– डॉ. रमेश ठाकुर
ब्रिटेन में बेशक कड़ाके की ठंड पड़ रही हो, लेकिन आम चुनाव के परिणाम ने अचानक मौसम को गरमा दिया है। वहां राजनीति इतिहास का नया पन्ना लिखा जाएगा, क्योंकि सियासत की नई सुबह का आगाज हुआ है। चुनाव का ऐसा रिजल्ट, जिसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की थी। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने भी नहीं सोचा होगा। ब्रिटेनवासियों ने एकतरफा फैसला विपक्ष के हक में सुना डाला। चुनाव में विजय हासिल करने वाली लेबर पार्टी ने ब्रिटेन के सियासी इतिहास में पूर्व में जीत के सभी रिकॉर्ड तोड़ डाले। रिजल्ट देखकर पार्टी प्रमुख कीर स्टार्मर फूले नहीं समा रहे। समाना चाहिए भी नहीं। आखिर उनका सपना जो सच हो रहा है। प्रधानमंत्री का ताज उनके सिर पर सजेगा। ब्रिटेन की नेशनल असेंबली में अभी तक वह नेता विपक्ष की भूमिका में थे। विपक्ष के तौर पर उन्होंने जो जनकल्याणी मुद्दे कुरेदे। उनको देशवासियों ने पसंद किया। चुनावी समर में उन्होंने जनता से जो जमीनी वादे किए, उन्हें देश के मतदाताओं ने सिर आंखों पर उठाया। जनता ने आंख मूंदकर विश्वास किया। फिलहाल उन सभी वादों को पूरा करने की जिम्मेदारी अब नए सरताज के कंधों पर है। चुनौतियां हजार हैं, लेकिन उन्हें खुद पर उम्मीद है कि चुनौतियों का सामना कर लेंगे।
भारत के लिहाज से ऋषि सुनक की हार अच्छी नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री रहते उनका मंदिरों में जाना, पूजा-अर्चना करना, हिंदू-हिंदुत्व की बातें करना, ये सब सनातनी प्रचार का हिस्सा माना जाता था। शायद ऐसा करना उनके लिए नुकसानदायक साबित हुआ हो। ब्रिटेन में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं। अफसोस इस बात का है कि उन्होंने भी ऋषि सुनक से किनारा कर लेबर पार्टी को वोट किया। भारतीयों ने ऋषि सुनक को क्यों नकारा इसकी समीक्षा लंदन से लेकर भारत में खूब हो रही है। प्रधानमंत्री ऋषि सुनक बेशक अपनी संसदीय नॉर्थलेरटन सीट से जीते हों। पर, बहुत कम अंतर से? उनकी समूची पार्टी बुरी तरह से हारी है। विपक्ष की ऐसी सुनामी जिसमें मानो सत्तापक्ष असहाय होकर बह गया हो। ऋषि सुनक भी मात्र 23,059 वोटों से ही जीते हैं। वरना, शुरुआती रुझानों में उनकी भी हालत पतली थी। दो राउंड तक पीछे रहे।
ताज्जुब वाली बात ये है कि नॉर्थलेरटन वह क्षेत्र है, जहां सुनक स्वयं रहते हैं और भारतीयों की संख्या भी अच्छी-खासी है। बाकायदा उनके घर मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ होता है, लोग शामिल होते हैं। इसके अलावा भारतीय तीज-त्यौहारों पर लोगों को जुटना होता हैं। ऐसे मौकों पर तरह-तरह के भारतीय व्यंजन पकते हैं। पर वो लोग और समर्थक भी उनसे छिटक गए। ऋषि के ज्यादातर मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ प्रमुख नेता भी चुनाव में चित हो गए। कइयों की तो जमानत भी जब्त हुई हैं। ब्रिटेन और भारत के मौजूदा चुनाव ने एक बात यह बता दी है कि मतदाताओं के मिजाज को पढ़ना अब आसान नहीं। कोई नेता या दल इस मुगालते में न रहे कि फला समुदाय या मतदाता उनका है।
