जाने का खुलासा भी किया है, जिसमें धारा 20 के तहत जारी विमुक्ति आदेश के संबंध में स्पष्ट व्याख्या की गई है और इसी आधार पर अतिरिक्त महाधिवक्ता इंदौर हाईकोर्ट ने भी अपने विधिक अभिमत में विमुक्ति आदेश के उल्लंघन पर जमीन शासन में व्यस्थित हो जाने की पुष्टि की है। यानी तात्कालिक रूप से भले ही माफिया कोर्ट-कचहरी से स्टे हासिल कर ले, मगर अंत में इन जमीनों का छूटना संभव नहीं होगा, क्योंकि बाद में सुप्रीम कोर्ट तक ऐसे मामलों में शासन के पक्ष में ही फैसले अधिक हुए हैं।

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