छतरपुर (Chhatarpur)। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के छतरपुर स्थित एक छोटे से गांव से गांव में दरबार लगाने वाले धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (Dhirendra Krishna Shastri) की चर्चा इस वक्त देश के कोने-कोने में हैं। बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री अपने ‘चमत्कार वाले’ दावों और विवादित बयानों (disputed statements) को लेकर सुर्खियों में बने हुए हैं। महज 26 साल की उम्र में लाखों लोगों को अपना भक्त बना चुके धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के सामने बड़े से बड़े वीआईपी और नेता-मंत्री सिर झुकाए दिखते हैं। यही वजह है कि उनके जीवन से जुड़े तथ्यों को लोग दिलचस्पी के साथ खंगाल रहे हैं। इस बीच, एक टीवी इंटरव्यू में धीरेंद्र शास्त्री ने कई दिलचस्प बातों का खुलासा किया है।
एक निजी मीडिया संस्थान के कार्यक्रम में धीरेंद्र शास्त्री से उनकी संपत्ति को लेकर सवाल किया गया। पूछा गया कि उनकी कमाई कितनी है? इसका जवाब देते हुए बागेश्वर धाम के प्रमुख ने कहा, हमारी तो कोई फिक्स कमाई नहीं है। क्योंकि हमारी कोई कंपनी या बिजनेस नहीं है। कोई चढ़ा जाता है। हमारे पास करोड़ों सनातनियों का प्यार, लाखों करोड़ों लोगों की दुआएं, हजारों संतों का आशीर्वाद है, इतनी हमारी कमाई है।’जब उनसे पूछा गया कि कोई हिसाब किताब तो रखता होगा ना कि कितना पैसा आया। इस पर धीरेंद्र शास्त्री ने कहा- जितने सनातनी उतनी कमाई,हिसाब आप लगा लो।
बागेश्वर धाम के प्रमुख से जब पूछा गया कि वह लोगों से कहते हैं कि जितना चाहे दान दे दो, माकन, फ्लैट, घोड़ा, गाड़ी, एफडी, सोना-चांदी दे दो तो धीरेंद्र शास्त्री ने कहा, ‘यह हमारा डिस्क्लेमर रहता है दरबार के पहले का। लोगों की जो भावना होती है कि गुरु परंपरा और साधु लोग दरबार को कमाई का जरिया बनाते हैं। लेकिन हम माइक पर ठोककर बोलते हैं कि यहां कोई किसी तरह का फीस, दक्षिणा नहीं लगता है। पर अगर तुम खुद को शिष्य मानते हो अपने आप को और हम गुरु हैं, आप गुरु परंपरा के अनुसार कुछ भी देना चाहे तो दे दो।’
उन्होंने आगे कहा कि लेना बुरा नहीं है, उपयोगिता बुरी है। लेकर उसका सदउपयोग करते हैं दुरुपयोग करते हैं, कोई देता है तो हम गुरु के नाते लेते हैं। हम उस परंपरा से हैं जहां अंगूठा तक गुरु को दे दिया जाता है। हम भी लेते हैं। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘हमारा जीवन बहुत अभाव में गुजरा। एक छोटी कच्ची छोपड़ी थी। उसमें पिता जी, मां, मैं, छोटा भाई और बहन, पांचों लोग उसी में रहते थे। उसी में भगवान का भी स्थान था। दादा गुरु जी निर्मोही अखाड़े से संत थे तो उन्हें परिवार से ज्यादा मतलब नहीं था। बड़ा अभाव में गुजरा हमारा जीवन। हमारा जीवन बहुत विचित्र स्थितियों से गुजरा। लेकिन अभाव ने प्रभाव की महिमा बताई और आज प्रभाव ने अभाव कि महिमा बताई।’
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved