नई दल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) बुधवार से पौलेंड और यूक्रेन की यात्रा (Trip to Ukrain) कर रहे हैं. मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जो यूक्रेन जा रहे हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि रूस और यूक्रेन के बीच पिछले ढाई सालों से युद्ध चल रहा है. यही नहीं अभी पिछले ही महीने मोदी रूस की यात्रा करके लौटें हैं. देश विदेश की मीडिया में इस बात को लेकर हलचल है कि आखिर ऐसे समय में जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की तीव्रता और बढ़ गई है नरेंद्र मोदी भारत के खास दोस्त रूस को क्यों नाराज करना चाहते हैं.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार ब्रह्म चेलानी ने एक्स पर लिखा कि, ’23 अगस्त को यूक्रेन दौरे पर जाना न सिर्फ़ ख़राब समय है बल्कि इसका मक़सद भी साफ़ नहीं है. यूक्रेन के हालिया आक्रमण ने युद्धविराम की कोशिशों को झटका पहुंचाया है. यूक्रेन के आज़ाद होने के बाद कोई भारतीय पीएम वहां नहीं गया है. पीएम मोदी के यूक्रेन जाने की कोई ठोस वजह नहीं है. ख़ासकर तब जब युद्ध के कारण तनाव बढ़ा हुआ है.’ सवाल उठता है कि क्या भारत सरकार यह बात नहीं समझ रही है. पर कहा जाता है कि किसी भी कूटनीतिक संबंध का सबसे बड़ा आधार किसी भी देश का अपना फायदा होता है. जाहिर है कि भारत अपना नुकसान करके यह यात्रा नहीं कर रहा होगा. आइये देखते हैं वो क्या परिस्थितियां हैं जिनमें भारत के लिए यह यात्रा मील का पत्थर साबित हो सकता है.
भारत रूस से बहुत सी रक्षा सामग्री खरीदता रहा है. यूक्रेन के रूस से अलग होने के बाद उनमें से बहुत सी कंपनियों का नियंत्रण यूक्रेन के पास हो गया.वर्तमान में भारत के पास बहुत से रक्षा उपकरण ऐसे हैं जो यूक्रेन में बनाए गए हैं. इनमें से कई ऐसे हैं जिनका अभी भी यूक्रेन में निर्माण होता है. जिसमें भारतीय नौसेना के युद्धपोतों के लिए गैस टरबाइन इंजन और भारतीय वायुसेना द्वारा संचालित AN -32 विमान शामिल हैं.
यूक्रेन की सरकारी जोर्या-मैशप्रोक्ट वॉरशिप द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले गैस टर्बाइनों के निर्माण के लिए भारत की प्राइवेट कंपनियों के साथ बातचीत चल रही है. कुछ साल पहले भारत ने यूक्रेन के STE के साथ 105 AN-32 विमानों के अपने बेड़े को अपग्रेड करने और उनकी लाइफ लाइन को 40 साल तक बढ़ाने के लिए 400 मिलियन डॉलर के समझौते पर साइन किए थे. यह प्रोजेक्ट काफी लेट हो चुका है. भारत किसी भी कीमत पर इसे पूरा करना चाहता है. 2029 तक इसे पूरा करने की कोशिश की जा रही है.यह भी हो सकता है कि भारत-यूक्रेन साथ मिलकर गैस टर्बाइन इंजन बनाने पर भी विचार करें.
ब्रिटिश नेता और पूर्व पीएम टोनी ब्लेयर के सलाहकार रह चुके पीटर मंडेलसन टीओआई में प्रकाशित एक ऑर्टिकल में लिखते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा भारत के लिए विश्व पटल पर छा जाने का एक ऐतिहासिक अवसर है. भारत अपनी गुटनिरपेक्ष विरासत को आगे बढ़ा कर वैश्विक शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. पिछले दो वर्षों से भारत और पश्चिमी देशों के बीच इस बात पर मतभेद हैं कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से कैसे निपटा जाए?
अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने बार-बार भारत से रूस की निंदा करने और पश्चिमी प्रतिबंधों में शामिल होने के लिए कहा पर भारत रूस के साथ अपने सुरक्षा और आर्थिक संबंध जारी रखा. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने भी मंगलवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूक्रेन की आगामी यात्रा एक अच्छा संकेत है और इसकी सराहना की जाएगी.थरूर ने कहा कि यह अच्छी बात है कि भारत दोनों युद्धरत देशों रूस और यूक्रेन के प्रति कुछ हद तक चिंता दिखा रहा है. थरूर ने कहा, ‘कई लोगों का मानना है कि भारत आज दुनिया के अधिकांश संघर्षों को लेकर तटस्थ भूमिका में है. दोनों पक्षों के लिए कुछ हद तक चिंता दिखाना अच्छा होगा, जैसा कि उन्होंने मास्को में किया था. अब उस देश में जाकर राष्ट्रपति जेलेंस्की का अभिवादन करना एक बहुत अच्छा संकेत होगा.’
