नई दिल्ली: भारत में जन्में एल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचाई का आज 50वां जन्मदिन है. वह तमिलनाडु में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में और अपनी काबिलियत के बल पर दुनिया की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक गूगल के सीईओ बने.
पिचाई ने आईआईटी खड़गपुर से मैटालर्जी में बीटेक किया और सिल्वर मेडल हासिल किया. पिचाई को इसके बाद स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिली और वह अमेरिकी चले गए. यहीं से कहानी शुरू हुई उनके फर्श से अर्श तक पहुंचने की.
गूगल नहीं थी पहली कंपनी
सुंदर पिचाई ने स्टैनफर्ड से इंजीनियरिंग ऐंड मेटेरियल साइंस में डिग्री लेने के बाद एक सेमीकंडक्टर सप्लाई करने वाली कंपनी में काम किया. इसके बाद उन्होंने पैनसलवेनिया यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री ली और इस बार एक मैनेजमेंट कंसल्टिंग कंपनी जॉइन की. यह 2002 की बात है. हालांकि, उनकी किस्मत में कुछ और लिखा था.
2004 में पहुंचे गूगल
पिचाई ने साल 2004 में प्रोडक्ट मैनेजमेंट के प्रमुख के तौर पर गूगल जॉइन की. मैटालर्जी में ग्रेजुएट एक युवक इस तरह एक आईटी कंपनी में दाखिल हुआ. इसके बाद पिचाई ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने सबसे पहले गूगल टूलबार पर काम किया. इसके बाद वह गूगल के खुद के ब्राउसर, गूगल क्रोम के डेवलपमेंट में सीधे तौर पर शामिल रहे. 2015 में उन्हें गूगल का सीईओ घोषित कर दिया गया.
हालांकि, अभी उन्हें एक कदम और ऊपर जाना था. 2019 में उन्हें अल्फाबेट का सीईओ बनाया गया. गूगल अल्फाबेट की सब्सिडियरी है. यानी 2019 में वह कंपनी के सबसे बड़े पद पर पहुंच गए. अल्फाबेट का सीईओ बनने का बाद उन्हें अगले तीन साल में 240 मिलियन डॉलर के स्टॉक्स की पेशकश की गई. इसके अलावा उन्हें 2 मिलियन डॉलर का वार्षिक वेतन दिया गया. यह तब के एक्सचेंज रेट के अनुसार, भारतीय रुपयों में करीब 1700 करोड़ था.
और भी आए ऑफर
ऐसा कहा जाता है कि 2011 में उन्हें हायर करने के लिए ट्विटर ने पूरा जोर लगाया था. इसके बाद 2014 में उन्हें माइक्रोसॉफ्ट ने भी सीईओ के पद के लिए अप्रोच किया. हालांकि, दोनों ही बार गूगल ने वेतन में भारी भरकम इजाफा कर उन्हें रोक लिया. इसलिए जब 2015 में वह गूगल के सीईओ बने तो इससे किसी को हैरानी नहीं हुई.
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