बहरहाल, ब्रिटेन में चुनाव नतीजे एग्जिट पोल के मुताबिक ही रहे। कुल सीटें 650 हैं जिनमें एग्जिट पोल में लेबर पार्टी को 410 सीट मिलने का अनुमान था। नतीजों को लेबर पार्टी चमत्कार मान रही है। जैसे, दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों को देखकर खुद अरविंद केजरीवाल हक्के-बक्के रह गए थे। लेबर पार्टी ने 650 सीटों में से 400 पार के साथ 14 साल बाद प्रचंड वापसी की है। ब्रिटेन में चार जुलाई को आम चुनाव हुए थे। चुनावी मुद्दे कुछ ऐसे थे, जिनमें ऋषि सुनक घिर गए थे। दो प्रमुख मसले जिसमें पहला कोरोना में व्यवस्थाओं का चरमराना, वहीं दूसरा देश की अर्थव्यवस्था का ग्राफ नीचे खिसक जाना। इन दोनों मुद्दों को लेबर पार्टी ने अपना चुनावी कैंपेन बनाया था। भारत के साथ मित्रता और देशवासियों के हितों की अनदेखी करने का मुद्दा भी चुनाव में खूब उछला।
ब्रिटेन की नई हुकूमत के साथ हमारे संबंध कैसे होंगे? इस सवाल के अलावा बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर भारतीयों का सुनक के प्रति मोहभंग हुआ क्यों? ऋषि के भारतीय मूल के होने पर प्रवासी भारतीयों को उन पर गर्व होता था। पर, जब वोटिंग का समय आया, तो ऐसा प्रतीत हुआ कि भारतीयों ने इमोशनल एंगल की जगह बदलने के लिए मतदान किया। दरअसल इसे कंजर्वेटिव पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के 14 साल के शासन से उपजी निराशा मानी जा रही है। वैसे, दिल पर लेने की जरूरत इसलिए भी नहीं है, राजनीति में हार-जीत कोई बड़ी बात नहीं। बदलाव होते रहते हैं और होने भी चाहिए। किसी एक व्यक्ति या दल के पास सत्ता की चाबी ज्यादा समय तक जनता रखना भी नहीं चाहती। हमारे यहां संपन्न लोकसभा चुनाव में भी दुनिया ने चमत्कारी बदलाव देखें। हालांकि, प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने हार स्वीकार करते हुए लंदन वासियों से माफी मांगते हुए लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर को दिल खोलकर बधाई दी है। राजनीतिक लोगों में ऐसे नैतिकता हमेशा रहनी चाहिए।
लेबर पार्टी की यह जीत उम्मीदों को सच करने वाली, अभिलाषाओं को जीवित करने वाली और नए इतिहास और संविधान को स्थापित करने वाली है। नई सरकार पर उम्मीदों का पहाड़ है। चरमराई अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की चुनौती के अलावा विभिन्न देशों के साथ संबंध सुधारने की परीक्षा भी है। लेबर पार्टी को सरकार को नए किस्म के आतंकवाद से निपटना, अमेरिका की बिलावजह दखलदांजी को रोकना, ऊर्जा स्रोतों को स्थानीय स्तर पर खोजना, गैस और प्राकृतिक संसाधनों का उत्सर्जन करना, यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद बिगड़े कई मुल्कों से संबंधों को फिर से नई धार देना भी होगा। भारत के साथ मधुर हुए संबंधों को यथावत रखना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। हालांकि स्टॉर्मर ने अपने पहले विजयी भाषण में सिर्फ अपने मुल्कवासियों को संदेश दिया है।उन्होंने कहा है कि ‘मैं आपकी आवाज बनूंगा, आपका साथ दूंगा, हर दिन आपके लिए लड़ूंगा। उनके कहे उन शब्दों पर जनता ने खूब तालियां बजाई हैं। लंदन का एक तिहाई समर्थन उनके पक्ष में है। इस जनादेश और जनसमर्थन को सहेजना भी कठिन परीक्षा जैसा रहेगा।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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