नई दिल्ली। हिंद महासागर में दबदबा बढ़ाने की जुगत में लगे चीन को भारत ने (China India) तगड़ा झटका दिया है। श्रीलंका को कर्ज के जाल में फंसाने की चाल बेनकाब होने के बाद भारत ने चीन पर सामरिक बढ़त हासिल की है। जी हां, भारत ने उत्तरी श्रीलंकाई द्वीप समूह में बिजली संयंत्र परियजोनाएं स्थापित करने का समझौता किया है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए गए।
बड़ी बात यह है कि श्रीलंका के मंत्रिमंडल ने पिछले साल इसके लिए चीन की कंपनी के साथ करार पर मुहर लगा दी थी। अब उसे चीन से छीनकर भारत को सौंप दिया। जयशंकर ऐसे समय में श्रीलंका गए हैं जब देश की अर्थव्यवस्था बुरी स्थिति में है। कर्ज का बोझ बढ़ गया है, विदेशी मुद्रा भंडार खाली है और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन तेज हो गए हैं। श्रीलंका के बुरे दिन के लिए चीन को जिम्मेदार माना जा रहा है। भारत उसकी मदद के लिए आगे आया है।
उधर, भारत म्यांमार को अलग-थलग करने की अमेरिकी कोशिशों में शामिल नहीं हो रहा है। बिम्स्टेक समिट में म्यांमार ने भी शिरकत थी जबकि अमेरिका ऐसा नहीं चाहता था। प्रधानमंत्री मोदी ने एक लाइन में पड़ोसी देशों को बड़ा संदेश दे दिया। यूरोप का जिक्र कर पीएम ने कहा कि वहां के हालात ने अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। शायद, पीएम का इशारा चीन की हरकतों के खिलाफ एकजुट रहने का था।
श्रीलंका में चीन का खेल खत्म!
चीन की कंपनी सिनोसार-टेकविन के साथ जनवरी 2021 में जाफना तट पर नैनातीवु, डेल्फ या नेदुनतीवु और अनालाईतिवु में हाइब्रिड नवीकरणीय ऊर्जा प्रणाली स्थापित करने का अनुबंध किया गया था। भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई तो श्रीलंका में फिर से मंथन शुरू हो गया। दरअसल, ये तीनों स्थान तमिलनाडु के करीब है और भारत नहीं चाहता कि चीन अपनी मौजूदगी बढ़ाए।
अब भारत और श्रीलंका के बीच जाफना में तीन बिजली संयंत्र परियोजनाएं शुरू करने के समझौते पर हस्ताक्षर होना दिखाता है कि चीन के पांव उखड़ने वाले हैं। परियोजनाओं के स्थान को लेकर भारत के चिंता जताए जाने के बाद चीन ने पिछले साल हाइब्रिड ऊर्जा संयंत्रों को लगाने की परियोजना को ‘तीसरे पक्ष’ की सुरक्षा चिंताओं के चलते रद्द कर दिया था।
भारतीय दूतावास ने एक बयान में कहा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर और श्रीलंका के विदेश मंत्री जी. एल. पेइरिस ने सोमवार को इस संबंध में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। जयशंकर बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्स्टेक) सम्मेलन में शामिल होने के लिए कोलंबो में हैं। श्रीलंका दवा, ईंधन और दूध की कमी तथा कई घंटों तक बिजली कटौती की समस्या का सामना कर रहा है। आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका के साथ ऊर्जा क्षेत्र में समझौता किया गया है।
जयशंकर ने कहा है कि भारत आर्थिक संकट से उबरने की यात्रा में श्रीलंका की मदद करेगा। दूसरी तरफ, चीन की मंशा कर्ज के जाल में फंसाकर प्रोजेक्ट को हथियाने की रहती है। चीन का कर्ज न चुका पाने के कारण श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह चीन की कंपनी को 99 साल की लीज पर देना पड़ा। दुनियाभर के देशों ने श्रीलंका को आगाह किया और चीन को लेकर देश में नाराजगी भी बढ़ी है। लोग मौजूदा आर्थिक संकट के लिए श्रीलंका सरकार की चीन से नजदीकियों को जिम्मेदार मान रहे हैं।
तो चीन की नहीं चलने वाली
श्रीलंका में चीन का ‘गेम ओवर’ करने के बाद भारत की नजर पड़ोसी देशों से संबंधों को मजबूत करने पर है। दो साल के कोरोना काल का जिक्र करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने आज बिम्स्टेक समिट में कहा कि क्षेत्रीय सहयोग को और बढ़ाना महत्वपूर्ण हो गया है। उन्होंने कहा कि बिम्स्टेक देशों के बीच आपसी व्यापार बढ़ाने के लिए बिम्स्टेक एफटीए प्रस्ताव पर आगे बढ़ना जरूरी है। हमारा क्षेत्र स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा की चुनौतियों का सामना कर रहा है, ऐसे में एकता और सहयोग समय की मांग है। भारत के अलावा, बिम्स्टेक सदस्य देशों में श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, नेपाल और भूटान शामिल हैं। खास बात यह है कि श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार में चीन अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
म्यांमार के खिलाफ नहीं जाएगा भारत
म्यांमार के सैन्य शासन के खिलाफ अमेरिका सख्त रुख अपना रहा है। कई प्रतिबंध लगाने के साथ ही वह देश को अलग-थलग करना चाहता है। उसने भारत को भी अपने रुख से अवगत कराया। हालांकि भारत पश्चिमी देशों के उन प्रयासों में शामिल नहीं हो रहा है जिसके तहत वे म्यांमार को आइसोलेट करना चाहते हैं। भारत ने साफ कहा है कि उसकी म्यांमार पॉलिसी सुरक्षा हितों पर आधारित है। चीन म्यांमार में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है, इससे भारत चिंतित है। भारत चाहता है कि आतंकवाद, कट्टरता और अपराध के खिलाफ म्यांमार से सहयोग बढ़े। भारत अपने हितों को आगे रखते हुए फैसले ले रहा है।
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