कोरोना (corona) और वैक्सीन पर दुनिया भर में स्टडी की जा रही हैं. इस बीच एम्स दिल्ली द्वारा भारत में जीनोम सीक्वेंस पर की गई पहली स्टडी के नतीजे सामने आ गए हैं. ये स्टडी वैक्सीन (Vaccine) लगवाने वालों में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुए संक्रमण (Infection) के प्रभाव को जानने के लिए की गई थी.
ये स्टडी अप्रैल-मई 2021 में कोरोना से संक्रमित हो चुके उन लोगों पर की गई थी जो वैक्सीन लगवा चुके थे. स्टडी में कहा गया है कि कोरोनावायरस (coronavirus) का बहुत ज्यादा वायरल लोड होने के बावजूद इनमें से किसी की भी बीमारी से मौत नहीं हुई.
स्टडी में शामिल संक्रमण के 63 मामलों में से 36 मरीजों को वैक्सीन की दोनों डोज जबकि 27 लोगों को एक डोज लग चुकी थी. इनमें से 10 मरीजों को कोविशील्ड और 53 लोगों को कोवैक्सीन लगी थी.
रिपोर्ट के अनुसार, इन सभी मरीजों में एंटीबॉडी मौजूद थी और इसके बावजूद वो संक्रमित हो गए. इनमें भी कोरोना के आम मरीजों की तरह ही इमरजेंसी की जरूरत पड़ी. इसकी वजह से इम्युनोग्लोबुलिन जी एंटीबॉडी (IgG) को COVID-19 से सुरक्षा देने वाली इम्यूनिटी की तरह देखे जाने पर संदेह किया जाने लगा था. एम्स की नई रिपोर्ट कई मामलों में अनोखी है.
हालांकि, 5-7 दिनों तक लगातार बुखार रहने के बावजूद वैक्सीन लेने वाले इन सभी लोगों में संक्रमण इतना ज्यादा घातक नहीं पाया गया. स्टडी में शामिल मरीजों की औसत उम्र 37 (21-92) थी, जिसमें 41 पुरुष और 22 महिलाएं थीं. इनमें से किसी भी मरीज को पहले से कोई बीमारी नहीं थी.
इन लोगों में B.1.617.2 वेरिएंट भी था, इसलिए वैक्सीन की दोनों या एक डोज लेने वालों के सैंपल की समीक्षा की गई. हालांकि दोनों और एक डोज लेने वालों के बीच कोई खास अंतर नहीं पाया गया. इसके अलावा, किस वेरिएंट वाले सैंपल को कौन सी वैक्सीन दी गई थी, इसकी भी जांच की गई. इसमें भी कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं देखा गया.
विश्लेषण किए गए संक्रमण के मामलों में से, 10 मरीजों (8 लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज और 2 को एक डोज) में इम्युनोग्लोबुलिन एंटीबॉडी थी जिसका मूल्यांकन केमिलुमिनसेंट इम्यूनोसे (Siemens) द्वारा किया गया था. इनमें से 6 मरीजों में संक्रमण से एक महीने पहले IgG एंटीबॉडी थी जबकि 4 लोगों में संक्रमण के बाद एंटीबॉडी पाई गई.
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