थरूर ने यह भी कहा कि जब युद्ध शुरू हुआ तो वे भारत के रुख की बहुत आलोचना करते थे, क्योंकि तब भारत ने संप्रभु सीमा के उल्लंघन और संयुक्त राष्ट्र चार्टर की अवहेलना की निंदा करने से मना कर दिया था. लेकिन जब भारत ने यूक्रेन के साथ भी मदद का रुख अपनाया तो उन्हें अपना रुख बदलना पड़ा.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने नए कार्यकाल में पहली विदेश यात्रा के लिए चीन को चुना.चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पुतिन के साथ मिलकर साझेदारी के एक नए युग का वादा भी किया.चीन और रूस के बीच एक लंबा और जटिल रिश्ता है और जो धीरे धीरे मजबूत हो रहा है. दशकों की प्रतिद्वंद्विता के बाद, रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के सामने आखिरकार दोनों देश एक साथ आ गए हैं. रूस अगर भारत के सबसे बड़े दुश्मन के साथ दोस्ती बढ़ा रहा है तो भारत को रूस को भी यह जताना जरूरी है कि वह पिछलग्गू बनकर नहीं रह सकता. यही नहीं रूस के संबंध उत्तर कोरिया और ईरान के साथ भी नजदीकियां बढ़ रही हैं.
चीन और रूस की बढ़ती दोस्ती के चलते ही भारत अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति का भी बड़ा समर्थक रहा है, जिसने क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, व्यापार और निवेश के लिए समर्थन का वादा किया गया है.भारत को डर है कि चीन बंगाल की खाड़ी में अपनी नौसैनिक प्रक्षेपण क्षमताओं को बदलने के लिए रूस पर दबाव डाल सकता है.
पीटर मंडेलसन लिखते हैं कि रूस और चीन के बीच संबंध अब बिना सीमाओं वाले भू-राजनीतिक और सैन्य गठबंधन में विकसित हो चुके हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इसका समर्थन उत्तर कोरिया और ईरान कर रहे हैं.जाहिर है कि ये देश एक लोकतंत्र विरोधी धुरी बना रहे हैं जो कानून के शासन, मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की पवित्रता को नजरअंदाज करने के लिए तैयार हैं. भारत के लिए यह जरूरी है कि रणनीतिक और भू-राजनीतिक हित में है कि ऐसा गठबंधन ग्लोबल साऊथ पर हावी न हो जाए.इसके साथ ही भारत की क्षेत्रीय अखंडता के लिए भी यह संघ खतरा न बन जाए. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में, भारत को अब क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को बढ़ावा देने में नेतृत्व दिखाना चाहिए.
1979 के बाद से यह किसी भारतीय प्रधान मंत्री की पोलैंड की पहली यात्रा है, जब मोरारजी देसाई ने वारसॉ की यात्रा की थी; सोवियत संघ के पतन के बाद रूस से अलग हो कर यूक्रेन बनने के बाद से किसी भी भारतीय प्रधान मंत्री ने कीव का दौरा नहीं किया था. ब्रिटिश भू-राजनीतिक विचारक हैलफोर्ड मैकिंडर ने 20वीं सदी के अंत में कहा था, जो पूर्वी यूरोप पर शासन करता है वह हृदयभूमि पर शासन करता है; जो हृदयभूमि पर शासन करता है वह विश्व-द्वीप पर शासन करता है; जो विश्व-द्वीप पर शासन करता है वही विश्व पर शासन करता है.
रक्षा विशेषज्ञ सी राजमोहन लिखते हैं कि क्या भारत मध्य और पूर्वी यूरोप के लिए इस नए संघर्ष में एक निष्क्रिय दर्शक बना रह सकता है? इस सप्ताह प्रधानमंत्री की पोलैंड और यूक्रेन यात्रा से संकेत मिलता है कि भारत का उत्तर स्पष्टतया नहीं है. व्यापक अपेक्षाओं के विपरीत, मोदी की वारसॉ और कीव यात्रा यूक्रेन पर एक नई भारतीय शांति पहल के बारे में कम हो सकती है. दिल्ली इस ऐतिहासिक यात्रा को एक बार की घटना के रूप में नहीं देख सकती; भारत के लिए यह पोलैंड और यूक्रेन और अधिक व्यापक रूप से मध्य यूरोप के साथ स्थायी दीर्घकालिक जुड़ाव की शर्तें तय करने के बारे में होना चाहिए.
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